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अब तो कुछ बोलना भी गुनाह है!

अजीत पांडेय प्रभात खबर, रांची क्या हम दिन-ब-दिन असहिष्णु होते जा रहे हैं? अब कुछ कहना भी गुनाह हो जायेगा? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ संविधान नामक किताब में रह जायेगी? हाल ही में, एक खबर आयी कि मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति जवाहरलाल कौल ने अपील की कि राज्य में कश्मीरी छात्रों […]

अजीत पांडेय

प्रभात खबर, रांची

क्या हम दिन-ब-दिन असहिष्णु होते जा रहे हैं? अब कुछ कहना भी गुनाह हो जायेगा? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ संविधान नामक किताब में रह जायेगी? हाल ही में, एक खबर आयी कि मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति जवाहरलाल कौल ने अपील की कि राज्य में कश्मीरी छात्रों की फीस माफ कर देनी चाहिए. और, स्थानीय लोगों को किराये के मकानों में रह रहे कश्मीरी छात्रों से कुछ महीनों तक किराया नहीं लेना चाहिए. क्योंकि जहां उनका घर है वहां बाढ़ आयी हुई है.

यकीनन, यह कौल साहब का बड़प्पन था. वह खुद कश्मीरी पंडित हैं. आतंकवाद के चरम दौर में कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में क्या सलूक हुआ था, यह हम सब जानते हैं. फिर भी कौल साहब ने नफरत की जगह, अपने भीतर इंसानियत जिंदा रखी. यह सीखने लायक बात है. लेकिन, विहिप और बजरंग दल वालों को यह रास नहीं आया. उनकी नजर में कश्मीर और कश्मीरियों से हमदर्दी रखनेवाला सिर्फ ‘राष्ट्रदोही’ हो सकता है.

और, राष्ट्रदोही को सबक सिखाने के पुण्य कार्य के लिए उन्होंने कौल साहब के दफ्तर पर धावा बोल दिया. तोड़-फोड़ तो की ही, बदसलूकी भी की. इतना सदमा लगा कि उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. विहिप, बजरंग दल के अलावा भी ऐसे अनेक लोग होंगे, जो यह सवाल कर सकते हैं कि बाढ़ में राहत पहुंचा रही सेना को धन्यवाद देने की जगह, उलटे उस पर हमला कर रहे कश्मीरियों के लिए आपके मन में क्यों दर्द उमड़ रहा है.

ऐसे लोगों को मैं तीन वजहें गिनाना चाहता हूं. पहली, इस हकीकत को मानिए कि कश्मीरियों के एक अच्छे-खासे हिस्से की सहानुभूति पाकिस्तान और अलगाववादियों के साथ है. अगर प्राकृतिक आपदा के समय में पूरा देश तन-मन-धन से कश्मीर के साथ खड़ा होगा, तो भारत को लेकर कश्मीरियों के रवैये में बदलाव आ सकता है. दूसरी, कुछ लोगों की असहिष्णुता और हिंसक प्रतिक्रिया को सारे कश्मीरियों का आचरण नहीं मान लेना चाहिए. तीसरी, हमें आपदा के समय केवल मानवीय संवदेना का ही ध्यान रखना चाहिए.

जो लोग कश्मीरियों को दुश्मन मानते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि युद्ध के मैदान में मौत के सामने खड़े असहाय दुश्मन की भी मदद की जाती है. कश्मीर का मसला अपनी जगह है, मगर किसी को अपनी राय व्यक्त करने की आजादी से रोका नहीं जाना चाहिए. असहमति की आजादी की रक्षा ही लोकतंत्र का बीज है. कुछ सालों पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे पूर्व नौकरशाह टीवी राजेश्वर. उन्हें बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया. उन्होंने संस्कृत के गढ़ में बैठ कर, छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत बैलगाड़ी युग की भाषा है. यह उनकी अपनी राय थी, पर छात्रों ने काफी हंगामा किया.

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