‘लव जिहाद’ की असलियत

आज का खतरनाक दौर धर्म को अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करने का है. जितनी ज्यादा मार-काट होगी, वोटों का उतना अधिक ध्रुवीकरण होगा. ‘लव जिहाद’ का नारा भी शायद इसीलिए बुलंद किया जा रहा है. पिछले कई दिनों से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि भारत में आइएसआइ की मदद से ‘लव जिहाद’ जैसा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2014 1:31 AM

आज का खतरनाक दौर धर्म को अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करने का है. जितनी ज्यादा मार-काट होगी, वोटों का उतना अधिक ध्रुवीकरण होगा. ‘लव जिहाद’ का नारा भी शायद इसीलिए बुलंद किया जा रहा है.

पिछले कई दिनों से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि भारत में आइएसआइ की मदद से ‘लव जिहाद’ जैसा कोई षड्यंत्र चल रहा है. इसमें मुसलमान लड़के हाथ में कलावा पहनते हैं. तिलक लगाते हैं. अपना हिंदू नाम बताते हैं. वे साजिश के तहत हिंदू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाते हैं. इनसे शादी करते हैं. और जब शादी हो जाती है, तो जबरन इन्हें मुसलमान बनाया जाता है. शादी हो जाने पर लड़कियां कर भी क्या सकती हैं! इसलिए मजबूरन मुसलमान बन जाती हैं. इसे एक तरीके से पाकिस्तान, पेट्रो डॉलर और इसलामिक आतंकवाद के सांस्कृतिक हमले के रूप में देखा जा रहा है.

वर्षो पहले मेरी एक मित्र की नौकरानी बेहद बीमार पड़ गयी. उसका नाम शांति था. मेरी मित्र उसका हालचाल जानने के लिए अस्पताल जा पहुंची. रिसेप्शन पर उसका नाम बताया, तो कुछ पता नहीं चला. वार्ड के अंदर पहुंची तो वहां शांति मिल गयी, लेकिन मेरी मित्र यह देख कर दंग रह गयी कि उसके पास अस्पताल का जो चार्ट टंगा था, उसमें उसका नाम सईदा लिखा था. मित्र ने जब इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि सईदा नाम बताने से उसे कहीं काम नहीं मिलता है, इसलिए उसकी तरह ही बहुत से मुसलमान अपना एक हिंदू नाम रख लेते हैं. आपको याद होगा, पहले मुसलमान अभिनेता भी अपना हिंदू नाम रखते थे. जैसे दिलीप कुमार, मीना कुमारी, मधुबाला आदि. इन्हें लगता था कि बंटवारे का दौर अभी-अभी गुजरा है. हो सकता है नाम से मुसलमान लगने पर उनकी फिल्में न चलें. हालांकि अब समय बदला है. सलमान, शाहरुख, आमिर, सैफ को अब अपना नाम बदलने की जरूरत नहीं पड़ती. उनकी फिल्में अकसर सौ-दो सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो जाती हैं.

कहने का अर्थ यह कि अगर हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों से शादी कर रही हैं, तो इसमें कोई चाल ही छिपी होगी, ऐसा कैसे कहा जा सकता है? यह भी तो संभव है कि कोई मुसलिम लड़का किसी हिंदू लड़की से सचमुच प्यार करता हो, मगर डरता हो कि लड़की उसका धर्म जानने पर उसे छोड़ देगी. जब गौरी ने शाहरुख खान से, रीना दत्त और किरन राव ने आमिर खान से, अमृता सिंह और करीना कपूर ने सैफ अली खान से, गीति सेन, सुभाषिनी अली और मीरा ने मुजफ्फर अली से, सुशीला उर्फ सलमा तथा हेलेन ने सलीम खान से, शुभलक्ष्मी ने उस्ताद अमजद अली खान से शादी की होगी, तब उनकी नजर में प्यार की कीमत थी या इन लोगों के धर्म की. यही नहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं सिकंदर बख्त, शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी की पत्नियां भी हिंदू हैं. आज की तरह ‘लव जिहाद’ का नारा लगानेवाले तो इनकी शादी ही न होने देते. ऐसे लोग तो जोधाबाई और बादशाह अकबर को भी देश निकाला दे देते. हम सब जानते हैं कि हमारे देश में चुनाव जीतने के लिए कैसी-कैसी तिकड़में की जाती हैं. धर्म और लड़कियों का मसला बेहद संवेदनशील होता है, इसलिए लोग इस पर जल्दी भड़क जाते हैं और मरने-मारने पर उतर आते हैं. ऐसे में लोगों को बांट कर राज करने की राजनीतिक दलों की साजिशें अकसर कामयाब हो जाती हैं.

इस समय रांची की खिलाड़ी तारा शाहदेव और मेरठ की एक लड़की के धर्मातरण के मसले ने आग में घी का काम किया है. रांची में तो हिंदू संगठनों ने एक दिन के बंद का आह्वान भी किया था.

कट्टरवादियों द्वारा आग लगाने की ऐसी कोशिशें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक अरसे से की जा रही थीं. पहली सफलता साल भर पहले दंगे के रूप में मिली. तब दो धर्मो के लोगों के बीच वोट के लिए जो दरार डाली गयी थी, गहरी ही होती जा रही है. ‘लव जिहाद’ कह कर मुसलमान लड़कों को टारगेट करना इस नफरत को और बढ़ायेगा. ऐसी बातें लड़कियों का पढ़ना-लिखना, बाहर निकलना दूभर कर देंगी. वह घर से निकलें या न निकलें, इसका फैसला कुछ शोहदे करने लगेंगे, जिन्हें किसी धर्म से कोई मतलब नहीं होता. ये तो पैसा लेकर दंगा-फसाद मचानेवाले होते हैं. कुछ दिन पहले एक चैनल ने पश्चिमी यूपी के कुछ कसबों और गांवों के बारे में एक कार्यक्रम दिखाया था. इसमें हाथ में लाठी, बल्लम थामे बहुत से धर्म के रक्षक दिखाई दे रहे थे, जो ‘लव जिहाद’ को हर हाल में रोकने की कसमें खा रहे थे. इनमें से न जाने कितने बेरोजगार रहे होंगे, जिन्हें मुसलमानों से हिंदू लड़कियों को बचाने का ‘रोजगार’ मिल गया था. इसमें उन्हें पैसे के साथ-साथ लोकल नेताओं का वरदहस्त भी मिल जायेगा.

कुछ दिन पहले एक लेख पढ़ा था, जिसमें बताया गया था कि मेवात में आज भी एक ही घर का एक बेटा मुसलमान हो सकता है, तो दूसरा हिंदू. इनके नामों से भी इनके धर्म का पता नहीं चलता है. लेकिन, आज का खतरनाक दौर धर्म को अपनी-अपनी तरह से परिभाषित करने का है. जितनी ज्यादा मार-काट होगी, वोटों का उतना अधिक ध्रुवीकरण होगा. ‘लव जिहाद’ का नारा भी शायद इसीलिए बुलंद किया जा रहा है.

क्षमा शर्मा

पत्रकार एवं साहित्यकार

kshamasharma1@gmail.com

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