गरिमामय व्यंग्य से भली होगी संसद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह चिंता बिल्कुल जायज है कि संसद की कार्यवाही से हास्य-व्यंग्य का पुट कम होता जा रहा है. लेकिन उसका कारण उनके विचार में यह है कि सांसदों को यह आशंका रहती है कि मीडिया उनकी चुटकियों के बेजा मायने निकाल सकता है. इस बात पर हास्य अभिनेता ग्रुचो मार्क्‍स का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 14, 2014 1:16 AM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह चिंता बिल्कुल जायज है कि संसद की कार्यवाही से हास्य-व्यंग्य का पुट कम होता जा रहा है. लेकिन उसका कारण उनके विचार में यह है कि सांसदों को यह आशंका रहती है कि मीडिया उनकी चुटकियों के बेजा मायने निकाल सकता है.

इस बात पर हास्य अभिनेता ग्रुचो मार्क्‍स का कथन अनायास ही याद आ जाता है कि ‘राजनीति परेशानियों को खोजते रहने और उन्हें हर जगह खोजने, उनका गलत आकलन और गलत उपचार करने की कला है.’ हाल की राजनीतिक टीका-टिप्पणियों पर नजर दौड़ाएं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्हीं बातों पर विवाद उठा, जो व्यंग्य की स्वस्थ सीमाओं को लांघ कर व्यक्तिगत अपमान के इरादे से कही गयी थीं. बीते लोकसभा चुनाव के ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं.

संसद में अक्सर सदस्यों को माफी मांगनी पड़ती है. राजनीतिक जीवन में व्यंग्य की कमी का कारण मीडिया का कथित भय नहीं, बल्कि राजनेताओं में लोकतांत्रिक व सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति निरंतर कम होती संवेदनशीलता और लापरवाही है. व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के आचार-व्यवहार से हमारे वर्तमान राजनेताओं को न सिर्फ प्रत्युत्पन्नमति की विलक्षणता की सीख लेनी चाहिए, बल्कि उनको साध कर किये गये व्यंग्य को गरिमा से सहन करने और उसका आनंद लेने की विशिष्टता का भी अनुकरण करना चाहिए. हास्य-व्यंग्य का अर्थ विरोधियों को नीचा दिखाना नहीं होता है. यह गंभीर बात को असरदार बनाने की क्षमता है. टीका-टिप्पणियों में न सिर्फ साध्य व्यक्ति की, बल्कि कहनेवाले को अपनी और संसद जैसी संस्था की गरिमा का भी पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए. इस बीच राष्ट्रपति ने उचित ही सांसदों का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया है. शोर-शराबे और अपमानजनक टिप्पणियों से संसद का महत्व कम होता है. राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री की टिप्पणियों पर सांसदों को गहरा आत्ममंथन करना चाहिए. व्यंग्यकार विल रोजर्स ने अपने देश अमेरिका के बारे में कभी कहा था कि ‘लोग हास्य कलाकारों को गंभीरता से और नेताओं को चुटकुलों की तरह लेने लगे हैं.’ अगर हमारे राजनेताओं में जरूरी सुधार न हुआ, तो यह बात उन पर भी लागू होते देर नहीं लगेगी.

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