शराब से मुक्ति ढूंढ़ता केरल
शराबबंदी एक बहुत जटिल मसला है. इसके पक्ष और विपक्ष में तर्को की कोई कमी नहीं है. केरल में भी इस पर बरसों से चल रही बहस के बाद अब राज्य सरकार ने यह फैसला किया है कि आनेवाले दस सालों में चरणबद्ध तरीके से राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी जायेगी. आखिर यह […]
शराबबंदी एक बहुत जटिल मसला है. इसके पक्ष और विपक्ष में तर्को की कोई कमी नहीं है. केरल में भी इस पर बरसों से चल रही बहस के बाद अब राज्य सरकार ने यह फैसला किया है कि आनेवाले दस सालों में चरणबद्ध तरीके से राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी जायेगी. आखिर यह नौबत क्यों आयी? क्या केरल में शराब की समस्या इतनी बढ़ गयी है कि और कोई उपाय नहीं रह गया है? या फिर, इसके पीछे कोई राजनीतिक, सामाजिक गोलबंदी है? एक और अहम सवाल यह भी है कि क्या शराबबंदी सचमुच में शराब के सेवन पर रोक लगा पायेगी? केरल सरकार की नयी शराब नीति के कुछ पहलुओं से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं लग रहा, इसलिए उसने गुरुवार को बार मालिकों को फौरी राहत प्रदान कर दी. शराबबंदी से जुड़े विभिन्न सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की गयी है इस विशेष पन्ने में.
सेंट्रल डेस्क
दक्षिण भारत में स्थित, 3.5 करोड़ की आबादी वाला राज्य केरल देश के सबसे ज्यादा साक्षर राज्यों में शामिल है. अपनी कुदरती खूबसूरती के कारण इसे ‘ईश्वर का अपना देश’ जैसे विशेषणों से नवाजा जाता है. आजकल इस राज्य की चर्चा एक दूसरी वजह से हो रही है. गत 21 अगस्त को केरल में कांग्रेस के नेतृत्ववाले सत्तारूढ़ संयुक्त लोकतांत्रिक मोरचा (यूडीएफ) ने अप्रैल 2015 से राज्य में आंशिक शराबबंदी लागू करने का फैसला किया, जो 10 सालों में पूर्ण शराबबंदी में बदल जायेगी.
इस नयी शराब नीति पर केरल की कैबिनेट ने 27 अगस्त को मुहर लगा दी. सरकार को केरल हाइकोर्ट का भी साथ मिला. 3 सितंबर को उसने नयी शराब नीति को हरी झंडी देते हुए, उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें नयी शराब नीति को चुनौती दी गयी थी. नयी शराब नीति के तहत, घटिया होने की वजह से पहले ही बंद करा दिये गये 418 शराबखाने (बैठ कर पीने के अड्डे) अब नहीं खुलेंगे और बाकी के 312 शराबखानों (गैर पांचसितारा होटलों में स्थित बार) को इसी 12 सितंबर तक बंद करना था. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने 11 सितंबर को 312 बारों के मालिकों को फौरी राहत देते हुए उन्हें 30 सितंबर तक अपना कामकाज जारी रखने की अनुमति दे दी है. अदालत ने इसके साथ ही केरल हाइकोर्ट को बार मालिकों की याचिका पर जल्दी सुनवाई करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने का आधार इस ‘भेदभाव’ को बनाया है कि पांचसितारा होटल के बार शराब बेच सकते हैं और अन्य होटलों के बार नहीं. अदालत के गले यह बात भी नहीं उतर रही कि पांचसितारा होटल शराब परोसते रहेंगे, ताड़ीखाने चलते रहेंगे, तो फिर शराबबंदी का क्या मतलब?
प्रति व्यक्ति सालाना खपत 21-27 बोतल की
केरल में प्रति व्यक्ति शराब खपत देश में सबसे ज्यादा है. यहां एक आदमी साल भर में औसतन 8.3 लीटर विशुद्ध अल्कोहल का सेवन करता है. विस्की, ब्रांडी या रम जैसी तेज शराब में एल्कोहल की मात्र 40 से 50 फीसदी के बीच होती है. इस हिसाब से देखें तो यहां एक आदमी साल में 16 से 20 लीटर तेज शराब पी जाता है. यानी, 21 से 27 बोतल (750 मिलीलीटर की) तक. उत्तर भारत में पीने-पिलाने की संस्कृति के लिए जाना जानेवाला पंजाब देश में दूसरे नंबर पर है. पंजाब में प्रति व्यक्ति शराब खपत 7.9 लीटर सालाना है.
