स्कूलों, अभिभावकों के लिए चेतावनी
प्रतिष्ठित मनोचिकित्सा संस्थान ‘रिनपास’ का ताजा सर्वेक्षण चौंकाने वाला है. झारखंड की राजधानी रांची के 3000 स्कूली छात्र-छात्रओं के बीच किये गये सर्वेक्षण में पता चला है कि 11.2 फीसदी बच्चे अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार हैं. सर्वेक्षण में सामने आये अन्य तथ्य भी कम चिंताजनक नहीं हैं. बच्चों में समाज से अलग-थलग रहने, अकेले रहने […]
प्रतिष्ठित मनोचिकित्सा संस्थान ‘रिनपास’ का ताजा सर्वेक्षण चौंकाने वाला है. झारखंड की राजधानी रांची के 3000 स्कूली छात्र-छात्रओं के बीच किये गये सर्वेक्षण में पता चला है कि 11.2 फीसदी बच्चे अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार हैं.
सर्वेक्षण में सामने आये अन्य तथ्य भी कम चिंताजनक नहीं हैं. बच्चों में समाज से अलग-थलग रहने, अकेले रहने और खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. पहला सवाल है, ऐसा क्यों? आज बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव है.
सफल होने का दबाव. हर चीज में महारत का दबाव. अच्छा दिखने का दबाव. बच्चे को अगर छमाही इम्तिहान में 99 फीसदी अंक मिले और सालाना इम्तिहान में उसे 98 फीसदी अंक आये, तो मां-बाप को यह एक फीसदी अंक घट जाना भी गवारा नहीं होता. एक तरफ दबाव बढ़ रहा है, दूसरी तरफ घर-परिवार और समाज से उसे मिलने वाला सहारा कमजोर पड़ रहा है.
घर के सभी सदस्य अपने-अपने काम में इतने मशगूल हैं कि उनके बीच पर्याप्त और खुला संवाद नहीं हो पाता है. अगर लोगों के पास समय होता भी है, तो वे टीवी, मोबाइल, इंटरनेट में घुसे रहते हैं. सबने अपने चारों ओर एक खोल सा बना लिया है. लोग घुटते रहते हैं, पर कहते किसी से नहीं हैं. दूसरा सवाल है,उन बच्चों की पहचान क्यों नहीं हो पाती जो अवसाद से गुजर रहे हैं.
इसकी सबसे बड़ी वजह है, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का अभाव. हम बच्चों की शारीरिक सेहत को लेकर सचेत रहते हैं, पर उनके दिमाग में क्या चल रहा है, इस पर उतना ध्यान नहीं देते. अंतिम बात यह कि समाधान क्या है? घर-परिवार में बच्चों से संवाद बढ़ाने की जरूरत है. अगर बच्च लोगों से कटा रह कर टीवी, इंटरनेट, मोबाइल गेम्स वगैरह में घुसा रहता है, तो तुरंत सतर्क हो जायें. उसे समूह में, दूसरे बच्चों के साथ, घर के बाहर खेलकूद के लिए प्रेरित करें. यदि आपको बच्चे में अवसाद के लक्षण नजर आयें, तो तुरंत किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें. उसकी काउंसिलिंग से भी बात बन सकती है. स्कूलों में भी पेशेवर और प्रशिक्षित काउंसलर होने चाहिए, जिनसे बच्चे अपने मन की बात कह सकें. ध्यान रहे, अवसाद बहुत ज्यादा बढ़ने पर बच्चे खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं, खुदकुशी तक कर सकते हैं.