मौसम को पहचान कर काम कीजिए
।। राकेश कुमार ।। प्रभात खबर, पटना मौसम बदलना प्रकृति का नियम है. और, समझदार इनसान वही होता है, जो बदलते मौसम के हिसाब से खुद को बदल ले. बदलाव की यह कला डॉक्टरों से सीखिए. उन्हें पता होता है कि गर्मी के मौसम में लू, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां ही होनी हैं और इसके लिए […]
।। राकेश कुमार ।।
प्रभात खबर, पटना
मौसम बदलना प्रकृति का नियम है. और, समझदार इनसान वही होता है, जो बदलते मौसम के हिसाब से खुद को बदल ले. बदलाव की यह कला डॉक्टरों से सीखिए. उन्हें पता होता है कि गर्मी के मौसम में लू, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां ही होनी हैं और इसके लिए वह इंतजाम करके रखते हैं.
इसी तरह ठंड शुरू होते ही वे सर्दी, खांसी, बुखार के मरीजों का इंतजार करने लगते हैं. राजनीति का हाल भी इससे अलग नहीं होता है. जो दल सत्ता में आ जाता है, उस ओर दल-बदलुओं और राजनीति के मौसमी मेढकों की उछल-कूद शुरू हो जाती है. और जिस पार्टी के हाथ से सत्ता जाती है, उसके कार्यालयों में मानसून में भी पतझड़ छाया रहता है.
अब देखिए केंद्र में एनडीए की सरकार बनी नहीं कि सब उसी ओर भाग रहे हैं. यानी, एक बात तय है कि मौसम का असर हर जगह होता है. मौसम बदलने का असर आप कारपोरेट जगत के दफ्तरों में भी देख सकते हैं. बॉस के आने के पहले तथा जाने के बाद अलग मौसम होता है और बॉस के दफ्तर में मौजूद होने का अलग. कई बार तो यह पल में बदल जाता है. बॉस अपनी सीट से उठे नहीं कि माहौल बदला-बदला महसूस होने लगता है.
समझदार बंदे बॉस के आने-जाने के समय के पैटर्न का बारीकी से अध्ययन करते हैं और उसी हिसाब से मौसम बनाते हैं. बॉस के दफ्तर में घुसने से पहले वह तूफान के आने से पहलेवाला सन्नाटा कायम कर देते हैं. और, उनके जाते ही भारी बारिश के बाद खुले-खुले मौसम में छई छप्पा छई करने लगते हैं. बॉस की उपस्थिति का मौसम सबसे अप्राकृतिक होता है. हर ओर नकली ताजगी और फुरती.
हर कोई काम में अपनी तल्लीनता और अपनी विद्वता का प्रदर्शन करने में जुटा रहता है. मन मिर्जा तन साहिबां वाली स्थिति होती है. समझदार बंदे इसी तरह मौसमी काम करते हैं. आठ-दस घंटे लगातार खटना तो गधों का काम है. अगर चमन में दीदावर ही न हो, तो नरगिस के फूलने का क्या फायदा? मौसमी काम के ये उस्ताद जब काम में मग्न नजर आयें, तो समझ लीजिए कि यह उनके काम करने का मौसम है.
मतलब यह कि जरूर ही बॉस आसपास होंगे या फिर उन्होंने कोई काम खास तौर पर सौंपा होगा. सफल इनसान वही है जो बॉस को दिखाने, बताने और प्रभावित करने के खास मौसम में खूब खटे. बाकी दिनों में आप जो चाहे करें, लेकिन अपने संस्थान के मौसम को पहचानना बहुत जरूरी है. अगर आप संस्थान के मौसम को नहीं पहचान सके, तो आपका ही नुकसान होगा.
एक उदाहरण से इसे आप समझ सकते हैं. अगर आपको अच्छा इंक्रीमेंट चाहिए तो फिर जनवरी से मार्च महीने में जबरदस्त तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज करायें. कुछ ऐसा करें कि हर तरफ छा जायें. इस मौसम को आपको खुद पहचानना होगा. इसमें मौसम विभाग की भविष्यवाणी किसी काम नहीं आती है. तो आप भी अपने राडारों को सक्रिय कर दीजिए.