केरल में प्रति व्यक्ति शराब की खपत राष्ट्रीय औसत के दोगुने से ज्यादा है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बात करें, तो केरल में शराब की खपत बहुत ज्यादा नहीं जान पड़ेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, बेलारूस में यह आंकड़ा 17.6 लीटर और ब्रिटेन में 11.6 लीटर का है. यहां गौर करने की बात यह है कि केरल में बड़े पैमाने पर ताड़ी भी पी जाती है, जो कि अल्कोहल युक्त पेय है. लेकिन इसकी खपत का कोई रिकॉर्ड नहीं रहता, क्योंकि ताड़ी कारोबार पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है.
साढ़े तेरह साल की उम्र में बच्चे पीने लगे हैं शराब
देश के एल्कोहल और ड्रग सूचना केंद्र के मुताबिक, केरल में 69 फीसदी अपराधों, 40 फीसदी सड़क हादसों और घरेलू हिंसा व तलाक के 80 फीसदी मामलों का ताल्लुक शराब और अन्य नशीले पदार्थो के सेवन से है. दिल, जिगर (लिवर) की बीमारियां और शराब से जुड़ी अन्य बीमारियां भी बढ़ रही हैं. एक सर्वे के मुताबिक केरल में बच्चे साढ़े 13 साल की उम्र में ही शराब पीना शुरू कर देते हैं, जबकि देश के दूसरे हिस्सों में यह उम्र औसतन चार साल अधिक है.
गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एर्नाकुलम के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा 73 स्कूलों में किये गये अध्ययन से पता चला है कि 15 फीसदी बच्चे इस उम्र में पहली बार शराब पीते हैं. मनोचिकित्सा विभाग के असोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर टीएस जैसूरिया बताते हैं, ‘‘इन 15 फीसदी बच्चों में से 20-22 फीसदी खतरनाक स्तर तक शराब सेवन में शामिल हैं. यह इस कदर संस्कृति का हिस्सा बन गया है कि इनमें से 70 फीसदी की शुरुआत किसी पारिवारिक समारोह या त्योहार की पार्टियों में होती है.’’
9000 करोड़ रुपये का राजस्व शराब से आता है
केरल में शराब की बिक्री केवल सरकार करती है. सन 1984 से उसका इस कारोबार पर एकाधिकार है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, केरल सरकार ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में लगभग 400 दुकानों से 8818 करोड़ से ज्यादा की शराब बेची. इससे सरकारी खजाने को 7241 करोड़ रुपये की शुद्ध आमदनी हुई. ताड़ीखानों से मिलनेवाले टैक्स को भी इसमें जोड़ दिया जाये, तो सरकार की कमाई लगभग 8000 करोड़ तक पहुंच जाती है. शराबखानों की लाइसेंस फीस जोड़ लेने के बाद यह आंकड़ा लगभग 9000 करोड़ रुपये का हो जाता है. वहीं 1984-85 में शराब बिक्री से प्राप्त मुनाफे का सरकारी खजाने में योगदान सिर्फ 25.63 करोड़ रुपये (कुल बिक्री 55.46 करोड़ रुपये) का था. 2001-02 से पहले सरकार सिर्फ थोक में शराब बेचती थी, लेकिन जब इस साल से सरकार ने खुदरा कारोबार भी अपने हाथ में ले लिया, तो राजस्व में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई. अभी केरल सरकार को शराब से मिलने वाला सालाना राजस्व, उसके कुल राजस्व का तकरीबन 22 फीसदी है.
