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भावी भारत के साथ नरेंद्र मोदी का संवाद

देश भर के छात्र-छात्राओं से सीधे संवाद के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षक दिवस को नया अर्थ दिया है. महज औपचारिकता बन चुके इस दिन को उन्होंने एक प्रेरणादायक अवसर में बदल दिया, जिसका सकारात्मक प्रभाव न सिर्फ विद्यालयों के छात्रों, बल्कि शिक्षकों व अभिभावकों पर भी पड़ेगा. मोदी ने कहा कि वे […]

देश भर के छात्र-छात्राओं से सीधे संवाद के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षक दिवस को नया अर्थ दिया है. महज औपचारिकता बन चुके इस दिन को उन्होंने एक प्रेरणादायक अवसर में बदल दिया, जिसका सकारात्मक प्रभाव न सिर्फ विद्यालयों के छात्रों, बल्कि शिक्षकों व अभिभावकों पर भी पड़ेगा.

मोदी ने कहा कि वे उन आंखों से संवाद कर रहे हैं जिनमें भावी भारत के सपनों का वास है. बिना किसी आदर्शवाद के बोझ के प्रधानमंत्री ने बच्चों को कौशल बढ़ाने, महान लोगों की जीवनियां पढ़ने, स्वच्छता का ध्यान रखने और खेलने-कूदने के महत्व को समझाया और राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया. बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने अपनी दृष्टि को भी बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया. भारत की भावी पीढ़ी से प्रधानमंत्री की यह संवादधर्मिता एक सराहनीय पहल है. उम्मीद है कि न सिर्फ मोदी, बल्कि अन्य राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भी उनके इस पहल को विस्तार देंगे. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे नाम हैं, जो बच्चों के साथ जीवंत व निरंतर संवाद किया करते थे.

मोदी की पहल को इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए. पंडित नेहरू की तरह नरेंद्र मोदी ने भी बच्चों को प्रकृति औरजीवन के प्रति अधिक संवेदनशील होने का संदेश दिया. उनके संबोधन और बच्चों के प्रश्नों के उनके उत्तर पर बहस हो रही है और होनी भी चाहिए, लेकिन इस संवाद का सबसे महत्वपूर्ण पहलू देश के प्रधानमंत्री द्वारा बच्चों को अपने विचारों से अवगत कराने और उन्हें देश-निर्माण की प्रक्रिया में भूमिका निभाने के आमंत्रण में है.

यह स्पष्ट संकेत है कि प्रधानमंत्री के लिए बच्चे उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना समाज का कोई अन्य हिस्सा. इस संवाद-प्रक्रिया में वे प्रधानमंत्री, शिक्षक व अभिभावक के रूप में तो दिखे ही, साथ ही बच्चों के मित्र के रूप में भी दिखे. आज बच्चों पर प्रतिस्पर्धा का दबाव इतना अधिक है कि संभावनाओं व संसाधनों के बावजूद उनके व्यक्तित्व का अपेक्षित विकास नहीं हो पाता. मोदी ने उन्हें इस दुष्चक्र से बाहर निकालने की एक प्रारंभिक कोशिश की है, जिसे आगे ले जाने की जिम्मेवारी सिर्फ उनकी नहीं, समाज की भी है.

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