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सेक्युलरिज्म से आगे के सवाल

मतदाताओं को समझ आ रहा है कि धर्म-जाति के नाम पर बंटवारा कर नेताओं ने अपना स्वार्थ साधा है. यह नेताओं के प्रति निगेटिव वोट है, धर्म की एकता के प्रति पॉजिटिव वोट नहीं है. अभी धर्मो के बीच मनभेद है. समयक्रम में धर्म पुन: प्रभावी होगा. बिहार के उपचुनावों में लालू-नीतीश गंठबंधन की जीत […]

मतदाताओं को समझ आ रहा है कि धर्म-जाति के नाम पर बंटवारा कर नेताओं ने अपना स्वार्थ साधा है. यह नेताओं के प्रति निगेटिव वोट है, धर्म की एकता के प्रति पॉजिटिव वोट नहीं है. अभी धर्मो के बीच मनभेद है. समयक्रम में धर्म पुन: प्रभावी होगा.

बिहार के उपचुनावों में लालू-नीतीश गंठबंधन की जीत को सेक्युलर ताकतों की वापसी के रूप में देखा जा रहा है. इससे पहले आम चुनाव के नतीजों पर कहा जा रहा था कि जनता ने धर्म और जाति से ऊपर उठ कर वोट दिया है. मैं समझता हूं कि ऐसी बातों में हम धार्मिक विभाजन की तह तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. मूल रूप से देशवासियों के दिल में दूसरे धर्मो के प्रति हीन भावना व्याप्त है. सेक्युलर दृष्टिकोण में धर्मो के बीच इस मनभेद का सामना नहीं किया जाता है. सिर्फ ऊपरी नसीहत दी जाती है कि धर्मो के बीच अंतर को ताक पर रख कर आपसी सौहाद्र्र बनाया जाये. यह फॉर्मूला सफल नहीं है.

ईशावास्योपनिषद् में कहा गया है कि जो कुछ है वह ब्रrा ही है. ब्रrा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है. कुरान में कहा गया है ‘अल्लाह एक है. उसके बराबर कोई दूसरा नहीं है.’ इसाया 44.6 में कहा है ‘मैं ही पहला हूं और मैं ही आखिरी हूं, मेरे अतिरिक्त दूसरा गॉड नहीं है.’ तीनों धर्म मानते हैं कि गॉड एक है. समस्या उत्पन्न होती है इस एक गॉड की व्याख्या करने में. गॉड क्या है और कैसा है, इसकी संतोषजनक परिभाषा उपलब्ध नहीं है. परंतु इतना स्पष्ट दिखता है कि हमारे बीच कृष्ण, मोजेज और मोहम्मद जैसे विशिष्ट व्यक्ति पैदा होते हैं, जो कि गॉड से संपर्क साध लेते हैं. इन्हें गॉड के दर्शन होते हैं और गॉड के पैगाम को ये विशिष्ट व्यक्ति शब्दों में बयां करते हैं. फिर इन शब्दों का लंबे समय तक मौखिक रखरखाव होता रहा है. गॉड ने जो कहा और आज जो हमें उपलब्ध है, उसके बीच लंबा फासला है.

पहला संकट विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा गॉड के संदेशों को शब्दों में बताना है. जैसे गॉड ने कहा ‘युद्घ करो’. यदि विशिष्ट व्यक्ति आदिवासी समाज में रह रहा है, तो वह कह सकता है कि तीर-कमान उठा कर वार करो, ऐसा गॉड ने कहा है. वही विशिष्ट व्यक्ति आज के समय में उत्पन्न होता तो कहता कि पैट्रियट मिसाइल को दाग दो. दोनों में ‘गॉड ने क्या कहा’ को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है. इसी प्रकार के विवाद धर्मो के बीच ही नहीं, बल्कि धर्मो के अंदर भी विद्यमान हैं. जैसे राम के गॉड ने कहा कि एक पत्नी रखो और कृष्ण के गॉड ने 8 पत्नियों की स्वीकृति दे दी. मूल बात है कि गॉड द्वारा बताये गये एक ही समाचार को अलग-अलग समय और स्थान के अनुसार शब्दों में कहा गया है. इससे गॉड के अनुयायियों के बीच द्वेष पैदा हो जाता है.

दूसरी समस्या है विशिष्ट व्यक्ति द्वारा दिये गये शब्दों के सही रखरखाव की. जैसे राम के अवतरण और वाल्मीकि रामायण की रचना के बीच कई हजार वर्षो का फासला है. यहूदियों की परंपरा में माना जाता है कि मोजेज को गॉड ने अपना संदेश लगभग 1500 वर्ष ईसा पूर्व दिया था. इसके बाद यहूदी लोग फिलीस्तीन में बसे. कुछ समय बाद उनको वहां से बेबीलोन ले जाया गया. इसके बाद संत इजरा ने लगभग 500 ईसा पूर्व में बेबीलोन से मोजेज द्वारा बताये गये शब्दों का संग्रहण करके फिलिस्तीन लाया. इजरा के लगभग 1500 वर्ष बाद हमें लिखित बाइबिल मिलता है. इसी प्रकार हजरत मोहम्मद के श्रीमुख से कुरान का अवतरण हुआ. कुरान की प्रमाणिक मानी जानेवाली प्रतिलिपि खलीफा उस्मान ने संग्रह की थी. संग्रह के बाद खलीफा ने कहा था कि कुरान की अन्य प्रतिलिपियों को जला दिया जाये. इससे पता चलता है कि उस समय कुरान की कई प्रतिलिपियां उपलब्ध थीं. उसमान ने अपनी समझ से गॉड के शब्दों का संग्रह किया होगा, ऐसा माना जा सकता है.

वर्तमान चुनाव में धर्म और जाति के मुद्दे पीछे छूट गये हैं. वर्तमान मतदाता विकास चाहता है. हालांकि, धर्म कमजोर नहीं हुआ है. मतदाताओं को समझ आ रहा है कि धर्म-जाति के नाम पर बंटवारा कर नेताओं ने अपना स्वार्थ साधा है. यह नेताओं के प्रति निगेटिव वोट है, धर्म की एकता के प्रति पॉजिटिव वोट नहीं है. अभी धर्मो के बीच मनभेद है. समयक्रम में धर्म पुन: प्रभावी होगा. सर्वप्रथम हर धर्म में जो गॉड के संदेश की व्याख्या की गयी है, उसे लचीले ढंग से लेना चाहिए. गॉड के मूल संदेश और उपलब्ध शब्दों के बीच लंबा फासला है- हर धर्म को इस कटु सत्य को स्वीकार करना चाहिए. यदि हम गॉड के सर्वमान्य संदेश को बना लेंगे, तो धर्मो के बीच मनभेद समाप्त हो सकता है और तब ही सही सेक्युलरिजम स्थापित होने की संभावना बनती है.

वर्तमान सेक्युलरिज्म छिछला है. इसमें गॉड के मूल संदेश के बारे में स्पष्टता नहीं है. इसमें प्रत्येक धर्मावलंबी अपने गॉड को सही और दूसरे के गॉड को गलत मानता है. ऐसे में मनभेद बना रहता है. यह सतही सर्वधर्म-समभाव है, जो समय-समय पर विकराल रूप ले लेता है. दूसरी तरफ भाजपा का ध्यान हिंदू धर्म की महानता और दूसरे धर्म की हीनता को स्थापित करने पर रहता है. अत: फर्जी सेक्युलरिज्म तथा हिंदू महानता को त्याग कर एक गॉड के एक संदेश की ओर बढ़ना चाहिए.

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

bharatjj@gmail.com

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