खुद ही कांटे बो रहे हैं अभिभावक

मैं जब शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में मास कॉम की पढ़ाई कर रहा था, तो उस समय एक बहुत ही अजीब किस्म का वाकया हुआ. मैने देखा कि एक छात्र ने कुछ गलती की थी. उसे शिक्षक ने कुछ आदेश दिया, लेकिन उसने उसे मानने से इनकार कर दिया. जब शिक्षक ने जोर दिया, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 19, 2014 12:34 AM

मैं जब शहर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में मास कॉम की पढ़ाई कर रहा था, तो उस समय एक बहुत ही अजीब किस्म का वाकया हुआ. मैने देखा कि एक छात्र ने कुछ गलती की थी. उसे शिक्षक ने कुछ आदेश दिया, लेकिन उसने उसे मानने से इनकार कर दिया. जब शिक्षक ने जोर दिया, तो उसने उनके साथ बदतमीजी की और अपशब्द कहे.

शिक्षक को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने उसे थप्पड़ जड़ दिया. उसके बाद छात्र ने गुस्से में अपने किताबों के थैले को सड़क पर फेंक दिया. छात्र काफी अमीर घर से था. कुछ देर बाद उसके अभिभावक आये, उन्होंने यह नहीं पूछा कि उनके बेटे को सजा क्यों दी गयी या उसकी गलती क्या थी. उन्होंने भी कॉलेज में तोड़-फोड़ की और शिक्षकों को अपशब्द कहे. मैं यह देख कर धन्य हो गया कि जिस शहर के छात्र ही ऐसे हैं उसका भविष्य तो भगवान के ही हाथों में है. अभिभावक अक्सर पैसे के नशे में अपने बच्चों की गलतियों को ढकने का प्रयास करते हैं. इससे बच्चे का मनोबल और बढ़ जाता है. वह यह सोचता है कि गलती करूंगा तो भी क्या डर है.

माता-पिता तो हैं ही बचाने के लिए. लेकिन वह यह नहीं समझ पाता है कि वह इस तरह अपराध की ओर अग्रसर हो रहा है. ऊपर जो आपने उदाहरण पढ़ा, उसमें तो शिक्षक ने कम-से-कम विरोध भी किया था. कई स्कूल और कॉलेज तो ऐसे भी हैं जहां शिक्षक भी ऐसे बच्चों को विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. इसी कारण यह देखा जा रहा है कि आज कल छेड़खानी की घटनाएं भी काफी बढ़ गयी हैं, क्योंकि ऐसे छात्रों को कोई रोकने-टोकनेवाला नहीं है. यौन उत्पीड़न में भी नाबालिगों का नाम अधिक आना इसी बात की पुष्टी करता है. स्कूल सिर्फ अंगरेजी सिखाने के संस्थान मात्र रह गये हैं, नैतिक शिक्षा का उनमें कोई स्थान नहीं है.

आये दिन खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि फलां संस्थान के छात्रों ने हॉस्टल में मार-पीट की या तोड़-फोड़ किया. क्या ऐसे छात्रों के माता-पिता नहीं होते हैं. उन्हें यह नहीं दिखता है कि छात्र पढ़ने के बजाय क्या कर रहे हैं. आज छात्रों में अनुशासन की इतनी कमी होती जा रही है कि उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ता है. हाल ही में दूसरे राज्यों के छात्रों ने प्रदर्शन करने के लिए शालीन रास्ता अपनाया. उनकी मांग न माने जाने के कारण उन्होंने सड़क और गाड़ियों की सफाई शुरू कर दी.

जबकि बिहार में छात्रों ने ईल प्रदर्शन किया. कितने अभिभावकों ने उन्हें रोकने की कोशिश क्यों नहीं की या कितनों ने उन्हें इसके लिए दंडित किया होगा? यह सोचने का विषय है. अभिभावक यह नहीं समझते कि यदि वे शुरू में ही अपने बच्चों की गलतियों को पहचान कर भी उन्हें दंडित नहीं करते, तो वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं. बाद ऐसे ही पुत्र अपने माता-पिता के साथ भी वही व्यवहार करते हैं, जो वे आज दूसरों के साथ करते हैं. उसके बाद बुढ़ापे में अपने बच्चों को कोसने से क्या लाभ, बीज तो वे ही बोते हैं.

अजय कुमार

प्रभात खबर, पटना

ajayajaykmr@gmail.com

Next Article

Exit mobile version