विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस पार्टी को एक आक्रामक और करिश्माई नेता की आवश्यकता है, जो कि राहुल गांधी नहीं हैं. प्रियंका गांधी निश्चित रूप से उनसे अधिक करिश्माई नेता हैं और आम लोगों से बेहतर संवाद स्थापित करती हैं..
प्रियंका गांधी को कांग्रेस पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी के साथ लाने की चर्चाएं एक बार फिर गर्म हैं, जिनकी वजह से उन्हें बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस संबंध में लगायी जा रही तमाम अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने एक संक्षिप्त बयान में कहा, ‘कांग्रेस पार्टी में मेरे द्वारा विभिन्न पद संभालने के बारे में लगातार लगायी जा रहीं अटकलें और जिस तरीके से यह मुद्दा फायदा उठाने के इरादे से खास क्षणों में उठाया गया है, वह सही नहीं है. मैं सभी संबंधित लोगों के प्रति बहुत आभारी रहूंगी, अगर वे इस तरह की बेबुनियाद अफवाहों को हवा देने से बचते हैं.’
यह एक असामान्य बयान है. यह सही है कि गांधी परिवार भी अन्य ताकतवर खानदानों की तरह राहुल गांधी के प्रभाव में कमी को लेकर चौकन्ना है और इस तरह की कोई भी चर्चा नहीं चाहता, लेकिन ऐसी बातें लंबे समय से कही-सुनी जा रही हैं और गांधी परिवार ने हमेशा इनकी अनदेखी की है. तो, फिर इस समय प्रियंका गांधी ने बयान देने की जरूरत क्यों महसूस की? दरअसल, इस बार फर्क यह है कि पार्टी के सदस्यों ने भी मीडिया में खुले रूप से कहना शुरू कर दिया कि उनका (प्रियंका गांधी का) पार्टी में आना आवश्यक है.
कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा ने कहा, ‘देशभर में हर कोई चाहता है कि गांधी परिवार के हर सदस्य को राजनीति में आना चाहिए. हम चाहते हैं कि परिवार के तीनों सदस्य कांग्रेस पार्टी की कमान संभालें.’ परिवार के सबसे भरोसेमंद अनुयायियों में से एक ऑस्कर फर्नाडिस ने कहा कि ‘कांग्रेस में प्रियंका को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए’ और ‘गांधी परिवार का एक और सदस्य पार्टी को मजबूती देगा.’ इनसे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री केवी थॉमस ने बयान दिया था, ‘प्रियंका गांधी को मैदान में आना चाहिए. उन्हें माता सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के साथ एक टीम के रूप में काम करना चाहिए. प्रियंका एक बड़ी योद्धा हैं. यह हमने पिछले लोकसभा चुनाव में देखा है. बहुत-से लोग उनमें उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं. वे आम लोगों को आकर्षित करने की क्षमता रखती हैं.’ इन बयानों से स्पष्ट है कि कांग्रेस में कुछ लोग, और शायद बहुत-से लोग, यह मानते हैं कि राहुल गांधी असफल हो गये हैं. ये लोग गांधी परिवार को कांग्रेस के नेतृत्व से अनिवार्य रूप से बेदखल नहीं करना चाहते हैं. इनकी इच्छा बस यह है कि उनमें से कोई और जिम्मेवारी संभाले.
सवाल है कि ये लोग आखिर ऐसा क्यों कह रहे हैं? इसका जवाब यह जानने के लिए, आइए, पहले यह देखते हैं कि कांग्रेस में समस्या क्या है. इस वर्ष तक कांग्रेस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत थी. इससे पूर्व कांग्रेस ने अपना बहुमत तभी खोया था, जब विपक्ष उसके खिलाफ, लामबंद हुआ था, जैसा कि 1977 और 1989 में हुआ. जब यह लामबंदी नहीं चल सकी, जो कि आम तौर पर हुआ, तो कांग्रेस की वापसी हुई. इसे अटल बिहारी बाजपेयी के कांग्रेस-विरोधी गठबंधन द्वारा केंद्रीय सत्ता में पांच वर्ष पूरा किये जाने से पहले तक भारत की स्वाभाविक सत्ताधारी पार्टी माना जाता था.
