समाज व राज व्यवस्था को क्यों चाहिए चरित्र?
।। राहुल सिंह ।। हाल ही में पेंगुइन से एक किताब आयी है – समरसिद्धा. पूर्व में पत्रकार रह चुके लेखक संदीप नैयर ने सातवीं-आठवीं सदी पूर्व के भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी अपनी इस किताब में उस समय के समाज, राज व्यवस्था के चरत्रि का बारीक विश्लेषण किया है. लेखक ने बेहद बारीकी व […]
।। राहुल सिंह ।।
हाल ही में पेंगुइन से एक किताब आयी है – समरसिद्धा. पूर्व में पत्रकार रह चुके लेखक संदीप नैयर ने सातवीं-आठवीं सदी पूर्व के भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी अपनी इस किताब में उस समय के समाज, राज व्यवस्था के चरत्रि का बारीक विश्लेषण किया है. लेखक ने बेहद बारीकी व कुशलता से बताया कि कैसे राजव्यवस्था से जुडे लोगों व समाज के महत्वपूर्ण लोगों का चारित्रिक पतन होता है, तो वहां से समाज के पतन की शुरुआत होती है. आम जनता का जीवन अराजक हो जाता है और लोगों को उचित न्याय नहीं मिल पाता और राज व्यवस्थासमाज के ताकतवर दोषी लोगों के साथ खड़ी नजर आती है.
बाहरी शक्तियां वैसे राज्य व शासन व्यवस्था को प्रभावित करती हैं, उसकी भेदिया बनती हैं. समाज में ताकतवर कमजोर पर हावी होने की कोशिश करता है और उनका हर तरह से शोषण करता है. राज्य व्यवस्था व समाज में अहम भूमिका अदा करने वाले ज्ञानी व्यक्ति भी वेश्यागामी हो जाते हैं और कम ताकतवर पड़ोसी राज्यों की बहू-बेटियों को अपने राज्य में नगर वधू बना लेते हैं.
स्थिति यहां तक हो जाती है कि ऊपरी स्तर पर चरित्र में आयी यह गिरावट निचले स्तर के कर्मियों, सैनिकों व सुरक्षा प्रहरियों के कार्य व्यवहार में प्रतिबिंबित होती है. वे रिश्वत लेकर अपने राज्य में बाहरी ताकतों व भेदियों को बिना पक्के जांच-पड़ताल के घुसने की इजाजत देते हैं. अंतत: समाज की सबसे दबी-कुचली आक्रांत जनता बगावत पर उतर जाती है और पूरा राज्य खतरे में पड़ जाता है.
अब चर्चा झारखंड की. रांची के चर्चित रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन कांड ने झारखंड की राज्य व्यवस्था की परतें पूरी तरह उधेड़ी दी हैं. उससे सहज ही लगता है कि क्या आठवीं सदी पूर्व के भारत वर्ष के ताकतवर दक्षिणकौशल महाजनपद के पतन के जिन कारणों का बारीक विश्लेषण लेखक संदीप नैयर ने किया है, वही कारण हमारे संभवनाशील राज्य झारखंड के पतन का भी कारण बन रहे हैं? कोहली की काली कथा के अलग-अलग अध्याय में झारखंड के प्रमुख व अहम पदों पर बैठे राजनेताओं, बड़े अधिकारियों से लेकर डीएसपी व न्यायिक पदों पर बैठे मध्यम दर्जे के अधिकारियों और समाज के धनाढ्य व नव धनाढ्य तबके की कहानियां सिमटी हैं.
शासन व्यवस्था चलाने के लिए मिली लाल-पीली बत्तियों के दुरुपयोग और उसे वेश्यागमन का आसान व सुरक्षित माध्यम बनाने की कहानियां भी हैं. राज्य व्यवस्था व न्याय व्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण गोपनीय दस्तावेजों के रंजीत उर्फ रकीबुल तक पहुंचने की कहानियां हैं. ये कहानियां बीते कई दिनों से राजधानी रांची के अखबार में छप रही हैं, जब इस बात की आशंका जतायी जा रही है कि पुलिस बंधे हाथों से मामले की जांच कर रही है. यह भी हमारी राज व्यवस्था के चरित्र का ही एक विकृत चेहरा है कि एक वरीय पुलिस पदाधिकारी पीड़िता तारा शाहदेव को यह सलाह दे जाता है कि वह मीडिया से ज्यादा बात न करें नहीं तो मामले का मीडिया ट्रायल हो जायेगा! जबकि पीड़िता कह रही हैं कि अगर मीडिया ने उनके मुद्दे को नहीं उठाया होता तो रंजीत उर्फ रकीबुल की न गिरफ्तारी होती और न ही इतने सच सबके सामने आते.
झारखंड व यहां की जनता के लिए बजबजाता घाव बन चुकी राज्य की राज व्यवस्था पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तब मलहम लगाने की जरूर कोशिश की जब वे पीड़िता के घर गये और उनसे लंबी चर्चा करने के बाद पूरे मामले की सीबीआइ जांच कराने की घोषणा की. लेकिन उन्हें यह भी देखना होगा कि रकीबुल को शह देने वालों में उनकी पार्टी के अहम नेता व मंत्री का नाम सामने आ रहा है, जिनका हेमंत व उनकी पार्टी के लिए राज्य की राजनीति में प्रतीकात्मक मायने भी है. उनके खिलाफ हेमंत पार्टी के कार्यकारी प्रमुख के रूप में कौन-सा कदम उठायेंगे?
