‘लव जेहाद’ और ‘जन-धन’ के बीच
सुबह के 11 बज चुके हैं. लेकिन पप्पू पनवाड़ी की दुकान अभी तक नहीं खुली है. हमारे जैसे वफादार ग्राहक पान की तलब दबाये उनका इंतजार कर रहे हैं. ‘समय बिताने के लिए करना है कुछ काम’ हम भारतीयों (आप यहां मोहन भागवत जी और उनके जटाजूट से प्रेरणा लेकर भारतीयों की जगह हिंदुओं शब्द […]
सुबह के 11 बज चुके हैं. लेकिन पप्पू पनवाड़ी की दुकान अभी तक नहीं खुली है. हमारे जैसे वफादार ग्राहक पान की तलब दबाये उनका इंतजार कर रहे हैं.
‘समय बिताने के लिए करना है कुछ काम’ हम भारतीयों (आप यहां मोहन भागवत जी और उनके जटाजूट से प्रेरणा लेकर भारतीयों की जगह हिंदुओं शब्द का इस्तेमाल करना चाहें, तो आपकी मर्जी) का सूत्र वाक्य है, इसलिए ‘पप्पू को देर क्यों हो रही है?’ विषय पर गहन चर्चा शुरू हो गयी.
शुरुआत रुसवा साहब ने की, ‘‘सब ‘लव जेहाद’ का चक्कर है.’’ यह सुन कर मुन्ना बजरंगी का चेहरा तनने लगा. वहां मौजूद काले कुत्ते को छोड़ सभी इसकी वजह समझ गये. दरअसल, मुन्ना बजरंगी का साफ मानना है कि ‘लव जेहाद’ तभी होता है, जब कोई मुसलमान लड़का हिंदू लड़की से शादी करे. अगर हिंदू लड़का मुसलिम लड़की से शादी करे, तो यह राष्ट्रीय और सांप्रदायिक एकता की मिसाल होती है. अगर आपने भी ‘लव जेहाद’ पर टीवी-अखबारी ज्ञान कुछ ज्यादा ही घोटा डाला है, तो पप्पू नाम सुनते ही आपके दिमागी घोड़े दौड़ने लगेंगे, क्योंकि बार-बार बताया जा रहा है कि ‘लव जेहादी’ पप्पू, सोनू, मोनू, गुड्डू, मुन्ना जैसे नाम रखते हैं, जिससे हिंदू, मुसलमान का पता न चले. शुक्र है कि अभी ‘लव जेहादिनों’ की चर्चा नहीं है, वरना मुन्नी और चिकनी चमेली को भी शीला और शब्बो से सीख लेने का फरमान सुनाया जाता. तो आप अपने दिमागी घोड़ों को फिलहाल अस्तबल में बांधिए, क्योंकि पप्पू बिलाशक हिंदू हैं.
अब सवाल है कि रुसवा साहब ने एक हिंदू को ‘लव जेहाद’ से जोड़ने की जुर्रत कैसे की! मुन्ना बजरंगी का तना हुआ चेहरा देख, रुसवा साहब सफाई देने के अंदाज में बोले, ‘‘आप लोग गलत समझ रहे हैं.. बात ऐसी है कि जब से रंजीत कोहली उर्फ रकीबुल का मामला सामने आया है, पप्पू रोज चार-चार अखबार खरीद रहे हैं. और, दुकान बंद करके घर पहुंचने के बाद देर रात तक ‘लव जेहाद’ में पीएचडी करते रहते हैं.
इसी चक्कर में सुबह उठने में देर हो गयी होगी और दुकान अब तक नहीं खुल पायी है.’’ यह चर्चा आगे बढ़ती कि पप्पू पनवाड़ी नमूदार हुए. चेहरा चमक रहा है, गोया कि जग जीत कर आ रहे हों. पप्पू ने लोगों से ‘कुछ कहने’ का हक छीनते हुए (मत भूलिए, लोगों का काम है कहना..) एलान किया कि जन-धन योजना में बैंक खाता खुलवाने गये थे. मैंने कहा, ‘‘कितने खाते खुलवाओगे भाई! एक-डेढ़ साल पहले डायरेक्ट कैश सब्सिडी के लिए भी तुमने खाता खुलवाया था. और, उससे भी पहले एक खाता तुमने अपने काम के लिए खुलवाया था, जिसमें मैं गवाह बना था.’’ पप्पू मुस्कराये, ‘‘हम जानते हैं कि यह झुनझुना है, मगर उम्मीद बनी रहे इसलिए कुछ न कुछ करते रहना पड़ता है. जन-धन चलानेवाले भी जानते हैं कि अंत में वोट ‘लव जेहाद’ से ही मिलेंगे.’’ सचमुच पप्पू पास हो चुका है!
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
satyajournalist@gmail.com