इस बात में कोई संदेह नहीं कि ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है. वर्षों पुरानी नीतियों व भ्रष्ट प्रबंधन के चलते देश को भारी बिजली कटौती का सामना करना पड़ा. वर्षों से एक महारत्न कंपनी पर यह आरोप लगता रहा है कि वह प्रचुर मात्रा में कोयला उत्पादन नहीं कर पा रही है जिससे कई बड़ी ऊर्जा-परियोजनाएं ठप पड़ गयी हैं. लेकिन अब तक इसका निदान नहीं ढूंढ़ा जा सका है.
भारत विकासशील देश है, जिसकी ऊर्जा-खपत आनेवाले वर्षों में काफी बढ़ेगी. विनिर्माण क्षेत्र पर प्रधानमंत्री ने काफी जोर दिया है, किंतु बिना ऊर्जा के यह कैसे संभव है? अक्षय ऊर्जा बढ़ाने में देश लगा हुआ है, पर कछुए की चाल से काम नहीं चलेगा. हर साल अरबों का कोयला हम आयात करते हैं, जबकि हमारे पास 200 साल का कोयला जमीन में है. इससे बड़ी बेवकूफी क्या हो सकती है? देश को नयी ऊर्जा-नीति चाहिए.
।। मनोज सिंह, रांची ।।