योजना आयोग का नया रूप

विषय मात्र योजना आयोग का नहीं, बल्कि सरकारी विभागों का है. जनभागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए, तभी राष्ट्र में एकमत बनेगा और देश आगे बढ़ेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिये संबोधन में योजना आयोग का आकार बदलने की बात कही है. आपने कहा कि योजना आयोग के वर्तमान रूप को समाप्त कर इसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 19, 2014 12:57 AM

विषय मात्र योजना आयोग का नहीं, बल्कि सरकारी विभागों का है. जनभागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए, तभी राष्ट्र में एकमत बनेगा और देश आगे बढ़ेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम दिये संबोधन में योजना आयोग का आकार बदलने की बात कही है. आपने कहा कि योजना आयोग के वर्तमान रूप को समाप्त कर इसे थिंक टैंक में बदला जायेगा. पिछली सरकार ने योजना आयोग के मूल्यांकन के लिए कमेटी बनायी थी. कमेटी ने सुझाव दिया था कि आयोग को समाप्त कर दिया जाये और इसके स्थान पर थिंक टैंक की स्थापना की जाये. विचार अच्छा है, परंतु उपचार से पहले रोग के कारणों को समझना जरूरी है.

आयोग का मुख्य उद्देश्य देश के विकास का रोड मैप बनाना था. विभिन्न मंत्रलयों की नीतियों में सामंजस्य बिठाना आयोग की जिम्मेवारी थी. जैसे ऊर्जा मंत्रलय जंगल काटना चाहता है, जबकि पर्यावरण मंत्रलय उनकी रक्षा करना चाहता है. ऐसे में योजना आयोग का काम है कि दोनों पहलुओं के बीच रास्ता निकाले, जैसा कि आयोग द्वारा बनायी गयी ‘इंटिग्रेटेड इनर्जी पॉलिसी’ में प्रयास किया गया है. इस रपट में दिये गये सुझावों से मैं सहमत नहीं हूं, परंतु इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि आयोग ने सामंजस्य बनाने का प्रयास किया. अत: यह कहना अनुचित है कि प्लानिंग कमीशन (योजना आयोग) फेल हो गया.

वर्तमान में सूचना क्रांति ने हर व्यक्ति के लिए सरकारी नीतियों की जानकारी पाना आसान बना दिया है. केवल 5 साल में वोट देकर और सत्ता परिवर्तन करके अब जनता संतुष्ट नहीं है. वह चाहती है कि सरकार उसकी सुने और बताये कि उसके द्वारा दिये जानेवाले सुझावों को लागू करने में समस्या क्या है. आज कई देशों में ऐसी पहल की जा रही है. दक्षिण अफ्रीका के प्लानिंग कमीशन ने राष्ट्र के विकास के प्लान को अपनी वेबसाइट पर डालने के बाद जनता से सुझाव मांगा. कमीशन ने 72 घंटे तक जनता से इंटरनेट के जरिये वार्ता की. कमीशन के अध्यक्ष स्वयं लैपटाप पर लोगों के प्रश्नों के जवाब दे रहे थे. इसी प्रकार के सुधार न्यूजीलैंड, कनाडा और इंग्लैंड में लागू किये गये हैं.

योजना आयोग की मूल कमी है कि वह जनता से कट चुका है. आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नजदीकी माने जाते थे. इनके दरवाजे पीएमओ के लिए खुले और जनता के लिए बंद थे. मेरा अनुभव इसको प्रमाणित करता है. मैंने पुस्तक लिखी थी, जिसमें हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लाभ-हानि का आकलन किया था. मैंने पाया कि हाइड्रोपावर के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों का आर्थिक मूल्य ज्यादा था और बिजली से मिलनेवाला लाभ कम. मैं आयोग के सदस्य किरीट पारीख से मिला. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे हाइड्रोपावर का अध्ययन करायेंगे. दुर्भाग्यवश उन्होंने न ही अध्ययन कराया, न ही मुङो दोबारा मिलने का समय दिया. तात्पर्य यह कि योजना आयोग अपने आकाओं का स्वार्थ साधने के लिए कार्य कर रहा था, न कि जनता के लिए. ऐसे में उसको समाप्त कर थिंक टैंक बनाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. वह भी आयोग जैसा ही काम करेगा. जनविरोधी आयोग के बदले जनविरोधी थिंक टैंक स्थापित करने में क्या लाभ है?

जरूरत है कि योजना आयोग का जुड़ाव जनता से स्थापित किया जाये, विशेषकर सरकार के आलोचकों से. आयोग को नया नाम देने से कोई हल नहीं निकलेगा. उसमें कार्यरत कर्मचारी अदृश्य शक्तियों एवं कॉरपोरेट घरानों द्वारा चलाये जाने के आदी हो चुके हैं. थिंक टैंक की भूमिका में भी ये इन्हीं शक्तियों द्वारा चलाये जायेंगे. आयोग अथवा थिंक टैंक में उस विषय से जुड़े सरकार के आलोचकों को स्थान मिले, तो सरकार का जनता से जुड़ाव होगा और तभी थिंक टैंक कामयाब होगा.

इसके अतिरिक्त सरकार के वर्तमान चरित्र में बदलाव के लिए प्रधानमंत्री को मेरे दो सुझाव हैं. पहला, सीएजी की तर्ज पर सरकार के हर विभाग का सामाजिक ऑडिट कराने की स्वतंत्र संस्था स्थापित की जाये. देखा जाये कि विभाग ने अपनी जिम्मेवारी का कितना निर्वाह किया है. लेकिन सीएजी की तरह यह संस्था स्वयं ऑडिट न करे. संस्था द्वारा ऑडिट कमेटी बनायी जाये, जिसमें जनप्रतिनिधि, शिक्षक, एनजीओ, वकील, पत्रकार और उस विभाग के उपभोक्ताओं को रखा जाये. उसमें उद्यमी और किसानों को रखा जाये. इस कमेटी के लिए जनसुनवाई करना अनिवार्य हो. इससे अधिकारियों में जनता के प्रति नरमी आयेगी.

दूसरा, सूचना के अधिकार की तरह ‘जवाब का अधिकार’ कानून बनाया जाये. आज यदि एक उपभोक्ता बिजली विभाग को ट्रांसफॉर्मर बड़ा करने को लिखता है, तो कोई जवाब नहीं मिलता है. अधिकारी के लिए अनिवार्य बना देना चाहिए कि वह जनता को बताये कि बड़ा ट्रांसफार्मर क्यों नहीं लगाया जा सकता है. ऐसी अनिवार्यता के चलते अधिकारी स्वयं ही जनता की बात सुनने लगेंगे. विषय मात्र योजना आयोग का नहीं, बल्कि सरकारी विभागों का है. जनभागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए, तभी राष्ट्र में एकमत बनेगा और देश आगे बढ़ेगा.

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

bharatjj@gmail.com

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