बेटियों को कब तक अपमान की आग से गुजरना पड़ेगा?

एक हिंदुस्तानी होने पर बेशक नाज होना चाहिए. मगर देश में बेटियों की दशा व देश की दिशा देख कर हिंदुस्तान से सवाल करने का मन करता है. ‘मोहे बिटिया न कीजो’, हिंदुस्तान में बेटियों का यह दर्द बार-बार क्यों छलक जाता है? शेल्टर होम, कस्तूरबा विद्यालय आदि की सुरक्षित निगहबानियों में भी बेटियों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 19, 2020 5:52 AM
एक हिंदुस्तानी होने पर बेशक नाज होना चाहिए. मगर देश में बेटियों की दशा व देश की दिशा देख कर हिंदुस्तान से सवाल करने का मन करता है. ‘मोहे बिटिया न कीजो’, हिंदुस्तान में बेटियों का यह दर्द बार-बार क्यों छलक जाता है? शेल्टर होम, कस्तूरबा विद्यालय आदि की सुरक्षित निगहबानियों में भी बेटियों के अस्तित्व को ललकारा जाता है.
अमरावती के एक स्कूल में लड़कियों को प्यार-मुहब्बत से दूर रहने की कसमें खानी पड़ती हैं. सबरीमाला प्रकरण पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ कि भुज में धार्मिक ट्रस्ट के महिला हॉस्टल से डरावनी खबर आ गयी. 21वीं सदी में उड़ान भरती बेटियों को अपमान की आग से गुजरते हुए खुद को ‘पवित्र’ साबित करने की चुनौती मिल गयी. अग्निपरीक्षा के छालों को दिखाने में बेटियों को अपना ही चेहरा छिपाना पड़े, तो देश पर गर्व करने की गुंजाइश कम क्यों न हो जाये?
एमके मिश्रा, मां आनंदमयीनागर, रातू (रांची)

Next Article

Exit mobile version