धरती पर स्वर्ग माना जानेवाला कश्मीर आज तबाही का भयावह मंजर बना हुआ है. लगातार बारिश से आये बाढ़ व भूस्खलन के कारण अब तक लगभग 175 लोगों की जानें जा चुकी हैं और हजारों लोग फंसे हुए हैं. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और बचाव कार्य की समीक्षा की.
उन्होंने जम्मू-कश्मीर की इस त्रसदी को राष्ट्रीय स्तर की आपदा बताते हुए तत्काल एक हजार करोड़ रुपये की सहायता की घोषणा की. इससे पूर्व राज्य आपदा राहत कोष के माध्यम से 1,100 करोड़ दिये गये हैं. गृहमंत्री के दौरे के फौरन बाद प्रधानमंत्री का जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसी आपदाओं के दौरान आम तौर पर सरकारों का रवैया लापरवाही और देरी का होता है.
जो त्वरा और समयानुकूल कार्रवाई कश्मीर में आज दिखायी जा रही है, अगर ऐसा पिछले वर्ष उत्तराखंड की त्रसदी के दौरान तत्कालीन सरकार द्वारा किया गया होता, तो बड़ी संख्या में लोगों को बचाया जा सकता था. 2010 में ही जम्मू-कश्मीर के बाढ़ नियंत्रण मंत्रलय ने अगले पांच वर्षो में भारी बाढ़ की चेतावनी दे दी थी और उसे काबू करने के उपाय भी बताये थे. उक्त रिपोर्ट में जिन क्षेत्रों को प्रभावित होने की आशंका जतायी गयी थी, आज उन्हीं इलाकों में बाढ़ कहर बरपा रही है.
लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें इस चेतावनी को चार वर्ष तक अनदेखा कर बैठी रहीं. जिस तरह से नयी सरकार ने आपदा से निपटने में तेजी दिखायी है, उससे यह आशा जगी है कि इस रिपोर्ट में सुझाये गये उपायों पर गंभीरता से अमल होगा. प्रधानमंत्री ने कश्मीर से लौट कर दिल्ली में भी इस त्रसदी पर विचार-विमर्श किया और राज्य को आगे भी पूरी मदद का भरोसा दिलाया. पाकिस्तान के साथ तल्खी को परे रखते हुए मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पाक-अधिकृत कश्मीर में बचाव व राहत में मदद देने का प्रस्ताव दिया है. मोदी की यह मानवीय पहल भी भविष्य के लिए अच्छा संकेत है. विपत्ति में ही संवेदनशीलता व निर्णय लेने की क्षमता की परीक्षा होती है. मोदी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण दिया है. जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होने में कुछ समय लगेगा, पर मोदी सरकार ने सुशासन की उम्मीद को बड़ा आधार दिया है.