क्यों बढ़ रहे यौन हिंसा के मामले?
आजकल सुबह अखबार खोलते ही बलात्कार, यौन उत्पीड़न तथा छेड़खानी की खबरें रोज देखने को मिल ही जाती हैं. अब तो ये इतनी आम बात हो गयी है कि शायद लड़कियां भी इसे स्वाभाविक समझने लगी हैं. हर रोज कॉलेज के बाहर बाइक सवार मनचलों का जमावड़ा लगा हुआ रहता है, जो आती-जाती छात्रओं पर […]
आजकल सुबह अखबार खोलते ही बलात्कार, यौन उत्पीड़न तथा छेड़खानी की खबरें रोज देखने को मिल ही जाती हैं. अब तो ये इतनी आम बात हो गयी है कि शायद लड़कियां भी इसे स्वाभाविक समझने लगी हैं. हर रोज कॉलेज के बाहर बाइक सवार मनचलों का जमावड़ा लगा हुआ रहता है, जो आती-जाती छात्रओं पर अश्लील फिकरे कसते हैं और कई बार तो ऑटो स्टैंड तक पीछा भी करते हैं. यह तो बस छेड़खानी हुई. यही लड़के कल मौका मिलने पर बलात्कार करेंगे, यौन उत्पीड़न करेंगे.
मगर क्यों?
मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, मगर एक युवा होने के कारण मैं कुछ हद तक इसको समझ सकता हूं. आज कासिनेमा और साहित्य हम युवाओं को संदेश दे रहे हैं कि बिना गर्लफ्रेंड के जिंदगी बेकार है. आज इश्क में शायरों की ‘उनकी खुशी में हमारी खुशी’ वाली बात आउटडेटेड हो गयी है. अब जुनून है तो बस हासिल करने का. यह भी फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि छिछोरेपन से ही लड़कियां आसानी से आकर्षित होती हैं. इसीलिए वे लड़के जिनके संस्कार मजबूत नहीं हैं, छेड़खानी को गलत नहीं समझते हैं. पर सच तो यह है कि लड़कियां इससे आकर्षित बिलकुल नहीं होती हैं.
और, जब लड़कियां इन्हें दुत्कार देती हैं, तब इन पर उन्हें हासिल करने का जुनून सवार हो जाता है. इसी कारण वे खून या बलात्कार करने पर उतर आते हैं. हासिल करने का यह जुनून एक भयानक मानसिक रोग की तरह फैल रहा है, साथ ही अपराध भी. आज कोई लड़की लड़कों पर विश्वास नहीं कर पाती. इस परिस्थिति को बदलने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने के साथ ही यह भी आवश्यक है कि हमारे फिल्मकार तथा साहित्यकार अपनी रचनाओं में नैतिकता को प्राथमिकता दें.
दिव्यांशु गुप्ता, बारीडीह, जमशेदपुर