सख्त जमीन पर नरेंद्र मोदी की राजनीति

।। प्रमोद जोशी ।। वरिष्ठ पत्रकार अभी पार्टी के तमाम नेता महत्वपूर्ण पद पाने की आशा में हैं. अगले हफ्ते संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद राजनीति व्यावहारिक धरातल पर आयेगी. इस लिहाज से मोदी सरकार की वास्तविक परीक्षा की घड़ी अब आ रही है. भाजपा की राष्ट्रीय परिषद् में नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2014 4:32 AM

।। प्रमोद जोशी ।।

वरिष्ठ पत्रकार

अभी पार्टी के तमाम नेता महत्वपूर्ण पद पाने की आशा में हैं. अगले हफ्ते संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद राजनीति व्यावहारिक धरातल पर आयेगी. इस लिहाज से मोदी सरकार की वास्तविक परीक्षा की घड़ी अब आ रही है.

भाजपा की राष्ट्रीय परिषद् में नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को ‘मैन ऑफ द मैच’ घोषित किया और उसके अगले ही रोज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ‘एनडीए की सरकार बनाने का श्रेय किसी पार्टी या शख्स को नहीं, बल्कि आम जनता को जाता है.’ क्या यह नरेंद्र मोदी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब है या अनायास कही गयी बात है?

भाजपा के शिखर पर मोदी और अमित शाह की ‘जोड़ी नंबर वन’ पूरी तरह स्थापित हो जाने के बाद मोहन भागवत का यह बयान क्या किसी किस्म का संतुलन बिठाने की कोशिश है या संघ के मन में कोई भय बैठ गया है? मोदी की राजनीति के लिए अगला सप्ताह काफी महत्वपूर्ण साबित होनेवाला है, क्योंकि लोकसभा चुनाव की कुछ तार्किक परिणतियां इस हफ्ते देखने को मिलेंगी.

आर्थिक नजर से देखें तो मॉनसून की अनिश्चितता की वजह से खाने-पीने की चीजों की महंगाई बढ़नेवाली है. बावजूद इसके रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि सरकारी नीतियों से आनेवाले महीनों में आपूर्ति सुधारेगी. अलबत्ता उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून में लगातार दूसरे महीने कम हुई है.

आरबीआइ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति को जनवरी, 2015 तक 8 प्रतिशत पर और जनवरी, 2016 तक 6 प्रतिशत तक सीमित करने के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है. राजनीति के लिहाज से कमोबेश माहौल ठीक है. भाजपा और कांग्रेस, दोनों की निगाहें अब उत्तर प्रदेश और बिहार विधानसभा के उपचुनावों और चार राज्यों के विधानसभा चुनावों पर हैं. संसद का यह सत्र 14 अगस्त तक है और बीमा विधेयक पर पीछे हटने के बाद मोदी सरकार अब कठोर जमीन पर आ गयी है.

राज्यसभा में भाजपा को अपनी सीमा मालूम है. अगले दो साल तक स्थिति में कोई बड़ा बदलाव होनेवाला नहीं. देखना होगा कि कांग्रेस यहां अपनी ताकत का कितना लाभ लेगी. बीमा विधेयक प्रवर समिति में जायेगा, तो उसे पास कराने के लिए सदन का विशेष सत्र शीत सत्र से पहले बुलाना होगा.

सरकार चाहती थी कि सदन इस विधेयक को या तो पास कर दे या अस्वीकार करे, ताकि संयुक्त अधिवेशन बुला कर उसे पास कराया जा सके. मोदी चाहते थे कि सितंबर में अमेरिका यात्र के वक्त वे पश्चिमी देशों को संदेश देते कि उदारीकरण की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गयी है. फिलहाल ऐसा नहीं होगा.

पार्टी अब राज्यसभा में पूर्ण बहुमत के मिशन में जुट गयी है, जिसकी घोषणा वेंकैया नायडू ने रविवार को हैदराबाद में की. संसद का सत्र समाप्त होने के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. पार्टी के अंतर्विरोध तनिक और खुलेंगे. दिल्ली में हुई पार्टी की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक के बाद अटल-आडवाणी युग समाप्त हो गया. लौह पुरुष ने भी इसे स्वीकार कर लिया है.