10 सालों में शराबबंदी की चरणबद्ध योजना
केरल में पिछले साल तक शराब की 383 दुकानें और 752 शराबखाने थे. अप्रैल 2014 में इनमें से 418 शराबखाने बंद करा दिये गये. मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा है कि ‘‘बीते अप्रैल में घटिया होने के कारण जो 418 शराबखाने बंद कराये गये, अब वे दोबारा नहीं खुलेंगे. 312 अन्य शराबखाने भी बंद कराये जाने हैं (इन्हें सुप्रीम कोर्ट से कुछ दिनों की मोहलत मिल गयी है). अगर इसमें कोई दिक्कत पेश आयी, तो अप्रैल 2015 में इनके लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया जायेगा.’’ चांडी ने कहा कि अब केवल पांचसितारा होटलों (इनकी संख्या राज्य में 20 के आसपास है) में ही शराब परोसी जा सकेगी.
जहां तक खुदरा बिक्री की बात है, तो इसे सरकारी कंपनी बीवरेजेज कारपोरेशन की दुकानों के जरिये किया जाता है. हर साल 10 फीसदी दुकानों को बंद किया जायेगा. इस तरह 10 साल में सभी दुकानें बंद हो जायेंगी. इसकी शुरुआत आगामी दो अक्तूबर को, गांधी जयंती के मौके पर 39 दुकानें बंद करके की जायेगी. अभी जो ड्राइ डे (शराब की बिक्री पर रोक का दिन) हैं, जिनमें हर महीने की पहली तारीख भी शामिल है, के अलावा हर रविवार को भी ड्राइ डे रहेगा.
क्या यह फैसला राजनीतिक है?
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केरल कांग्रेस में चल रही गुटबाजी में, बाजी मारने के लिए मुख्यमंत्री चांडी ने शराबबंदी का दावं चला है. केरल प्रदेश कांग्रेस के 66 वर्षीय अध्यक्ष वीएम सुधीरन को एक दशक की उपेक्षा के बाद, लोकसभा चुनाव से पहले, प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी पार्टी आलाकमान ने सौंपी. प्रदेश के कांग्रेस में दो शक्तिशाली गुट हैं जिनमें से एक का नेतृत्व चांडी और दूसरे का राज्य के गृह मंत्री रमेश चेन्नीतला करते हैं. दोनों ही सुधीरन को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में नहीं थे. लेकिन सुधीरन की बेदाग छवि को देखते हुए पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें इस पद पर बिठाया. इसका फायदा यह हुआ कि सरकार में हुए विभिन्न घपलों और विवादों से पार्टी उबर पायी और लोकसभा चुनावों में यूडीएफ 20 में से 12 सीटें जीतने में कामयाब रहा.
इसके बाद सुधीरन ने चांडी सरकार के विभिन्न फैसलों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया. सबसे बड़ा टकराव सामने आया उन 418 घटिया शराबखानों को दोबारा खोले जाने के मुद्दे पर, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी के बाद 1 अप्रैल से बंद कर दिया गया था. चांडी सरकार चाहती थी कि हर शराबखाने का अलग-अलग आकलन कर उन्हें दोबारा खोलने पर विचार किया जाये. लेकिन सुधीरन ने एलान किया कि पार्टी किसी शराबखाने को दोबारा नहीं खुलने देगी. उन्होंने कहा कि इसे शराबबंदी की शुरुआत के लिए एक अवसर के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए. सुधीरन इसी भंगिमा के साथ जनता के बीच गये.
उन्हें शराब विरोधी खेमों जैसे चर्च और मुसलमानों से भारी समर्थन मिला. यूडीएफ के दो घटक दल इंडियन यूनियन मुसलिम लीग और केरल कांग्रेस (एम) खुल कर सुधीरन के साथ आये. आखिरकार, शराबबंदी न चाहनेवाले चांडी और चेन्नीतला, दोनों को सुधीरन के आगे झुकना पड़ा. चांडी फरियाद लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के पास भी गये, लेकिन उन्हें समर्थन नहीं मिला.
