बीजों के पूर्वज हैं फूल

मिथिलेश कु राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com कक्का कह रहे थे कि सरसों के फूल अब झरने लगे हैं. लेकिन, ऐसा नहीं लगता है कि फूलों के झर जाने से वह स्थान खाली हो गया है. वे कह रहे थे कि जहां-जहां से फूल झरे हैं, वहां-वहां छीमियां निकल रही हैं. मतलब जहां पीला था, ठीक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2020 5:44 AM

मिथिलेश कु राय

युवा कवि

mithileshray82@gmail.com

कक्का कह रहे थे कि सरसों के फूल अब झरने लगे हैं. लेकिन, ऐसा नहीं लगता है कि फूलों के झर जाने से वह स्थान खाली हो गया है. वे कह रहे थे कि जहां-जहां से फूल झरे हैं, वहां-वहां छीमियां निकल रही हैं. मतलब जहां पीला था, ठीक वहीं अब हरा आकर बैठ गया है. कुछ दिनों की बात है, जब सारे फूल झर जायेंगे, सरसों के डंठल जड़ से लेकर सिर तक हरा-हरा नजर आने लगेगा.

यह कहते हुए कक्का मुस्कुराने लगे थे. शायद उन्हें कोई और बात याद आ गयी. उन्होंने कहा कि क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि फूल दाने और फल के पूर्वज होते होंगे! मुझे भी कक्का से कोई ऐसे ही दिलचस्प सवाल की उम्मीद थी. वे खेती-किसानी की बात करते हुए बीच में कोई ऐसा सवाल जरूर रख देते हैं कि मैं हक्का-बक्का रह जाता हूं. वे चाहे बात को कहीं से उठायें, उसमें अपनी कल्पना-परिकल्पना को जोड़ ही देते हैं. इससे उनकी बातों में चार चांद लग जाता है. सुनने में भी मजा आने लगता है.

कक्का कह रहे थे कि फूल दाने और फल से बहुत पहले आते हैं और पहले आकर उनके लिए जगह और माहौल बनाते हैं. जब फल या बीज के लायक माहौल बन जाता है, वे झर जाते हैं. जहां से वे झरते हैं, ठीक वहीं अपने वंशज यानी फल और बीज को पलने-बढ़ने के लिए छोड़ देते हैं. यह सब कहते हुए वे कुछ गंभीर हो गये. उन्हें इससे जुड़ा कोई और तार नजर आने लगा था. जो शायद मानव जीवन के पास आकर उनसे जुड़ जाता था. कहने लगे कि फूलों को फसल का साथ छोड़ने से पहले फल और बीज उन्हें अपने सिर पर कुछ दिन एक ताज की तरह रखते हैं.

वे उन्हें अपने सिर से बहुत आहिस्ते-आहिस्ते विदा करते हैं. जैसे फल और बीज उन्हें यह दिखा रहे हों कि हमने जीना सीख लिया है. जैसे फूल यह देख रहे हों कि उनके वंशज अब अपने सहारे पल-बढ़ रहे हैं. बीज और फल उन्हें अपने सिर पर सजाये हवा के संग झूमते रहते हैं. जैसे फूलों के द्वारा बख्शे गये उस जीवन के लिए वे उनका शुक्रिया अदा कर रहे हों. क्योंकि अंतिम समय में फूल खेतों में गिरकर मिट्टी में मिल जाते हैं और उर्वरक हो जाते हैं. इस तरह वे हमेशा अपने वंशज के साथ रहते हैं.

वे कह रहे थे कि क्या हमारे बुजुर्ग फूल की मानिंद नहीं होते. वे पहले आते हैं और इस धरती पर हमारे रहने के लिए एक आधार तैयार करते हैं. वे कठिन परिश्रम से अपने लिए कुछ सुविधाओं का निर्माण करते हैं और उसे बाद की पीढ़ी के लिए छोड़ देते हैं. वे आनेवाली संतति के लिए कई तरह की लड़ाइयां लड़ते हैं और अपनी जीत उन्हें उपहार में भेंट करते हैं.

कक्का एक रौ में बोले जा रहे थे कि चाहे फूल हो या बुजुर्ग, वे हमारे सिर के ताज की मानिंद होते हैं. हमारे पास उपलब्ध सारी सुविधाएं उन्हीं की थाती होती है. क्या फल और बीज की तरह हमें भी अपने बुजुर्गों के प्रति कृतज्ञता के भाव से भरा हुआ नहीं होना चाहिए!

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