उन्होंने माना कि पार्टी में जैसा अनुशासन आज है, वैसा पहले कभी नहीं था. अमित शाह ने भविष्य में चार राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत का आह्वान करते हुए कहा कि देश अभी ‘कांग्रेस-मुक्त’ नहीं हुआ है. मोदी की बात का संकेत भी यही है कि कांग्रेस को मटियामेट करने का काम अभी बाकी है. कांग्रेस बदहाल है. इधर पहले प्रियंका गांधी का नाम उछला फिर वापस लिया गया, पर असली खतरा चार राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद पैदा होगा.

नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दुनिया का भारत के प्रति नजरिया एकदम बदल गया है. पूरे विश्व में भारत के प्रति लोगों का व्यवहार बदल गया है.

मिली-जुली सरकार के प्रति लोगों का नजरिया अलग हुआ करता था. हैदराबाद में वेंकैया नायडू ने कहा कि मोदी सरकार अर्थ-व्यवस्था में जान डालने की कोशिश कर रही है और कांग्रेस कह रही है ‘नहीं चलेगा, नहीं चलेगा मोदी.’ मोदी की नहीं, तो किसकी चलेगी? हारी हुई निराश कांग्रेस संसद में अड़ंगे खड़े करने के मिशन पर चल रही है.

नरेंद्र मोदी अपनी छवि को सुधारने की लगातार कोशिश में लगे हैं. इसके लिए सॉफ्ट और हार्ड, दोनों तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का उत्तर देते हुए उन्होंने अपने विरोधियों को भी साथ लेने का वादा किया. उसके पहले उन्होंने कहा था कि पिछली सरकार में शुरू की गयी योजनाओं के नाम नहीं बदले जायेंगे. लेकिन हां, पुराने राज्यपालों को येन-केन हटा दिया गया.

इस बीच भारत रत्न के संभावित नामों पर भी अलग-अलग राय सामने आ रही है. रोचक होगा मोदी का पंद्रह अगस्त का भाषण, जो निश्चित रूप से पिछले साल के आक्रामक भाषण के मुकाबले नरम और दिल जीतनेवाला होगा. यह सब मोदी की दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है.

सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने ही अंतर्विरोधों से जूझने की है. अतीत में जिस बीमा बिल की राह में उसने अड़ंगे लगाये थे, उसे वह अब पास कराना चाहती है. जिस जीएसटी को उसकी प्रदेश सरकारों ने नापसंद किया था, उस पर वह इस साल के अंत तक सहमति बनाने की इच्छा रखती है. अरुण जेटली के बजट को यूपीए-3 का बजट कहा जा रहा है.

सरकार ने अब तक वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति नहीं की है. योजना आयोग का उपाध्यक्ष नहीं है. पहले माना जा रहा था कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया आर्थिक सलाहकार बनेंगे. पनगढ़िया ने जेटली के बजट की तारीफ नहीं की है.

हालांकि उन्होंने इसकी कुछ बातों को चिदंबरम से बेहतर बताया है. मसलन टैक्स विवादों के निपटारे, इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण की गति तेज करने और उद्यमिता बढ़ाने के विचार का उन्होंने स्वागत किया है, पर राजकोषीय घाटे को 4.1 फीसदी पर रखने की चिदंबरम योजना की आलोचना की है. पनगढ़िया को लगता है कि यह बजट सरकारी अफसरों की सलाह से बना है. वे कहते हैं कि अगली फरवरी में देखना होगा कि अगला बजट किसी दृष्टि या दिशा का संकेत देता है.

सरकार बनने के बाद की मोदी की रीति-नीति में काफी बदलाव हुआ है. सबसे बड़ा बदलाव है मीडिया से बढ़ती दूरी. मीडिया की मदद से सत्ता में आये मोदी शायद मीडिया के नकारात्मक असर से घबराते हैं. पर मोदी की अगली परीक्षा संघ की अपेक्षाओं को लेकर होगी. संघ के अनुषंगी संगठन भारतीय किसान संघ ने जीएम फसलों के लिए होनेवाले परीक्षणों का विरोध किया है. श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध उसके अपने भारतीय मजदूर संघ की ओर से हो रहा है.

अभी पार्टी के तमाम नेता महत्वपूर्ण पद पाने की आशा में हैं. अगले हफ्ते संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद राजनीति व्यावहारिक धरातल पर आयेगी. इस लिहाज से मोदी सरकार की वास्तविक परीक्षा की घड़ी अब आ रही है.

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