यह ‘हिंदू राष्ट्र’ आखिरकार है क्या?
यह अच्छी बात है कि संघ-प्रमुख के पास उनकी बातों की व्याख्या करने के लिए ईसाई और मुसलिम लोग हैं, पर बेहतर यही होता कि अपने आलोचकों को संतुष्ट करने के लिए वे स्वयं ही एक स्पष्ट व्याख्या देते. हिंदू राष्ट्र उन मुहावरों में से एक है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रवृत्तियों से […]
यह अच्छी बात है कि संघ-प्रमुख के पास उनकी बातों की व्याख्या करने के लिए ईसाई और मुसलिम लोग हैं, पर बेहतर यही होता कि अपने आलोचकों को संतुष्ट करने के लिए वे स्वयं ही एक स्पष्ट व्याख्या देते.
हिंदू राष्ट्र उन मुहावरों में से एक है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रवृत्तियों से आशंकित लोगों को चिंतित करता है. लेकिन क्या उनकी चिंता उचित है? जब संघ-प्रमुख मोहन भागवत यह कहते हैं, जो उन्होंने कुछ दिन पहले भी कहा है कि ‘हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है’, तब इसके पीछे आरएसएस की सोच क्या होती है? अब सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि इस संदर्भ में ‘हिंदू’ से भागवत का क्या मतलब है? साथ में एक दूसरा सवाल भी है कि ‘राष्ट्र’ से उनका क्या मतलब है?
दूसरे सवाल का जवाब पहले देते हुए मेरा कहना है कि ‘राष्ट्र’ का अर्थ ‘नेशन’ है, जिसे साधारण तौर पर स्टेट (राज्य) भी कहा जा सकता है (आमतौर पर ‘स्टेट’ के लिए हिंदी में सरकार शब्द का प्रयोग किया जाता है). हिंदू स्टेट साधारणतया एक निश्चित चीज है, क्योंकि धार्मिक शास्त्र हमें बताते हैं कि इसकी संरचना कैसी है.
वर्ष 2008 तक नेपाल इस धरती पर एकमात्र ‘हिंदू स्टेट’ था. वहां 2008 के गणतंत्र के साथ छेत्री (क्षत्रिय) वंश का अंत हो गया. नेपाल एक ‘हिंदू स्टेट’ क्यों था? क्योंकि कार्यपालक शक्तियां एक योद्धा राजा से नियत होती थीं, जैसा कि हिंदू संहिता (मनुस्मृति) में लिखा हुआ है. लेकिन, नेपाल बस इसी हद तक एक ‘हिंदू स्टेट’ था. वहां हिंदू शास्त्रों की अन्य बातें लागू नहीं हो सकती थीं, क्योंकि इनकी अधिकतर बातें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के विरुद्ध हैं.
भारत एक गणराज्य है और इसका संविधान जाति के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है. यह भी है कि आरएसएस ने यह मांग नहीं रखी है कि भारतीय राज्य को जाति के आधार पर संगठित किया जाये. तो हम यह मान कर चलते हैं कि राष्ट्र शब्द का प्रयोग ‘नेशन’ के अर्थ में किया गया है. शब्दकोष ‘नेशन’ को इन शब्दों में परिभाषित करते हैं- ‘लोगों का एक बड़ा समूह जो समान वंश-परंपरा, इतिहास, संस्कृति या भाषा के आधार पर एकताबद्ध हों और एक देश या क्षेत्र विशेष में निवास करते हों.’ इस तरह शायद भागवत इस संदर्भ में हिंदू का प्रयोग धार्मिक शब्द के रूप में नहीं कर, भौगोलिक अर्थ में कर रहे थे.
तो अब हिंदू शब्द को समझने की कोशिश करते हैं. निश्चित रूप से इंडिया, इंडस (सिंधू) और हिंदू का सम्मिश्रण प्राचीन है और हम अर्रियन की इंडिका (जो सिकंदर महान के पंजाब अभियान का वर्णन करता है) और मेगस्थनीज की इंडिका के बारे में जानते हैं. अर्रियन इंडस (सिंधू) के पूर्व में रहनेवाले पंजाबियों को इंदोई की संज्ञा देता है.
