बिनु हरि कृपा किसी का भला नहीं हो सकता- गोस्वामी तुलसीदास जी का यह फामरूला आधुनिक नेताओं के लिए लाइफलाइन है. जीते जी गुमनामी का नरक भोगने से तो बेहतर है कि हरि भजन में मगन होकर मलाई काटें.
किसी को दुखी किये बिना सुखी होने का फामरूला बड़ा सहज है. तुलसीदास जी का अनुसरण करिये. हरि गुन गाइये. जमीनें कब्जानी हैं, आलीशान घर बनाने हैं, बडी गाड़ियां खरीदनी हैं, कुछ स्विस बैंक में भी जमा करना है, राजनीति की वैतरणी पार करनी है, तो अब एकमात्र हरि हैं, जिनको भजने से बेड़ा पार हो सकता है. अब तो जिसे देखिए वही हरि शरण में है. यह अनायास नहीं है.
कई लौह पुरुषों का हश्र देख ऐसा करना लाजिमी (मजबूरी) है. न जाने किन-किन विशेषणों से अतिशोभित लौह पुरुषों को निर्वासित कोपभवन का (गैर) महिमामंडित सदस्य बनना पड़ा है. इनकी हालत देख कर सबका पौरुष धरा का धरा रह गया है.
धर्म प्रधान हमारे इस देश में जो हरि के गुन गाता है, उसका कल्याण कोई नहीं रोक सकता. हरि कृपा से उस पर तीनों लोक के वैभव, यश, धन बरसने लगते हैं. हर तरफ खुशियां ही खुशियां भर जाती है. वह रंक से राजा बन जाता है. वर्तमान में एक ही हरि हैं, जिनकी कृपा से सभी अपनी नैया पार लगाना चाहते हैं. सुना है, जिन राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं, वहां भाजपा किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करेगी. मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़े जायेंगे. बस इसी की ताक में लगे भक्तगण अभी से हरिभजन में जुट गये हैं. हे प्रभु, हम कुटिल, खल.. हमें पार लगायें, की तर्ज पर सभी हरि भजन में जुट गये हैं.
अपनी करतूतों को ढकने का इससे बेहतर अवसर मिल भी नहीं सकता. इसमें कुछ अधिक करना भी नहीं है. बस तन-मन से हरि भजन में लीन हो जाना है. इसके बाद कृपापात्र होने से भला कौन रोक सकता है. हरि कृपा से किस चीज की कामना की जाती है, यहीं न कि हमारे जीवन में सुख हो, समृद्धि हो, ऐश्वर्य हो. क्या यह किसी और विधि से मिलेगा? और जब मिलेगा, तो त्यागी भी बन जायेंगे. त्याग करना तो तभी संभव होगा, जब आपके पास त्यागने लायक कुछ हो. इसलिए पहले अपना घर ठीक करो. छल से, कपट से, गबन से, जैसे भी हो. फिर त्यागने के बारे में कल्पना करो. कल तक नेताओं का चमचा बन कर गुजारा करनेवाले अब चार्टर्ड विमान की कल्पना करने लगे हैं तो इसके पीछे कुछ तो पुण्य होगा ही. और कुछ नहीं तो हरि कृपा पाने के लिए भजन-कीर्तन की कम से कम 1008 माला जाप किये होंगे. अपनी आशा-आकांक्षा को पूरा करने के लिए बस इतनी कामना करने में कोई बुराई भी नहीं है. छोटा सा ख्वाब देखनेवाले तन, मन से धन की कामना में जुटने के लिए हरि भजन पर उतारू हो जायें, तो इसमें उनका क्या दोष. अब तो इसी में भलाई है कि हम भी हरि भजन में लीन होकर अपने पाप धुलवाने की ओर अग्रसर हो जायें.
लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
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