एक पुरानी कहावत है कि लोहा गरम हो, तभी चोट करना चाहिए. कुछ ऐसा ही किया झारखंड सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन ने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच पर बोलने खड़े हुए, तो दिल खोल कर बोले.
हूटिंग हुई, तो इसकी भी परवाह नहीं की. प्रधानमंत्री के सामने न कोई चिंता दिखी, न घबराहट. ऐसे समय जब राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, हेमंत ने झारखंड के परंपरागत विद्रोही तेवर को नरेंद्र मोदी के मंच से नयी सान दे दी है. इसमें आदिवासी मानस की साफगोई व ईमानदारी भी स्पष्ट झलकी. वह चाहते तो चर्चित ‘हुड्डा-हूटिंग’ के बाद महाराष्ट्र के सीएम की तरह पीएम की सभा में जाने से इनकार कर देते. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. हेमंत ने बेहद सधे ढंग से करीब 15 मिनट तक बिना रुके अपनी बात कही. हेमंत सोरेन का यह भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब आधे घंटे के भाषण से बीस न सही, तो उन्नीस भी नहीं रहा.
यदि इसे टीआरपी और टीवी के जरिये नेता का कद बनने के नजरिये से देखें, तो इस भाषण ने हेमंत के गिरते कद में एकाएक इजाफा कर दिया है. ऐसा इसलिए कि सोशल साइटों और देश के मीडिया ने मोदी की जगह हेमंत की दिल से कही गयी बातों को ज्यादा तवज्जो दी. भाषण के दौरान हूटिंग को भी हेमंत ने यह कहते हुए संभालने की कोशिश की कि मंच पर मौजूद प्रधानमंत्री एवं अन्य गणमान्य लोगों के कारण गंभीरता बनाये रखना जरूरी है. कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भी आहत हेमंत ने बेहद गंभीर सवाल दागा,
‘संघीय व्यवस्था में ये नयी परिपाटी शुरू हो गयी है. इस पर आदरणीय प्रधानमंत्री को संज्ञान लेना चाहिए.’ हेमंत ने अपने भाषण में मोदी की ‘चायवाली कहानी’ का भी जवाब देने की कोशिश की. उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री जी बोलते रहते हैं कि वह कभी चाय बेचते थे. मैं भी ऐसी मां का बेटा हूं जिसने अमीर लोगों के घरों के जूठे बरतन साफ कर मुङो पढ़ाया-लिखाया.’ कुल मिला कर एक सरकारी मंच जिस तरह राजनीति के लिए इस्तेमाल हुआ, उसमें भी हेमंत बीस रहे. अब यह काम हेमंत की पार्टी का है कि वह कुछ महीने में होने जा रहे झारखंड विधानसभा चुनाव में इसका किस तरह का इस्तेमाल करती है. इतना जरूर है कि नरेंद्र मोदी के लिए सजे मंच ने हेमंत सोरेन का कद थोड़ा बढ़ा तो दिया ही है.