डीवीसी का कमान क्षेत्र लगातार लोड शेडिंग से त्रस्त है. घटते कोयला भंडार के कारण 6357.2 मेगावाट क्षमता की देश की इस पहली बहुद्देश्यीय परियोजना के उत्पादन में लगातार गिरावट जारी है. मेजिया की चार तथा बीटीपीएस की एक इकाई चालू नहीं हो पा रही.
कोयले के परिवहन की उपयुक्त व्यवस्था नहीं हो पाना तथा कोयला खरीदने लायक पैसे की घोर कमी इसकी सबसे बड़ी वजह है. सीटीपीएस में परिवहन में लगी कंपनियां लक्ष्य के अनुसार परिवहन नहीं कर पा रहीं, इसलिए वहां भी कंपनियों को काली सूची में डालने की प्रक्रिया जारी है.
निगम की साङोदार राज्य तथा केंद्र सरकार इन स्थितियों को गंभीरता से लेतीं, तो लगातार गिरते कोयला भंडार पर काबू पाया जा सकता था. संकट को गंभीरता से लिया जाता तो जिस झारखंड सरकार के पास लगभग सात हजार करोड़ रुपये बकाया हैं, वह हाथ पर हाथ धर कर बैठी नहीं रहती. कोल इंडिया का डीवीसी पर 1403.35 करोड़ रुपये बकाया है. अब इस कंपनी ने ‘नकद दो, माल लो’ स्कीम लागू कर दी है. पैसे देकर कोयला ले जाने की स्थिति रही नहीं. संकट की विचित्रता तो यह है कि पैसे के अभाव में पीएफ के पैसे से कर्मियों को वेतन देना पड़ा है.
लेकिन यह कब तक चलेगा? डीवीसी की एकमात्र बेरमो खदान में कार्यरत सुरक्षाकर्मियों को छह माह से वेतन के लाले पड़ गये हैं और मजबूर होकर इन पूर्व सैनिकों ने खदान कार्यालय के मुख्य द्वार पर पिछले दिनों ताला जड़ दिया था. सभी पूर्व सैनिक रक्षा मंत्रलय के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत यहां तैनात किये गये हैं. गत 12 अगस्त को अपर सचिव सह डीवीसी के प्रभारी अध्यक्ष आरएन चौबे ने झारखंड सरकार को बकाया देने को भी कहा था. कुछ ही दिन बाद पीआरओ को कहना पड़ा कि निगम के पास कोयला भंडार लगभग खत्म हो गया है और कोयला खरीदने के पैसे निगम के पास नहीं रहे. ऊर्जा मंत्री के एलान के बावजूद घोषित रकम निगम को नहीं दी जाती. इसे केंद्र और राज्य सरकार के बीच रार की तरह नहीं लिया जा सकता, क्योंकि निगम समेत दोनों सरकारें इसमें बराबर की साङोदार हैं. लेकिन कहीं न कहीं सरकारों की संवादहीनता है, जिसका खमियाजा निगम और उसका कमान क्षेत्र लगातार भुगत रहा है.