कभी आर, कभी पार इस बार आर-पार!

आजकल जिसे देखो आर-पार के मूड में है. इतिहास की वीरगाथाओं व अतीत के युद्ध परिणामों की दुहाई देते हम नहीं थकते. पाकिस्तान को 1971 और कारगिल का हस्र याद दिलाते हुए छाती चौड़ी हो जाती है. आखिर इसी के सहारे ये जनता को रोटी-दाल, आलू-प्याज, भूख-बेरोजगारी से विमुख करने में कामयाब होते रहते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2014 12:25 AM

आजकल जिसे देखो आर-पार के मूड में है. इतिहास की वीरगाथाओं व अतीत के युद्ध परिणामों की दुहाई देते हम नहीं थकते. पाकिस्तान को 1971 और कारगिल का हस्र याद दिलाते हुए छाती चौड़ी हो जाती है. आखिर इसी के सहारे ये जनता को रोटी-दाल, आलू-प्याज, भूख-बेरोजगारी से विमुख करने में कामयाब होते रहते हैं.

आज सुबह ही पी-टीवी में सुना. सीमा पार से गोलीबारी में चार अपराध हलाक हो गये. वहां के अस्थिर राजनीतिक हालात से जनता का ध्यान हटाने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है. अपने देश में तो स्थिर-मजबूत सरकार है. इसकी साथी शिवसेना तो यहां तक कह रही है कि पाक में घुस कर हमला करने की जरूरत है. केंद्र में अब कांग्रेस की कमजोर सरकार नहीं, बल्कि मजबूत सरकार है. पाक को सबक सिखाने के लिए हमला करना चाहिए.

दिसंबर 1913 में इंटरनेशनल फिजिशंस फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वॉर (आइपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत और पाकिस्तान में एक और युद्ध हुआ और उसमें परमाणु हथियारों का प्रयोग किया गया, तो शायद पृथ्वी पर मानव सभ्यता का ही अंत हो जायेगा. परमाणु युद्ध इतनी तबाही मचायेगा कि दुनिया की एक-चौथाई जनसंख्या यानी दो अरब से ज्यादा लोग मारे जायेंगे. ऐसा भी हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी पूरी की पूरी मानव जाति खत्म हो जाये. यदि परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं हुआ तो भी पहले से ही तबाह पाक भुखमरी के कगार पर खड़ा होगा. भारतीय स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती.

एक रिपोर्ट के अनुसार युद्ध के हालात में भारतीय सेना का गोला-बारूद कम पड़ सकता है. आयुद्ध भंडार गोला-बारूद की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं और लड़ाई हुई तो 20 दिन के अंदर ही भारत के पास कोई गोला-बारूद नहीं बचेगा. व्यापक युद्ध के हालात में भारत के पास 20 दिनों का ही गोला-बारूद बचा है. युद्ध की स्थिति में हमें असलहे आयात करने पड़ेंगे. कारिगल की लड़ाई के दौरान भारत को इमर्जेंसी में इस्राइल से गोला-बारूद खरीदना पड़ा था. युद्ध में विजय भले ही एक पक्ष का हो विनाश दोनों पक्षों का होता है.

विनाश का खामियाजा भी आमजनों को ही उठाना पड़ता है. भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्या का सामना न कभी नेता या एलीट क्लास ने किया है न आनेवाले दिनों में करेंगे. युद्ध की आग में झोंकनेवाले बयानों पर अंकुश लगाना ही समय की मांग है. वरना इसकी तपिश में झुलसने के लिए भी हम आमजनों को तैयार रहना चाहिए. पड़ोसियों से बेहतर संबंध की पहल करनेवाले देश के रहनुमाओं को भी सोचना चाहिए कि युद्ध में विजय हासिल कर या उनको सबक सिखा कर हमें बहुत कुछ हासिल नहीं होनेवाला. हमें अपना घर संवारना चाहिए. मजबूत सरकार अपनी जनता की रक्षा बखूबी कर सकती है, हमें पूर्ण विश्वास है.

लोकनाथ तिवारी

प्रभात खबर, रांची

lokenathtiwary@gmail.com

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