अफगानिस्तान की उम्मीद व आशंका

अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच समझौते के साथ अफगानिस्तान में राष्ट्रपति पद को लेकर पिछले ढाई महीने से चल रहा गतिरोध फिलहाल समाप्त हो गया है. समझौते के तहत गनी राष्ट्रपति होंगे और अब्दुल्ला के लिए नया पद सृजित किया जायेगा, जो प्रधानमंत्री पद जैसा होगा. 14 जून को हुए चुनाव में बड़े […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2014 3:55 AM
अशरफ गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच समझौते के साथ अफगानिस्तान में राष्ट्रपति पद को लेकर पिछले ढाई महीने से चल रहा गतिरोध फिलहाल समाप्त हो गया है. समझौते के तहत गनी राष्ट्रपति होंगे और अब्दुल्ला के लिए नया पद सृजित किया जायेगा, जो प्रधानमंत्री पद जैसा होगा.
14 जून को हुए चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए अब्दुल्ला ने परिणामों को मानने से इनकार कर दिया था. अमेरिकी सेनाओं की संभावित वापसी और तालिबान के बढ़ते प्रभाव की पृष्ठभूमि में इस राजनीतिक संकट से अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिरता पर प्रश्नचिह्न् खड़े होने लगे थे. दोनों पक्षों को मनाने की कोशिश में मतों की गणना और जांच का जिम्मा संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया गया था.
इस जांच की रिपोर्ट के सार्वजनिक नहीं होने और अनेक विश्लेषकों की नजर में धांधली के आरोप सही होने के कारण गनी-अब्दुल्ला समझौते का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई उत्साहजनक स्वागत नहीं हुआ है. दोनों पक्षों में परस्पर विश्वास की कमी के कारण इसके स्थायित्व को लेकर भी प्रश्नचिह्न् है. अफगानी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति शासनाध्यक्ष होता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि गनी और अब्दुल्ला के बीच अधिकारों का बंटवारा किस प्रकार होता है तथा दोनों नेता सामंजस्य व सहयोग के साथ कितनी दूर साथ चल पाते हैं. बहरहाल, इस मायने में यह समझौता महत्वपूर्ण है कि अफगानिस्तान के इतिहास में पहली बार सत्ता-हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से हो रहा है और नयी सरकार एक मिली-जुली सरकार होगी. देश को स्थिरता व विकास की आवश्यकता है और इसके लिए राजनीतिक एकता आधारभूत शर्त है.
अशांत अफगानिस्तान दक्षिण एशिया सहित पूरी दुनिया के लिए भी खतरनाक है. ऐसे में अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत और पाकिस्तान को भी संयम व सकारात्मक रुख अपनाना होगा. गनी और अब्दुल्ला को भी अपने मरहूम नेता अहमद शाह मसूद की इस बात को याद करना चाहिए कि अफगानिस्तान को दूसरों के खेल का मोहरा नहीं बनना है, उसे अफगानिस्तान बनना है. आशंकाओं के बावजूद इन नेताओं से उम्मीद है कि वे अपनी ऐतिहासिक जिम्मेवारी को पूरा कर सकेंगे.

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