बराबरी अच्छी, पर अपने गुण न छोड़ें

समाज परिवर्तनशील है. पहले स्त्रियों को पुरुषों से बराबरी करने का हक नहीं था. वे घर के कार्यो को संभालती थीं और पुरुष बाहरी कार्यो को बुद्धिमत्ता से निबटाते थे. ऐसे में घर बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से चलता था. घर के सदस्यों के बीच श्रम विभाजन भी हो जाता था पर आज किसका क्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2014 3:52 AM

समाज परिवर्तनशील है. पहले स्त्रियों को पुरुषों से बराबरी करने का हक नहीं था. वे घर के कार्यो को संभालती थीं और पुरुष बाहरी कार्यो को बुद्धिमत्ता से निबटाते थे. ऐसे में घर बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से चलता था. घर के सदस्यों के बीच श्रम विभाजन भी हो जाता था पर आज किसका क्या काम है, पता ही नहीं चलता. स्त्रियां नौकरी भी करती हैं, घर भी संभालती हैं. अब पुरुष भी घर के कामों में हाथ बंटाते हैं.

दोनों मिल कर खाना बनाते हैं, बच्चे संभालते हैं. आज स्त्री-पुरुष एक बराबर हैं. स्त्रियां उन जगहों पर भी कार्य कर रही हैं, जहां पहले पुरुषों का वर्चस्व था. वे पुलिस की नौकरी, पायलट की उड़ान, पर्वतारोहण, अंतरिक्ष यात्र, यहां तक कि टैक्सी, ट्रैक्टर तथा रेलवे इंजन चलाने में भी अपने हाथ आजमा रही हैं.

यह बड़ी अच्छी बात है कि हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं. पर यह भी जानना आवश्यक है कि उनमें और पुरुषों में क्या अंतर है. स्त्री और पुरुष के शरीर, कद-काठी, कुदरत ने अलग-अलग बनाये हैं. स्त्रियां शरीर और मन से कोमल, भावुक और पुरुष बलवान और कठोर. पुरुषों में धैर्य, सहनशीलता स्त्रियों की तुलना में बहुत कम होती है. स्त्रियों पुरुषों से ज्यादा संतुलित एवं दृढ़ होती हैं, तन से कमजोर, पर मन से पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक मजबूत होती हैं.

यह कहा गया है कि अगर स्त्रियों के गुण पुरुषों में आ जायें तो वह देवता बन जाता है और अगर पुरुषों के गुण स्त्रियों में तो वह राक्षसी हो जाती हैं. आज कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल चुकी हैं. उनके सशक्त मन ने उनके शरीर में भी ऊर्जा एवं कार्यक्षमता भर दी है. पर मेरे विचार से नारी को पुरुषों से बराबरी के क्रम में दया, ममता, कोमलता जैसे अपने नैसर्गिक गुणों को बनाये रखना चाहिए.

अवधेश वर्मा, रांची

Next Article

Exit mobile version