विपक्ष शराब के खिलाफ, पर शराबबंदी नहीं चाहता
विपक्षी गंठबंधन, एलडीएफ (वाम लोकतांत्रिक मोरचा) के एक पूर्व मंत्री एमए बेबी ने यूडीएफ के फैसले को ‘राजनीतिक’ बताया. वह कहते हैं, ‘‘मैं शराब पीने के खिलाफ हूं. कई गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार इसकी वजह से बीमारियों से जूझ रहे हैं. मगर शराबबंदी अव्यावहारिक और नाकाम रही है. इससे केवल अवैध शराब की खपत बढ़ेगी. हमने पहले बेंगलुरू में बड़े पैमाने पर ऐसी दुर्घटनाएं देखी हैं.’’ बेबी बेंगलुरू में जुलाई 1981 में हुए हादसे का जिक्र कर रहे थे, जब अवैध शराब पीकर 382 लोग मर गये थे. नेता प्रतिपक्ष वीएस अच्युतानंदन ने भी इसे राजनीतिक कलाबाजी करार दिया है. लेकिन उनकी पार्टी माकपा बस इतनी मांग कर रही है कि सरकार बंद किये जानेवाले शराबखानों के कर्मचारियों का पुनर्वास करे.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और अभी केरल से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर भी इस मुद्दे पर विपक्ष के पाले में खड़े नजर आते हैं. उनका कहना है कि यह एक ‘लोकलुभावन’ फैसला है. शराबबंदी से अनेक मसले जुड़े हैं, जिन पर विचार करने की जरूरत है.
सांप्रदायिक रंग देने की भी हो रही कोशिश
केरल को शराब मुक्त बनाने की बहस ने सांप्रदायिक रंग भी ले लिया है. शराब पर रोक के फैसले को ईसाई और मुसलिम संगठनों का समर्थन मिला लेकिन दो ताकतवर हिंदू संगठनों के विरोध ने इस फैसले पर छिड़ी बहस को सांप्रदायिक रंग दे दिया है. पिछड़े हिंदुओं के संगठन श्री नारायनाद धर्म परिपालना योगम के नेता वेलापल्ली नातेशन ने कहा कि सरकार का यह कदम सीधे तौर पर शराब के कारोबार से जुड़े हिंदुओं को प्रभावित करेगा. शराबबंदी की योजना को लेकर आगे नहीं बढ़ने पर सरकार गिराने की धमकी देने वाले कैथोलिक पादरियों पर हमला करते हुए नातेशन ने पूछा, ‘‘क्या चर्च अपनी सामूहिक प्रार्थनाओं (मास) में वाइन का इस्तेमाल रोकने को तैयार है?’’ उन्होंने सरकार को घेरते हुए कहा, जो बार बंद हो चुके हैं वो हिंदुओं के थे और जो खुले हैं वो ईसाइयों के हैं.
आर्चबिशप फ्रांसिस कल्लाराकल ने नातेशन के बयान को सांप्रदायिक ठहराते हुए कहा कि प्रार्थना में वाइन का इस्तेमाल ईसाइयों की आस्था से जुड़ी चीज है और यह तब तक चलेगी जब तक यह दुनिया कायम है. ऊंची जाति के हिंदुओं के संगठन, नायर सर्विस सोसायटी के एक नेता जी सुकुमारन नायर ने भी सरकार के फैसले को अव्यावहारिक बताया है. नायर ने कहा कि शराब मुक्त केरल पर सरकार का फैसला ईसाई और मुस्लिम सहयोगियों के दबाव में लिया गया है. इस फैसले को लेकर कांग्रेस के अंदर ही विरोध है.
शराब नहीं मिलेगी, तो लोग ताड़ी पियेंगे?
शराबखानों के लाइसेंस का नवीनीकरण रोके जाने के बाद से केरल में ताड़ी की दुकानों का हुलिया बदलने लगा है और इनमें होटलों जैसी सुविधाएं देने की कोशिशें हो रही हैं. इनमें शौचालय, केबिन आदि की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ओमेन चांडी ने कैबिनेट की बैठक के बाद स्पष्ट किया कि नारियल से तैयार होने वाली ताड़ी जिसमें एल्कोहल की मात्र 10 फीसदी से कम होती है, की बिक्री जारी रहेगी. हालांकि केरल हाईकोर्ट एक समय ताड़ी के कारोबार को शर्मनाक बता चुका है. इस घोषणा के साथ ही ताड़ी की इन दुकानों से देसी शराब की बिक्री बढ़ गयी है और रौनक भी लौटने लगी है. केरल ने ताड़ी पर रोक न लगाने का फैसला इसलिए किया है, क्योंकि पिछड़े समुदायों में से एक ‘इलावास’ इसके निर्माण में शामिल है.
