सिर्फ शराबबंदी पर्याप्त नहीं है
तेजी से बढ़ता शराब का चलन देश-समाज के लिए खतरनाक संकेत है. केवल पाबंदी लगाने से इस बीमारी का इलाज असंभव है. कोरी पाबंदी से तो शराब के अवैध कारोबार को ही बल मिलता है. इससे सरकार या जनता को कोई लाभ नहीं होता. केरल में दस वर्ष के अंदर पूर्ण शराबबंदी लागू करने की […]
तेजी से बढ़ता शराब का चलन देश-समाज के लिए खतरनाक संकेत है. केवल पाबंदी लगाने से इस बीमारी का इलाज असंभव है. कोरी पाबंदी से तो शराब के अवैध कारोबार को ही बल मिलता है. इससे सरकार या जनता को कोई लाभ नहीं होता.
केरल में दस वर्ष के अंदर पूर्ण शराबबंदी लागू करने की घोषणा हुई है. सूबे के सभी 318 मयखाने अगले साल 31 मार्च तक बंद कर दिये जायेंगे. केवल पांच सितारा होटलों में ही शराब परोसी जा सकेगी. ध्यान रहे कि आज देश में प्रति व्यक्ति शराब खपत के मामले में केरल सबसे ऊपर है. वहां औसत खपत 8.3 लीटर है, जबकि राष्ट्रीय खपत आंकड़ा चार लीटर प्रति व्यक्ति है. प्रतिबंध से आम जनता खुश है, लेकिन शराब लॉबी विरोध पर उतर आयी है. नये-नये तर्क गढ़े जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि शराबबंदी से राज्य के पर्यटन और आइटी उद्योग बरबाद हो जायेंगे. अवैध शराब का कारोबार पनपेगा, जहरीली शराब से गरीब जनता की मौत की वारदात बढ़ेगी. हर साल शराब से होनेवाली नौ हजार करोड़ रुपये की आय बंद हो जायेगी.
शराबबंदी के विरोध के जवाब में कर्नाटक न्यूरोलॉजिकन साइंस के एक अध्ययन में बताया गया है कि शराब पर कर लगा कर यदि सरकार एक रुपया कमाती है, तो उसके दुष्परिणाम के कारण उसे दो रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यह नुकसान जन-स्वास्थ्य की हानि और कृषि व औद्योगिक उत्पादन में कमी आने से होता है. लेकिन शराब के पक्षधर लोग नुकसान का लेखा-जोखा केवल रुपयों में करते हैं. इससे होनेवाले सामाजिक व पारिवारिक घाटे का उसके पास कोई हिसाब नहीं है.
देश को शराबी बनाने का दोष सरकारी नीतियों को जाता है. शराब राज्य सरकारों की विषय सूची में आती है और आज अधिकतर राज्यों को अपनी आय के हर एक रुपये में से करीब बीस पैसे शराब की ब्रिकी से ही मिलते हैं. वैसे तो हमारी कल्याणकारी राज्य की कल्पना में शराब से छुटकारे की घोषणा की गयी है, किंतु अधिकतर राज्य सरकारों का आचरण इसके एकदम उलट है. गुजरात और उत्तर पूर्व के तीन राज्यों- नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर- को छोड़ शेष भारत में शराब की ब्रिकी पर कोई प्रतिबंध नहीं है. जब भी किसी राज्य को पैसे की किल्लत होती है, वह झट से शराब पर टैक्स बढ़ा देता है. शराब उद्योग की विकास दर तीस प्रतिशत की तूफानी रफ्तार से बढ़ रही है. एसोसिएट चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्ययन के अनुसार, 2015 तक देश में शराब की खपत दो सौ खरब लीटर हो जायेगी. फिलहाल दुनिया में शराब बिक्री के मामले में भारत का स्थान तीसरा है, लेकिन जिस रफ्तार से तरक्की हो रही है, उसे देख कर लगता है कि शीघ्र ही हम पहले स्थान पर पहुंच जायेंगे.
सैद्धांतिक तौर पर शराब की खपत कम करने के लिए ऊंची कर दर होना उचित है, लेकिन प्रश्न यह है कि आबकारी कर, बिक्री कर, इम्पोर्ट फीस की ऊंची दर के बावजूद शराब की खपत में कमी क्यों नहीं दिखाई देती है? देश में शराब की कुल बिक्री का दो-तिहाई धंधा अवैध है. इस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. यह शराब खतरनाक श्रेणी में आती है और इसके कारण हर साल सैकड़ों गरीब बच्चे अनाथ हो जाते हैं. आज शराब के आदी हो चुके गरीब तबके की माली हालत बिगड़ती जा रही है. दरअसल, राज्य सरकारें शराब की बिक्री के लोभ में बुरी तरह धंसी हुई हैं. इसका कारण भी है. उन्हें शराब पर 600 फीसदी तक कर मिलता है. इस लालच के कारण तमिलनाडु, केरल और दिल्ली में शराब के खुदरा व्यापार पर राज्य सरकारों का एकाधिकार है. अन्य राज्यों में शराब के ठेके छूटते हैं, जो भ्रष्टाचार का बड़ा स्नेत हैं. इन ठेकों को पानेवाले लोग करोड़पति-अरबपति हैं.
अधिकृत तौर पर शराब उद्योग तीन श्रेणियों में बंटा है. पहली श्रेणी है, भारत में निर्मित विदेशी शराब की. भारत के शराब बाजार में इसकी हिस्सेदारी 31 फीसदी है. शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देकर सरकार महंगी शराब के बाजार को विस्तार देना चाहती है. आये दिन गली-मोहल्लों में अंगरेजी शराब के ठेके खुल रहे हैं. दूसरी श्रेणी में बीयर उद्योग है, जिसका 33 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है. देश की नौजवान पीढ़ी में बीयर को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है. तीसरी श्रेणी देसी शराब की है और देश में इसकी अधिकृत बिक्री 36 प्रतिशत तक है. वैसे जानकार इस आंकड़े पर विश्वास करने को राजी नहीं हैं. चौथी श्रेणी में शराब के अवैध करोबार को रखा जा सकता है.
तेजी से बढ़ता शराब का चलन देश-समाज के लिए खतरनाक संकेत है. केवल पाबंदी लगाने से इस बीमारी का इलाज असंभव है. कोरी पाबंदी से तो शराब के अवैध कारोबार को ही बल मिलता है. इससे सरकार या जनता को कोई लाभ नहीं होता. शराब की लत छुड़ाने और नौजवान पीढ़ी को इससे विमुख करने के लिए अलग रणनीति बनाने की जरूरत है. नौजवान पीढ़ी को शराब के चंगुल से निकालने के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को साथ मिल कर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान छेड़ना चाहिए. देश के आर्थिक विकास और सामाजिक ढांचे की रक्षा के लिए यह किया जाना नितांत आवश्यक है.
धर्मेद्रपाल सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
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