विज्ञापन के जरिये राजनीति
चीख-चीख के कहा गया-इधर जीते, उधर विदेशों में जमा काला धन वापस. आतंकवाद खत्म. महंगाई दुम दबा के भागेगी. कुछ हुआ? और फिर किस्से पूछने जाओगे? टीवी वाला इसका जवाब देगा? नहीं न. प्रचार की जिम्मेवारी उसकी होती है. एक जमाने से रूमी पढ़े जा रहे हैं. समङो जा रहे हैं और जनाब एक से […]
चीख-चीख के कहा गया-इधर जीते, उधर विदेशों में जमा काला धन वापस. आतंकवाद खत्म. महंगाई दुम दबा के भागेगी. कुछ हुआ? और फिर किस्से पूछने जाओगे? टीवी वाला इसका जवाब देगा? नहीं न. प्रचार की जिम्मेवारी उसकी होती है.
एक जमाने से रूमी पढ़े जा रहे हैं. समङो जा रहे हैं और जनाब एक से बढ़ कर एक बात बोलते ही जाते हैं. अपने किसी बयां में हजरत रूमी ने फरमाया है कि अकल बड़े काम की चीज होती है. बाज दफे यह दिक्कत से भी निजात दिला देती है. एक वाकया- किसी इंसान के पैर में कांटा चुभ जाता है, तो वह अपने एक जंघे पर दूसरा पैर रख कर कांटे को कांटे से ही निकाल देता है. लेकिन अगर यही वाकया किसी गधे के साथ हो जाये और उसकी दुम उठा कर किसी ने कांटा रख दिया, तो वह क्या करेगा? पहले दुलत्ती मारेगा. चीखेगा, दुम को पटकेगा और कांटा उसे चुभता ही जायेगा. यह खेल महज अकल की वजह से है.. ये बातें हमारे अब्बा हुजूर अक्सर हमें सुनाया करते थे. यह कह कर कयूम मियां ने तहमत से बीड़ी निकाली और सुलगाने लगे. नवल उपाधिया ने टोका- चाचू! आप जो यह बीड़ी पी रहे हैं, यह तो जहर है .
जहर! यह किसने कहा? नवल बोले- इस पर लिखा रहता है.
अच्छा! तो बीड़ी बनानेवाला इतना ईमानदार हो गया है कि जहर को जहर बताने लगा है?
न्ना जी! वह अपने से ईमानदार नहीं है, उसे सरकार ने ईमानदार बनाया है. डंडे से. कहा है कि इस पर लिखो. इसलिए उसे लिखना पड़ा.
तो सरकार क्यों नहीं ईमानदार बन जाती?
जमाना गया, जब लोग ईमानदार होते थे, अब जमाना बदल गया है.
यह जमाना कैसे बदलता है?
इसे हम सब मिल कर बदलते हैं. अच्छे की चाल बहुत सुस्त होती है, और बदचलन तेजी से भागता है, आज तेजी से भागने का वक्त है.
चलो हम भी तेजी से भागें. लेकिन उपाय?
है न, विज्ञापन का.. विज्ञापन का? वो कैसे?
बड़े-बड़े बदले हैं. निजाम तक बदला है. सब विज्ञापन का खेल है. नवल बोल रहे हैं, बाकी सब सुन रहे हैं. आप अपनी जवानी में मैगी कुरकुरे खाये रहे? नहीं न! आज खा रहे हैं. एक क्रीम आयी है एक हफ्ते लगायें गोरे हो जायंगे. सुभौतिया क बड़का लड़िका रोज लगावत है.
पर गोरा तो ना भवा.. उन्ह! गोरे भये से मतलब ना है बिक्री से है. बिक तो रहा है न? बात तो सही है. इसे कहते हैं विज्ञापन. कल तक यह तेल-साबुन बेचता रहा. नीम के दतुवन के बदले अंगरेजी का टूथपेस्ट ले आया है. इसकी असलियत दूसरी है. इ ससुरा बहुते नुकसानदेह है.
काशी विश्वविद्यालय की एक शोध छात्र ने ‘टूथ पेस्ट’ पर शोध किया है. उसका कहना है देश में बनने और बिकनेवाले जितने भी टूथ पेस्ट हैं, ये दांतों को ही नहीं नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि इनमें इस्तेमाल किया जानेवाला एक रसायन आंतों में भी जहर पहुंचा रहा है. इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखने की हिदायत भी है. पिछले कई सालों से जनहित में काम कर रही संस्थाओं के दबाव के चलते अब टूथ पेस्ट पर यह हिदायत लिखी जाने लगी है कि इसे बच्चों से बचाइए. लेकिन टूथ पेस्ट निमार्ताओं ने इस हिदायत को कुछ इस तरह से लिखा है कि ‘ढूंढ़ते रह जाओगे’. यह शोध असल ‘लैब’ का है. उधर स्टूडियो में बने नकली लैब, नकली डॉक्टर और नकली पात्रों को लेकर जो विज्ञापन तैयार किया गया, वह झागवाला मांगता है. आज के समाज में विज्ञापन का यह दबाव बढ़ता जा रहा है और लोग छले जा रहे हैं. इसे कहते हैं विज्ञापन. हवा-पानी दो. तिजारत कर लो, जनता जाये भाड़ में. लेकिन अब मामला आगे बढ़ गया है. अब तो राजनीति भी विज्ञापन से हो रही है..
राजनीति..विज्ञापन से?
लो इनको यह भी पता नहीं. चीख-चीख के कहा गया-इधर जीते, उधर विदेशों में जमा काला धन वापस. आतंकवाद खत्म. महंगाई दुम दबा के भागेगी. कुछ हुआ? और फिर किस्से पूछने जाओगे? टीवी वाला इसका जवाब देगा? नहीं न. प्रचार की जिम्मेवारी उसकी होती है. विज्ञापन फैलाना उसका काम होता है. इस खेल में सफाचट बोलें या दाढ़ी बोलें, छले जायेंगे हर तरफ से.
इससे बचने का कोइ तरीका है?
इ हम नहीं जानते. सुराजी चिखुरी बैठे हैं उनसे पूछो. कह कर नवल उपाधिया बेंच को ही ढोल की तरह बजाने लगे. सुबह की चाय और चौराहा इस विषय के लिए तैयार नहीं था. चिखुरी मुस्कुराए- देख बेटे! हम तो शुरू से ही कह रहे थे, घपला है. लेकिन अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है. इसे सुधारना पड़ेगा. नेता को और सबसे ज्यादा राजनीति को. इसे अलग से लड़ना पड़ेगा. सवाल उठाने पड़ेंगे. पिछले बीस साल से सवाल नहीं उठ रहा है, न सड़क पर. न संसद में.
नेतवन सब सवाल उठाना जानें तब न..
नहीं अगर नेता सवाल नहीं उठा रहा है, तो जनता उठाये. सवाल करो, जवाब मांगो. सब उघार होगा, तो क्यों नहीं सुधरेगा..
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
samtaghar@gmail.com