अपने नेतृत्व कौशल के बूते नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व को निर्णायक रूप से समाप्त कर दिया है. इस साल हुए लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत में हिस्सेदारी और जीते गये सीटों के आंकड़ों के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी इस समय भारत की सबसे प्रमुख राजनीतिक शक्ति है. इस वर्ष से पूर्व कांग्रेस के समर्थक कह सकते थे कि ‘कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी है (कहने का अर्थ यह कि उनकी उपस्थिति दक्षिण और पूर्वी कोने में भी है), जबकि भाजपा सहित किसी अन्य दल के साथ ऐसा नहीं है.’ लेकिन, अब यह बात सही नहीं है. दक्षिण भारत में, तमिलनाडु में पहली बार भाजपा ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया है. उत्तर और पश्चिम भारत में भी कांग्रेस स्थायी विपक्ष की भूमिका तक सीमित कर दी गयी है. गुजरात में यह भूमिका पार्टी दो दशकों से निभा रही है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है, जबकि राजस्थान और महाराष्ट्र में संख्याएं गांधी परिवार के लिए गंभीर चिंता का संकेत हैं.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने स्वयं को उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में पुनर्जीवित किया है, जबकि कुछ वर्ष पहले तक उत्तर प्रदेश में वापसी करती नजर आ रही कांग्रेस अब प्रतियोगिता में भी नहीं दिख रही है. इसलिए गांधी परिवार अब यह मान कर नहीं चल सकता है कि कांग्रेस पार्टी इस विषम परिस्थिति से स्वाभाविक रूप से उबर जायेगी, जैसा कि पंद्रह वर्ष पहले सोनिया गांधी के कार्यभार संभालने के बाद हुआ था. आज यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के हाथों गंवा देनेवाले राज्यों में उसकी वापसी आसानी से संभव नहीं हो पायेगी, क्योंकि भाजपा ने उनका प्रबंधन बहुत कुशलता से किया है. इतना ही नहीं, पूरे देश में हर जगह गांधी परिवार के करिश्मे में कमी आयी है. शायद परिवार भी यह स्वीकार करता है, क्योंकि पार्टी की बेचैनी अब खुल कर सामने आ गयी है.
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी की इस दयनीय स्थिति में कोई बदलाव ला सकती हैं. मेरे विचार में, विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस पार्टी को एक आक्रामक और करिश्माई नेता की आवश्यकता है, जो कि राहुल गांधी नहीं हैं. प्रियंका गांधी निश्चित रूप से उनसे अधिक करिश्माई नेता हैं और आम लोगों से बेहतर संवाद स्थापित करती हैं. जाहिर है, इस समय वह कांग्रेस पार्टी के लिए राहुल गांधी से बेहतर साबित होंगी.
बहरहाल, कांग्रेस के पतन का एक दूसरा पहलू भी है. वह है भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्व की गुणवत्ता. भारतीय राजनीति में प्रभुत्वशाली राजनीतिक ताकत बन चुके नरेंद्र मोदी आसानी से किनारे नहीं किये जा सकते हैं. ऐसे में, कांग्रेस को अपने पतन की गति को रोकने के लिए अत्यंत गंभीर प्रयास करने की जरूरत है. एक समाचार रिपोर्ट में बताया गया है कि इलाहाबाद शहर में कुछ दिनों पहले एक बैनर लगाया गया था, जिसमें लिखा हुआ था कि ‘कांग्रेस का मुंह, प्रियंका इज कमिंग सून’ यानी कांग्रेस का चेहरा, प्रियंका गांधी जल्द ही राजनीति में प्रवेश कर रही हैं. तो हम भी इसका इंतजार करेंगे.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
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