अपराध और अपराधी के प्रति समाज के नजरिये में आये बदलाव से जुड़ी शनिवार की दो घटनाओं पर गौर करने की जरूरत है. पहला, मौर्य एक्सप्रेस में लूट और दो लोगों की हत्या के एक आरोपित की गिरफ्तारी के खिलाफ लोगों ने लखीसराय के पास मनकट्ठा स्टेशन पर ट्रैक जाम किया.
हंगामा इतना बढ़ा कि पुलिस को फायरिंग तक करनी पड़ी. दूसरी घटना भोजपुर जिले के उदवंत नगर थाना क्षेत्र की है, जहां मलथर गांव में अवैध शराब विक्रेता को पकड़ने गयी पुलिस टीम पर लोगों ने हमला किया और और उसे छुड़ा लिया. अपराध और उसके आरोपितों को जिस समाज ने अलग-थलग रखा, वही समाज अब आरोपित के पक्ष में खुलेआम खड़ा है. न केवल खड़ा है, बल्कि उसके लिए तोड़-फोड़ और हिंसा पर भी उतारू है. आखिर कहां जा रहा है हमारा समाज? क्या अपराधियों के पक्ष में खड़ा हो कर हम समाज के नवनिर्माण और विकास की कल्पना भी कर सकते हैं? भावी पीढ़ी के लिए कौन सा आदर्श पेश कर रहे हैं हम? ऐसी घटनाओं से तो छोटे बच्चे बड़े हो कर यही शिक्षा हासिल करेंगे कि किसी आपराधिक घटना के आरोपित के पक्ष में खड़ा होना जायज है.
थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाये कि जिस आरोपित को गिरफ्तार करने पुलिस की टीम गयी, वह निदरेष है. तो, क्या पुलिस पर हमला कर उसे छुड़ा लेना या ट्रैक को जाम कर सैकड़ों लोगों को परेशानी में डालने का अधिकार किसी को है? कोर्ट-कचहरी व थाना-पुलिस की अपनी व्यवस्था होती है. ये सभी नियम-कायदे से बंधे होते हैं.
यदि बनी-बनायी व्यवस्था को हम तोड़ेंगे, तो फिर इससे अराजकता ही फैलेगी. किसी निदरेष को किसी मामले में फंसाया गया है, तो इस बारे में भी व्यवस्था है. थाना के स्तर पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी के खिलाफ कार्रवाई किये जाने पर इसके सुपरविजन के लिए डीएसपी, एसपी, डीआइजी और आइजी तक के पद होते हैं. दरअसल, समाज में अपराध को गौरवान्वित करने और इस रास्ते से सफलता हासिल करने वाले को नायक के रूप में पेश करने जो परिपाटी शुरू हुई है, उसी की कड़ी है किसी आरोपित के पक्ष में खड़ा हो जाना. ऐसी परिपाटी को हर हाल में रोकना ही होगा, क्योंकि अपराध को किसी भी हाल में जायज नहीं ठहराया जा सकता है.