प्रोफाइल में तिरंगा नहीं है देशभक्ति

मुंगेर का जमालपुर रेलवे स्टेशन. सुबह के सात बजनेवाले थे. यात्रियों की भारी भीड़ थी. एक नेत्रहीन बच्चा लड़कों के एक समूह के पास पहुंचा. उसने कहा, ‘रात से कुछ खाया नहीं हूं. कुछ पैसे दे दीजिए भैया.’ लड़के वाट्सएप पर प्रोफाइल पिक्चर में तिरंगा लगाने में व्यस्त थे. मोबाइल दिखा कर खुद को एक-दूसरे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 14, 2014 11:51 PM

मुंगेर का जमालपुर रेलवे स्टेशन. सुबह के सात बजनेवाले थे. यात्रियों की भारी भीड़ थी. एक नेत्रहीन बच्चा लड़कों के एक समूह के पास पहुंचा. उसने कहा, ‘रात से कुछ खाया नहीं हूं.

कुछ पैसे दे दीजिए भैया.’ लड़के वाट्सएप पर प्रोफाइल पिक्चर में तिरंगा लगाने में व्यस्त थे. मोबाइल दिखा कर खुद को एक-दूसरे से बड़ा देशभक्त बताने में लगे थे. एक लड़के ने जवाब दिया, ‘हमने ठेका ले रखा है क्या? चल भाग यहां से.’ बच्चा चला गया और लड़के दोबारा लग गये देशप्रेम की बातें करने में. कुछ दिनों पहले मेरे वाट्सएप्प पर भी मैसेज आया. लिखा था, ‘तिरंगे को प्रोफाइल पिक बनाओ, क्योंकि हम भारतीय हैं.’ मैसेज इतनी तेजी से फैला कि दो दिनों में वाट्सएप पर सभी के प्रोफाइल पिक में तिरंगा ही नजर आने लगा. देशप्रेम रस में वाट्सएप गोते लगाने लगा.

हद तो तब हो गयी, जब एक और मैसेज आना शुरू हुआ. इसमें गलती से केसरिया की जगह लाल रंगवाला तिरंगा न लगाने की ताकीद की गयी थी. लिखा था, ‘यह फोटो कश्मीरी आतंकवादियों के साइबर हमले का ही अगला कदम है. इसको उन्होंने मोबोला (मोबाइल इबोला) नाम दिया है. यह फोटो एक स्लीपर सेल की तरह काम करेगा और 15 अगस्त को जब आतंकवादी इसे एक्टिवेट करेंगे, तब यह आपका सारा निजी डाटा उन्हें भेज देगा. इस मैसेज को जितनी जल्दी हो सके, अपने सभी दोस्तों को आगे बढ़ायें और भारत को साइबर हमले से बचायें.’ ट्रेन में बैठे-बैठे मैंने जमालपुर स्टेशन की घटना और वाट्सएप पर फॉरवर्ड हो रहे मैसेज के बारे में सोचा. जो लड़के प्रोफाइल पिक में तिरंगा लगा कर खुद को देशभक्त बताने में लगे थे, क्या उन्हें उस बच्चे की भूख मिटाने में देशभक्ति नहीं दिखी? मोबाइल में तो तिरंगा फहरा लिया, लेकिन दिलों में कितनों ने तिरंगा फहराया? खुद को देशभक्त तो सभी कहते हैं, लेकिन जब लोकतंत्र का महापर्व, चुनाव आता है, तो यह संख्या घट क्यों जाती है? रेल में सुविधाएं नहीं बढ़ाने, सड़कों की स्थिति नहीं सुधारने, यातायात के साधन नहीं बढ़ाने और महंगाई के लिए सीधे सरकार को जिम्मेवार ठहराना शुरू कर देते हैं, लेकिन हममें से कितने लोग हैं, जो रेल में पंखों और लाइट की चोरी रोकने की कोशिश करते हैं? जब सड़क बन रही होती है, तो क्या हमारे बीच से कोई जानकार यह जांचने की कोशिश करता है कि जिस निर्माण सामग्री का प्रयोग हो रहा है, वह कितनी मजबूत है? बसों की छतों पर हम यात्र करते हैं. ऑटोवाले हमसे मनमाना किराया वसूलते हैं, लेकिन हममें से कितने ऐसे लोग हैं, जो इसका प्रतिरोध करते हैं? छेड़खानी और बलात्कार रोकने की बातें करते हैं, लेकिन हम खुद लड़कियों को कितना सम्मान देते हैं और उनकी रक्षा करने के लिए कितना तत्पर रहते हैं? ये सवाल हमें झकझोरते हैं, लेकिन हम खामोश रहते हैं. इनका जवाब ढूंढ़े बिना स्वतंत्रता दिवस की खुशी अधूरी है.

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

Next Article

Exit mobile version