गंगा पर बराज बनाने से संकट
सरकार की योजना है कि गंगा पर हल्दिया से इलाहाबाद तक बड़े जहाजों से माल की ढुलाई की जाये. वर्तमान में पानी कम होने से गंगा पर केवल छोटे जहाज ही चल पाते हैं. बड़े जहाज को चलाने के लिए पानी की गहराई अधिक चाहिए. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हर 100 किमी पर […]
सरकार की योजना है कि गंगा पर हल्दिया से इलाहाबाद तक बड़े जहाजों से माल की ढुलाई की जाये. वर्तमान में पानी कम होने से गंगा पर केवल छोटे जहाज ही चल पाते हैं. बड़े जहाज को चलाने के लिए पानी की गहराई अधिक चाहिए. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हर 100 किमी पर बराज (वाटरवे) बनाया जायेगा. इन बराजों पर ह्यलॉकह्ण बना कर बड़े जहाज को पार कराया जायेगा.
इस तरह गंगा को 100-100 किलोमीटर के 16 तालाबों में तब्दील कर दिया जायेगा. इससे ढुलाई खर्च में बचत होगी. ट्रक से 1.5 रुपया प्रति किलो ढुलाई पड़ती है, ट्रेन से एक रुपया और बड़े जहाज से 50 पैसे. गंगा पर बराज बनाने से जहाजों से बहुत कम खर्च में ही ढुलाई हो सकेगी.
संकेत है कि इस हेतु प्रधानमंत्री की स्वीकृति नहीं है. दरअसल, बराज बनाने से पर्यावरण और संस्कृति पर दुष्प्रभाव पड़ेंगे. कई मछलियां अंडे देने दूर जाती हैं. हिलसा समुद्र में रहती है, परंतु अंडा देने के लिए वह 1000 किमी तक नदी में ऊपर जाती है. नयी बराज बनाने से हिलसा के पूर्ण नष्ट होने की संभावना है. मछली का महत्व भोजन तक सीमित नहीं है. जल की गुणवत्ता बनाये रखने में मछली का विशेष योगदान है. बराजों के बनने से हिलसा के साथ-साथ गंगा की शुद्धता नष्ट हो जायेगी.
दूसरा प्रभाव बालू पर पड़ेगा. नेशनल इनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर ने पाया है कि गंगा के बालू में तांबा, क्रोमियम तथा सूक्ष्म मात्रा में रेडियोधर्मी थोरियम कई गुना अधिक हैं. इन तत्वों में कीटाणुओं को मारने की क्षमता होती है. गंगा जल में कालीफाज नामक लाभप्रद कीटाणु तथा कालीफार्म नामक हानिकारक कीटाणु पाये जाते हैं. कालीफार्म स्वास्थ के लिए हानिप्रद होते हैं. साधारणत: एक प्रकार का कालीफाज एक विशेष प्रकार के कालीफार्म को खा लेता है और नदी को साफ कर देता है. गंगा की अपने को शुद्घ करने की क्षमता का रहस्य इन्हीं कालीफाज में है. ये कालीफाज बालू में रहते हैं. बराज बनाने से बालू का बहाव अवरुद्घ होगा और गंगा की क्षमता का ह्रास हो जायेगा.
बराजों में बालू के रुकने से देश की पावन भूमि पर भी आघात होगा. समुद्र के पानी में बालू की स्वाभाविक भूख होती है. सामान्य रूप से समुद्र अपने तटों को काट कर बालू की अपनी भूख को पूरा करता है. इसलिए विश्व के अधिकतर समुद्रतट पथरीले होते हैं. इनके बालू को समुद्र खा चुका होता है. लेकिन किन्हीं स्थानों पर नदी के द्वारा प्रचुर मात्रा में बालू लाने से समुद्र की यह भूख शांत हो जाती है और नयी भूमि बनने लगती है. विश्व की तमाम नदियों में भारत की गंगा और चीन की पीली नदी में अधिकतम बालू आता है. बराज बनाने से गंगा का बालू समुद्र तक नहीं जायेगा. बालू बराजों के पीछे रुक कर जमा हो जायेगा. जैसे फरक्का के बनने के समय बराज के पीछे पानी की गहराई 75 फुट थी. बालू जमा होने से आज यह मात्र 15 फुट रह गयी है. पिछले सौ वर्षों में गंगासागर द्वीप का लगभग तीन किमी क्षेत्र इसी कारण समुद्र में समा चुका है.
शोध से पता चलता है कि गंगा जल में विचारों को याद रखने की क्षमता होती है. इसलिए गंगा के किनारे आसानी से ध्यान लग जाता है. अन्य नदियों के किनारे ऐसा नहीं होता. गंगा की यह आध्यात्मिक शक्ति उसके अविरल बहाव से रक्षित होती है. इसे देखते हुए ही महामना मालवीयजी ने ब्रिटिश सरकार को भीमगोड़ा बराज में एक हिस्से को खुला रखने को मजबूर किया था, ताकि नीचे के लोगों को आध्यात्मिक लाभ मिल सके. बाद में भारत की सरकारों ने इसे बंद ही नहीं किया, बल्कि अलकनंदा पर विष्णुप्रयाग व श्रीनगर बांध और भागीरथी पर टिहरी बांध बना कर गंगा की मूल आध्यात्मिक शक्ति को नष्ट कर दिया.
मुझे बताया गया है कि टिहरी बांध में डेढ़ इंच की पाइप के माध्यम से पानी लगातार बहता है. टिहरी झील के सड़े हुए पानी की इस धागे जैसी धारा को ह्यअविरलह्ण मान लिया गया है. अब नया भ्रम बनाया जा रहा है कि 15 प्रतिशत पानी को लगातार छोड़ा जायेगा. लेकिन झील से यदि सौ प्रतिशत पानी भी छोड़ दिया जाये, तो भी वह अविरल नहीं होता है. गंगा को अविरल बनाने के लिए चीला, भीमगोड़ा, बिजनौर, नरोरा तथा फरक्का जैसे पूर्व में बने हुए तमाम अवरोधों को हटाने का काम हाथ में लेना चाहिए. सिंचाई के लिए पुराने भीमगोड़ा जैसे बराज बनाये जा सकते हैं, जिससे गंगा की मूल धारा अविरल बहती रहती थी.
बड़े जहाजों से 50 पैसा प्रति किलो ढुलाई खर्च पड़ता है. मेरा अनुमान है कि छोटे जहाजों से यह खर्च 70 पैसा पड़ेगा. अगर बराज नहीं बनाये जाते हैं, तो संपूर्ण देशवासियों को गंगा के अविरल प्रभाव से सदैव ही लाभ मिलता रहेगा. 20 पैसे की बचत के लिए अपने देश की संस्कृति को खंडित नहीं करना चाहिए और छोटे जहाज से ढुलाई करने की योजना बनानी चाहिए. देश आशा करता है कि हमारे प्रधानमंत्री इस योजना पर अपनी सूझ-बूझ से कोई निर्णय देंगे.