क्या हो सकती है वैकल्पिक नीति
कोच्चि में मौजूद सामाजिक -आर्थिक और पर्यावरण अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष केके जॉर्ज कहते हैं, ‘‘शराबखाने या बार बंद करने का फैसला उन लोगों की शराब तक पहुंच पर रोक लगायेगा, जो उसे खरीदने के लिए लाइन में नहीं खड़े हो सकते. मगर कोई नहीं जानता कि सरकार के पास अवैध शराब निर्माण और तस्करी रोकने की क्षमता है या नहीं. यह यकीनन बहुत सोचा-समझा फैसला नहीं है.’’ ऐसे में, शराबखोरी की ऊंची दर रोकने का विकल्प क्या है?
जॉर्ज बेंगलुरु के मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान राष्ट्रीय संस्थान (निम्हांस) के अध्ययन से सहमत हैं कि अल्कोहल वाले पेय पदार्थो पर सही ढंग से कर लगाने से लोगों की ज्यादा पीने की आदत छुड़ाने में मदद मिलेगी. कहने का अर्थ यह है कि, ज्यादा अल्कोहल की मात्र वाले पेय पर ज्यादा कर लगे, और कम अल्कोहल की मात्र वाले पर कम. जॉर्ज कहते हैं, ‘‘कोशिश तेज शराब की खपत कम करने की होनी चाहिए, इसके लिए इस पर ज्यादा कर लगाया जाये. साथ ही, कम अल्कोहल वाले पेय जैसे बीयर और वाइन पर कर कम किया जाये, जिससे लोगों को एक बेहतर विकल्प मिल सके.’’ उनके मुताबिक, शराबबंदी वाले राज्यों में शराब पर रोक कामयाब नहीं रही है.
एक विकल्प यह भी सुझाया जाता है कि शराब की कीमतें लगातार बढ़ायी जायें. गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन, तिरुवनंतपुरम में एसोसिएट प्रोफेसर जोस सेबास्टियन इससे इत्तेफाक नहीं रखते. वह कहते हैं, ‘‘एक दिहाड़ी मजूदर से शराब पर 600 फीसदी टैक्स वसूलना क्रूरता है. सरकार का यह तर्क कि शराब महंगी होने से गरीब कम पियेंगे, बेहूदा है. जो आदी है, वह पियेगा ही. हां, उसके बच्चों के खाने में कटौती जरूर हो जायेगी.’’ वह कहते हैं कि शराब की कीमतों में हर बढ़ोतरी गरीबों की आमदनी को घटा देती है, उनके बच्चों के पोषण के स्तर को कम कर देती है, बीमार पड़ने पर इलाज से दूर कर देती है. वह शराब पर राशन प्रणाली का समर्थन करते हैं. इसी से शराब का सेवन घटेगा.
राज्यों की शराब पर निर्भरता
अभी देश में सिर्फ चार राज्यों- गुजरात, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में कानूनन शराबबंदी लागू है. इनको छोड़ दें, तो सभी राज्यों के खजाने में राजस्व जोड़ने में शराब दूसरे, तीसरे या चौथे स्थान पर जरूर है. शराब पर रोक से जब राजस्व के नुकसान की बात आती है, तो सबसे ज्यादा चर्चा उत्पाद कर की होती है. लेकिन उत्पाद कर से ज्यादा सरकार को बिक्री कर (सेल्स टैक्स) मिलता है. अधिकतर राज्यों में सरकारी राजस्व में शराब की हिस्सेदारी 20 फीसदी के आसपास है. एक तरह से कहें, तो सरकारें शराब की कमाई की लत की शिकार हो चुकी हैं. इसे छोड़ पाना उनके लिए बेहद मुश्किल है. केरल में सरकार जो शराब की बोतल 32.30 पैसे में खरीदती है, उसे 230 रुपये में बेचती है. यह जो अंतर है, वह सरकार के खजाने में जाता है. तिरुवनंतपुरम स्थित गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन में एसोसिएट प्रोफेसर जोस सेबास्टियन कहते हैं, ‘‘शराब की कमाई से उल्टे नुकसान ही होता है. यह सरकारों को राजस्व के दूसरे स्नेत तलाशने को लेकर निकम्मा बनाती है. और, यह भी महत्वपूर्ण है कि शराब से सरकारें जो कमाई करती हैं, उसका बड़ा हिस्सा कामगार तबके से आता है.’’