हालांकि इस सम्मिश्रण का तब कोई अर्थ नहीं रह जाता है, जब यह ‘हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है’ की पंक्ति में प्रयुक्त होता है, क्योंकि तब इसका मतलब यह हो जायेगा कि हिंदुस्तान एक इंडियन नेशन है, जो कि एक पुनरुक्ति मात्र है. स्पष्ट रूप से, भागवत का ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग इससे कुछ भिन्न अर्थ रखता है. एक व्याख्या है कि उनका मतलब यह था कि भारतीयों को यह समझना चाहिए कि हिंदू पहचान ही उनकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मूल है, तथा भारत में इसलाम और ईसाइयत भी उसी तरह से हिंदुस्तानी संस्कृति के पहलू हैं और दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रचलित इसलाम और ईसाइयत से भिन्न हैं.
जब ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग भौगोलिक अर्थ में किया जाता है, तब आरएसएस को कई तरह के लोगों का समर्थन मिलता है, जिनमें कुछ अल्पसंख्यक भी हैं, जो इसकी परिभाषा से सहमति रखते हैं. भारतीय जनता पार्टी के फ्रांसिस डिसूजा, जो गोवा के उप मुख्यमंत्री हैं, ने एक अंगरेजी दैनिक को दिये अपने साक्षात्कार में कहा है, ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है. इसमें कोई संदेह नहीं है. यह हमेशा से एक हिंदू राष्ट्र रहा है और यह हमेशा एक हिंदू राष्ट्र बना रहेगा. आपको इसे हिंदू राष्ट्र बनाने की जरूरत नहीं है.’ इस बात को स्पष्ट करने के लिए कहे जाने पर डिसूजा ने कहा, ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है- हिंदुस्तान. हिंदुस्तान में रहनेवाले सभी लोग हिंदू हैं, मैं भी हिंदू हूं. मैं एक ईसाई हिंदू हूं, मैं हिंदुस्तानी हूं.’
भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष अब्दुल राशिद अंसारी भी इस बात से सहमत हैं. प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को दिये एक साक्षात्कार में अंसारी ने अल्लामा इकबाल की कविता तराना-ए-हिंदी (जो आम तौर पर ‘सारे जहां से अच्छा’ के नाम से जाना जाता है) का उल्लेख किया. इस कविता में इकबाल भारतीयों को हिंदी नाम से संबोधित करते हैं- ‘हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा’. अंसारी ने कहा कि ‘मेरे विचार में, जो कुछ भागवत ने कहा, वह सामाजिक संदर्भ में था. उनके कहने का यह मतलब नहीं था कि दूसरे धर्मो के लोग धार्मिक अर्थो में हिंदू हैं. उनके बयान को सिर्फ सामाजिक अर्थो में ही देखा जाना चाहिए और इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.’
एक अन्य मुसलिम, अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने भी एक अंगरेजी दैनिक को दिये एक साक्षात्कार में भागवत के बयान का बचाव किया. यह पूछे जाने पर कि क्या अल्पसंख्यकों को ‘हिंदू मुसलिम’ और ‘हिंदू ईसाई’ कहना उचित है, हेपतुल्ला ने कहा, ‘यह उचित या अनुचित का मसला नहीं है. यह इतिहास की बात है.’ उन्होंने कहा कि अगर कुछ लोग मुसलिमों को हिंदी या हिंदू कहते हैं, तो उन्हें इसको लेकर संवेदनशील नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी धार्मिक मान्यताओं पर कोई असर नहीं होता है. फिर उन्होंने इसलाम से कई संदर्भ गिनाये, जो उनकी बात की तस्दीक करते हैं. अरब में भारत को ‘अल-हिंद’ कहा जाता है. इसलाम के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मुहम्मद के एक रिश्तेदार का नाम ‘हिंदा’ था. उन्होंने यह भी बताया कि ‘अरब की बेहतरीन तलवार का नाम भी हिंदा था.’
भागवत का बचाव करनेवाले ये सभी लोग वाक्पटु हैं, लेकिन यही इस समस्या की जड़ है. भागवत और आरएसएस समावेशीकरण की कोशिश में हैं. (मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं मानता कि बयान देते हुए भागवत की मंशा गलत थी). लेकिन, उनकी पृष्ठभूमि ऐसी है कि बहुत-से लोग उन्हें शंका की निगाह से देख रहे हैं. यह अच्छी बात है कि संघ-प्रमुख के पास उनकी बातों की व्याख्या करने के लिए ईसाई और मुसलिम लोग हैं, पर बेहतर यही होता कि अपने आलोचकों को संतुष्ट करने के लिए वे स्वयं ही एक स्पष्ट व्याख्या देते.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
aakar.patel@me.com