भारत में अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह का चलन कोई नया नहीं है. इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं और वर्तमान में भी कई मिसालें हैं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि प्यार-मोहब्बत दरअसल धर्म और जाति के दायरे से ऊपर है.
भारतीय संविधान भी इसकी अनुमति देता है. अब तो नयी पीढ़ी ऐसे विवाह को लेकर काफी उदार रुख रखती है. वैसे, किसी धर्म या जाति के आधार पर परस्पर विवाह को रोकने की अनुमति किसी को नहीं है, लेकिन धर्म के आधार पर समाज के ध्रुवीकरण करने में लगी भाजपा और अन्य संगठनों द्वारा ‘लव जेहाद’ के नाम पर बेहूदा आंदोलन छेड़ा जा रहा है. ‘लव जेहाद’ के नाम पर सांप्रदायिक उन्माद उत्पन्न करके भाजपा अपने क्षरण को नहीं रोक सकती, यह सच्चाई जितनी जल्दी इस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समझ में आ जायेगी, उतनी जल्दी उनका और देश का भला है.
आनंद गोयल, ई-मेल से