।। पवन के वर्मा ।।
सांसद एवं पूर्व प्रशासक
चाणक्य का मानना था कि वर्तमान की गतिविधियों की परछाईं भविष्य के निर्माण पर पड़ती है. इसीलिए वे कहते थे कि आज की स्थिति का विश्लेषण कल को आकार देने की रणनीति बनाने के लिए आधार प्रदान करता है. भूत, वर्तमान व भविष्य के बीच कार्य, कारण की निरंतरता है. जो विगत से सही सीख लेते हैं, वे वर्तमान को समझते हैं और भविष्य के लिए समुचित रूप से तैयार होते हैं. और जो ऐसा नहीं करते, वे दूरदृष्टि के दुराग्रहपूर्ण अभाव के दूरगामी परिणामों के बारे में सोचे बिना तात्कालिक लाभ के फेर में पडे़ रहते हैं.
यह तीक्ष्ण बौद्धिक विरासत, जिसे हममें से अधिकतर लोग आज शायद भूल चुके हैं, भारत के वर्तमान के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है. उदाहरण के लिए, अन्य देशों, विशेषकर हमारे पड़ोस, में होनेवाली महत्वपूर्ण घटनाओं और हमारे देश पर पड़नेवाले उनके परिणामों में सीधा संबंध होता है. दुनिया के सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक में स्थित भारत जैसे देश के लिए इसकी अनदेखी करना बहुत बड़ी भूल होगी- चीन के साथ 4,057 किलोमीटर लंबी विवादित वास्तविक नियंत्रण रेखा, पाकिस्तान के साथ 778 किलोमीटर लंबी विवादित नियंत्रण रेखा, सात देशों के साथ कुल 15,106 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा और 7,516 किलोमीटर लंबी अतिसंवेदनशील समुद्री सीमा.
इसके अलावा, पाकिस्तानी शासन-तंत्र में भारत-विरोधी तत्व भरे पडे़ हैं.हम सीमा-पार से प्रायोजित आतंकवाद के साथ देश के भीतर बढ़ रहे आतंकवाद से समस्याग्रस्त हैं. अमेरिकी और नाटो सेना की वापसी की संभावना से पुन: संगठित होते तालिबान के कारण अफगानिस्तान अस्थिर है. नेपाल और बांग्लादेश भारत-विरोधी आतंकवाद के खतरनाक वाहक बने हुए हैं. म्यांमार का बड़ा हिस्सा कई तरह के आतंक की चपेट में है. इन सभी परिस्थितियों के बीच एक चीन है, जो हमसे संबंध स्थापित करने की कोशिशों के बीच इस अस्थिरता का बेजा फायदा उठाने की जुगत में रहता है.
अल-कायदा द्वारा भारत में जेहादी आतंक फैलाने की धमकीवाला तथाकथित वीडियो इस संदर्भ में बहुत खतरनाक हो जाता है. कुछ लोगों का तर्क है कि हमें इस वीडियो को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट के उदय से कथित तौर पर कम हुए उसके प्रभाव को बहाल करने का हथकंडा भर है. यह बात सही हो सकती है, पर गलत भी हो सकती है, तथा, किसी भी स्थिति में हमारे लापरवाह बने रहने का कोई आधार नहीं है.
इसके दो कारण हैं. पहला, हमारा सुरक्षा-तंत्र कमजोर, साधनविहीन, दिशाहीन और असंगठित है, जहां अनेक एजेंसियां अकसर बिना किसी केंद्रीय रणनीतिक उद्देश्य के अलग-अलग सक्रिय रहती हैं. दूसरा, जो बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, केंद्र में काबिज वर्तमान सरकार देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश करती दिख रही है, जिसे रोका नहीं गया, तो यह अल-कायदा की धमकी के कारगर होने के लिए सबसे उपजाऊ जमीन उपलब्ध करायेगा.
दो हजार वर्ष से भी अधिक पहले चाणक्य ने इस शाश्वत सत्य को रेखांकित किया था कि बाह्य शत्रुओं को परास्त करने की राष्ट्र की क्षमता अंततोगत्वा इस बात पर निर्भर करती है कि वह आंतरिक रूप से कितना स्थिर व स्वस्थ है. सांप्रदायिक द्वेष और हिंसा फैलाने के इरादे से संघ परिवार के सदस्यों द्वारा दिये जा रहे भड़काऊ बयान ऐसे टाइम बम हैं, जो देश में सामाजिक अस्थिरता के दोहन के इंतजार में सीमा पार बैठे लोगों के फायदे में हैं. उत्तर प्रदेश के उप-चुनावों में योगी आदित्यनाथ को अगुवा बनाने का भाजपा का निर्णय उत्तेजक उदाहरण है. चुनाव आयोग की चेतावनी और मुकदमों की परवाह नहीं करते हुए उन्होंने अपने भाषणों में खूब सांप्रदायिक विष वमन किया है.
सच्चाई यह है कि धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर गोरखपुर में चुनावी जागीर के अलावा कोई और विशेषता नहीं रखनेवाले योगी आदित्यनाथ भारत को हिंदू राष्ट्र बतानेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के निर्देशों का पालन भर कर रहे हैं. सही बात है कि भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन यह भी सही है कि देश में विभिन्न धर्मों को माननेवाले भी बड़ी संख्या में रहते हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में ही कहा था कि हमारे लिए धार्मिक सह-अस्तित्व विकल्प नहीं, बल्कि विवशता है. सदियों से हम आम-तौर पर शांति और सहिष्णुता के साथ रहते आये हैं. अगर हमारे सामाजिक ताने-बाने में टूट-फूट होती है, तो कोई भी भारतीय कहीं सुरक्षित नहीं रह सकेगा. देश का शासन और प्रगति रुक जायेगी. शानदार विविधता भारत की विशिष्टता रही है और यह बनी रहनी चाहिए, क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीयता और सभ्यता की नींव है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा-आरएसएस समूह इस बात को अच्छी तरह समझता है. ऐसा लगता है कि संघ परिवार ने समझ-बूझ कर यह नीति अपनायी है कि उच्च नेतृत्व विकास की बात करता रहेगा और संघ परिवार के कट्टर तत्व देश में सांप्रदायिक द्वेष फैला कर विनाश की राह पर चलेंगे.
उन्हें इस तरह की नीति के दीर्घकालिक परिणामों का अंदाजा नहीं है. कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारे पास अल-कायदा जैसे संगठनों की चुनौतियों से निपटने की क्षमता है. सच यह है कि सुरक्षा तैयारियों और इंटेलिजेंस तंत्र के हार्डवेयर के मामले में हम बहुत ताकतवर नहीं हैं, और इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि उनकी सरकार हमारी एकताद्व सामाजिक सद्भाव के सॉफ्टवेयर को जान-बूझ कर कमजोर कर रही है. यह ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिस पर हमारा पेटेंट है और इसकी वजह से ही हमें विभाजित और अस्थिर करने की कोशिश करनेवाली ताकतों को दूर रखने में हम सफल रहे हैं. आज हम ऐसी खतरनाक ताकतों की क्षमता की अनदेखी नहीं कर सकते हैं.
भाजपा-आरएसएस समूह को चाणक्य की सीख पर जरूर ध्यान देना चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो भले ही फिलहाल देश के कुछ हिस्सों में होनेवाले चुनाव में या अन्य किन्हीं जगहों पर उन्हें कुछ हद तक कामयाबी हासिल हो जाये, लेकिन भविष्य के ऐतबार से वे भारत के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे.