काश! अपनी मौत पर जश्न देख पाते
यूआर अनंतमूर्ति जी, काश! अपनी मौत के बाद हुई आतिशबाजी आप देख पाते. कर्नाटक में भाजपा और अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों का जश्न देख पाते. मरने के बाद ही सही, आपको यकीन तो आ जाता कि आप कितने दुरुस्त थे. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश छोड़ देने की बात कहने के कुछ दिनों बाद […]
यूआर अनंतमूर्ति जी,
काश! अपनी मौत के बाद हुई आतिशबाजी आप देख पाते. कर्नाटक में भाजपा और अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों का जश्न देख पाते. मरने के बाद ही सही, आपको यकीन तो आ जाता कि आप कितने दुरुस्त थे. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर देश छोड़ देने की बात कहने के कुछ दिनों बाद शायद आपको अपनी ‘गलती’ का एहसास हुआ था. तब आपने कहा था, ‘‘मैं जज्बात में आकर कुछ ज्यादा ही बोल गया था.’’ काश! एक बार आप अपनी मौत पर उन्मादियों का वह नाच देख पाते, आपको यकीन आ जाता कि आपने कतई ज्यादा नहीं बोला था. मोदी जी ने तो कुत्ते के बच्चे के भी गाड़ी के नीचे आकर मरने पर दुख होने की बात कही थी. मगर ऐसा लगता है कि उनके भक्त आपको कुत्ते के बच्चे से भी गया-गुजरा समझते थे. वैसे किसी गये-गुजरे की मौत पर भी हम दुखी भले न हों, पर जश्न तो नहीं ही मनाते हैं. जश्न तो दुश्मन की मौत पर भी मनाने का रिवाज नहीं है.
काश! ये जश्न मनानेवाले, अपने आदर्श नाथूराम गोडसे से ही कुछ सीख पाते. वह जिसके खून का प्यासा था, उसे गोली मारने की हिम्मत तो रखता था. एक निहत्थे, बीमार, बूढ़े पर गोली चलाना कोई मामूली हिम्मत का काम है! इसके लिए 56 इंच की छाती चाहिए होती है. अब इन कायरों को क्या नाम दें, जो बीमारी से आपकी मौत पर पटाखे फोड़ रहे हैं? ‘बच्च-बच्च राम’ का नारा देनेवालों ने, लगता है राम से भी कुछ नहीं सीखा. रावण को मारने के लिए राम ने क्या-क्या जतन नहीं किया! लेकिन, जब रावण को मार पाने में कामयाब हुए, तो राम ने जश्न नहीं मनाया. बल्कि, रावण की मौत से पहले उनसे ज्ञान लेने के लिए लक्ष्मण को भेजा. मोदी जी के भक्तों की नजर में अगर आप रावण भी थे, तो आपके अंतिम समय में ज्ञान लेने तो कम से कम आपके पास आ ही सकते थे. यकीनन, आप जैसे महान लेखक के पास आकर उन्हें निराश नहीं होना पड़ता.
काश! आप प्रेम और रासलीला की नगरी वृंदावन में उगायी जा रही नफरत के जहर की फसल देख पाते. वहां उत्तर प्रदेश भाजपा की ‘चिंतन बैठक में ‘लव जेहाद’ पर भड़काऊ भाषणों को सुन पाते. दो इनसानों की मोहब्बत के बीच मजहब की दीवार खड़ी कर सियासत का महल बनता देख पाते. ‘लव जेहाद’ के नाम पर यूपी से लेकर झारखंड तक को फिरकापरस्ती की आग में जलाने की कोशिश देख पाते. काश! आप सब यह देख पाते, तो आपको बिल्कुल पछतावा नहीं होता कि आपने कुछ गलत बोल दिया था. खैर, मरने के बाद आप तनाव कतई नहीं लीजिएगा. जहां भी हों, चैन से गाइए- सरकती जाये है रुख से नकाब..आहिस्ता..आहिस्ता.
-आपका एक डरा हुआ पाठक
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
satyajournalist@gmail.com