उधर, मुख्यमंत्री की सीबीआइ जांच की घोषणा के बाद पूर्व सांसद इंदर सिंह नामधारी ने एक रक्षात्मक प्रेस बयान जारी कर कहा कि उन्होंने रकीबुल की मदद से एक पीड़ित परिवार के जेल में बंद सदस्य को पैरोल पर रिहा कराया था. उन्होंने यहां चतुराई बरतते हुए इसके लिए कुशल वकीलों की मदद का उल्लेख किया है. नामधारी ने खुद अपने बयान में अपनी सीमाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि रकीबुल ने उनसे कहा था, अगर आप मेरी शादी में नहीं आये तो मैं वरमाला नहीं करुंगा. मजबूर हो नामधारी रंजीत उर्फ रकीबुल की शादी में गये.
अगर राज्य के सारे सांसद-विधायक, मुख्यमंत्री-मंत्री भी किसी न किसी दलाल चरित्र के सामने ऐसे ही मजबूर हो जायेंगे तो आप नये बनते झारखंड की कल्पना कर सकते हैं. ध्यान रखें कि चौदहवीं लोकसभा में नामधारी को अध्यक्ष के आसन पर बैठने व सदन के संचालन का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था. ऐसे अवसर तो व्यक्ति के चरित्र में दृढ़ता उत्पन्न करते हैं न कि उसे मजबूर बनाते हैं, तो फिर नामधारी इतने मजबूर क्यों हुए? क्या राज हैं इसके पीछे?
बहरहाल, प्राचीन भारत के दक्षिण कौशल की राजव्यवस्था व समाज के चरित्र व आधुनिक भारत के झारखंड के समाज व राज्य व्यवस्था के चरित्र में साम्य ढूंढ़ने का मेरा उद्देश्य इतना ही है कि हम यह सोचें कि हमारा समाज,हमारी राज्य व्यवस्था कहां जा रही है? इतिहास ने हमें बार-बार बताया कि व्यक्ति, राज्य, राष्ट्र या समाज कितना भी ताकतवर व संभावनाशील क्यों न हो अगर उसके चरित्र में गिरावट आयी तो पतन सुनश्चिति है.
झारखंड के 14 सालों का राजनीतिक इतिहास भी बार-बार इसी गिरावट के कारण चर्चा में आता रहा है. राष्ट्रीय राजनीति में धनपतियों के लिए राज्यसभा पहुंचने का सबसे सहज मार्ग झारखंड को ही मान लिया गया. कई विधायकों पर नोट के बदले वोट करने के आरोप लगे हैं.
सरकार बनाने-गिराने के भी खेल यहां निरंतर होते रहे. दक्षिणी राज्यों में मधु कोड़ा सबसे ज्यादा पहचाने जाने वाले झारखंड के राजनीतिक शख्सियत हैं. वे क्यों जाने जाते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है. राजनीति की काली कमाई ने कई नेताओं की झोली इतनी भर दी कि उन्होंने एक छोटे राज्य की राजनीति को बहुपक्षीय बना दिया. दुखद यह कि काली कमाई के बदौलत उभरे अलग-अलग राजनीतिक धड़े झारखंडी अस्मिता के नाम पर ही राजनीति कर रहे हैं, लेकिन इस अस्मिता के लिए अबतक उनके द्वारा किये गये एक भी गंभीर कार्य नहीं दिखते. न अस्मिता को सहेजने वाली कोई अकादमी बनी, न शोध केंद्र और न ही विश्वविद्यालय.
हां, रेडियो व फिल्मों से मशहूर हुए झुमरी तिलैया में भांति-भांति का कारण बताते हुए आधी रात में मंत्रीजी विचरण करते जरूर मिलते हैं. उनके साथ कौन थे वे किसके साथ थे, वे होश में थे या नहीं; ये बातें अखबारों ने इशारों-इशारों में पाठकों को जरूर बतायी.
तो अब ऐसे सड़ांध में राज्य को जरूरत है चरित्र की, नैतिकता की, ईमानदारी की. ऐसा नहीं होगा तो झारखंड के आम आदमी का जीवन और अधिक कष्टप्रद होता जायेगा.
आनेवाले दिनों में राजनीति और राजव्यवस्था और घिनौना चेहरा दिखेगा. संसार में अनेक प्रकार के बल हैं : धन बल, बाहुबल, मनोबल, बुद्धि बल, ज्ञान बल, शारीरिक बल, आत्मिक बल. पर, इन सबों में चरित्र बल को ही श्रेष्ठ बताया गया है. क्योंकि सभी बल के रहने पर भी चरित्र बल नहीं रहने पर बार-बार मनुष्य, समाज, राज्य व राष्ट्र का पतन हुआ है. ऐसे में हमें चरित्र व मर्यादा विहीन राजनीति व राजनेताओं को अप्रासांगिक बनाना होगा. इसे रोकने की पहल आम झारखंडी को ही करनी होगी.