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मोदी के खिलाफ नहीं उप-चुनाव के नतीजे

उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय मोदी के करिश्मे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सांगठनिक व लामबंदी करने के कौशल को दिया गया था. उप-चुनाव की हार इंगित करती है कि मोदी का योगदान शाह से बहुत अधिक महत्वपूर्ण था. अपनी पार्टी और मतदाताओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पकड़ इस […]

उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय मोदी के करिश्मे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सांगठनिक व लामबंदी करने के कौशल को दिया गया था. उप-चुनाव की हार इंगित करती है कि मोदी का योगदान शाह से बहुत अधिक महत्वपूर्ण था.

अपनी पार्टी और मतदाताओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पकड़ इस महीने हुए उप-चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखी है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव की तुलना में कमजोर रहा, लेकिन 33 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में किसी और पार्टी की तुलना में उसने अधिक सीटें जीती हैं. उसे उत्तर प्रदेश में 11 में तीन, गुजरात में 9 में 6, राजस्थान में चार में एक तथा पश्चिम बंगाल और असम में एक-एक सीटें मिली हैं. वैसे आम तौर पर यही संदेश गया कि पार्टी की हार हुई है.

अंगरेजी दैनिक ‘द हिंदू’ के एक विश्लेषण में कहा गया कि भाजपा की हार भारत में सत्तारुढ़ दलों के ऐतिहासिक रुझान के विपरीत है. कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने अपनी सरकार वाले राज्यों में 2004 और 2009 के बाद हुए उपचुनावों में क्रमश: लगभग दो-तिहाई और 80 फीसदी सीटें जीती थी. इसमें यह भी रेखांकित किया गया है कि ‘लोकसभा चुनाव की तुलना में इस उप-चुनाव में भाजपा के वोट कम हुए हैं.

भाजपा के लिए यह चिंताजनक हो सकता है कि वह अपनी गतिशीलता खो रही है, क्योंकि यह पहला उप-चुनाव नहीं है, जिसमें उसका प्रदर्शन खराब रहा है. उप-चुनाव के पिछले दो दौर में भी उसका प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर रहा था.’ मेरी राय में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन परिणामों से बहुत चिंतित नहीं है और इसके कारणों का विश्लेषण मैं लेख में आगे करूंगा.

लंबे समय से मीडिया के निशाने पर रहे उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी जीत भाजपा की नकारात्मक नीतियों के कारण हुई है. राज्य में भाजपा की टीम ऐसे मसले को उठा रही है, जिसे उसने ‘लव जेहाद’ का नाम दिया है जिसका मतलब है कि मुसलिम पुरुष हिंदू लड़कियों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं और उनका असली मकसद उनका धर्मातरण है. इस आरोप की पुष्टि में कुछ घटनाएं गिनायी गयीं, लेकिन इसे आधार देने के लिए अपेक्षानुरूप पर्याप्त आंकड़े नहीं दिये गये.

इस कहानी का बहुत असर मतदाताओं पर नहीं हुआ और भाजपा द्वारा इसे इस हद तक तूल नहीं दिया जाना चाहिए था. लेकिन क्या यह मसला ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के निराशाजनक परिणाम का वास्तविक कारण था? मुङो ऐसा नहीं लगता है, क्योंकि यह भाजपा के विरुद्ध नकारात्मक मतदान प्रतीत नहीं होता.

उत्तर प्रदेश के तीन मुख्य दलों में एक मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने इस उप-चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था. विश्लेषण यह दिखाता है कि भाजपा के मतों में पांच फीसदी की वृद्धि हुई है, जिसका मतलब है कि बसपा के कुछ मतदाताओं ने हिंदुत्व पार्टी को वोट दिया है. भाजपा की हार का कारण उसके लव जेहाद के प्रचार को बताते हुए कांग्रेस के शकील अहमद ने कहा कि ‘यह भाजपा की घृणा की राजनीति का नकार है.’ लेकिन आंकड़े ऐसा संकेत नहीं कर रहे हैं.

राजस्थान दूसरा राज्य है, जहां भाजपा साफ तौर पर पराजित हुई. लोकसभा चुनाव के मोदी अभियान में उसने राज्य की सभी सीटों पर जीत दर्ज की और इसी कारण से चार में से तीन विधानसभा सीटों पर उसकी हार को बहुत बड़ी हार माना जा रहा है. लेकिन राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच हमेशा कांटे की टक्कर रही है और इस उप-चुनाव से कोई विशेष रुझान निकल कर सामने नहीं आ रहा है.

गुजरात, जिसे मोदी ने 12 वर्षो तक संभाला है, में मतदाताओं का रुख भाजपा के विरुद्ध नहीं था और उसने नौ में से छह सीटें जीतीं. इससे एक बार फिर यह संकेत मिलता है कि दो-दलीय राजनीति वाले इस राज्य से कांग्रेस अभी भी बाहर है, जिसे आखिरी बार यहां 1985 में बहुमत मिला था.

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने एक सीट जीती, जो कि राज्य के इतिहास में बिना सहयोगियों के यह पहली जीत है और दूसरी सीट पर वह दूसरे स्थान पर आयी तथा उसे वाम मोर्चे और कांग्रेस के प्रत्याशी से अधिक वोट मिले हैं. देश के एक बड़े राज्य में भाजपा अब बड़ी खिलाड़ी होने का दावा कर सकती है. इस बढ़त का सबसे बड़ा कारण मोदी की लोकप्रियता है.

कुल मिला कर व्यक्तिगत रूप से मोदी के लिए यह बुरा परिणाम नहीं है. उन्होंने यह रेखांकित किया होगा कि उनकी अनुपस्थिति में (उन्होंने उप-चुनाव में प्रचार नहीं किया था) पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया है. यह उनकी उपस्थिति और नेतृत्व है, जिससे भाजपा के जीत के लिए वोट जुटता है. उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय मोदी के करिश्मे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सांगठनिक व लामबंदी करने के कौशल को दिया गया था. उप-चुनाव की हार इंगित करती है कि मोदी का योगदान शाह से बहुत अधिक महत्वपूर्ण था. भाजपा की असली ताकत तभी देखी जा सकती है, जब मोदी संघर्ष के मैदान में हों, जैसा कि महाराष्ट्र के आगामी चुनाव में साबित होगा.

महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण सहयोगी शिव सेना सीटों के बंटवारे को लेकर अड़ियल रुख दिखा रही है. यह उनकी आदत है और पिछले 20 वर्षो से ठाकरे परिवार जोर देता रहा है कि सेना विधानसभा में और भाजपा लोकसभा में बड़ी भूमिका निभाये. पहले जब भी प्रमोद महाजन (जो अपने भाई के हाथों दुर्भाग्य से मारे जाने से पहले तक भाजपा की ओर से ठाकरे परिवार के साथ लेन-देन करते रहे थे) सेना के साथ बातचीत करते थे, मीडिया में परस्पर खींचतान की खबरें आती थीं. हर बार हिंदुत्व सहयोगी समझौते की राह निकाल लेते थे. उन्हें महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की तरह ही एक-दूसरे की जरुरत है. भाजपा गंठबंधन के मामले में बहुत उदार पार्टी है. उसने कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में मायावती को पहली बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया था.

यह तथ्य है कि आज महाराष्ट्र में भाजपा शिव सेना से अधिक लोकप्रिय है, जो एक क्षेत्रीय दल है और उसका जनाधार कुछ इलाकों तक सीमित है. इस बार नहीं तो अगली बार भाजपा बड़ी सहयोगी पार्टी के रूप में उभरेगी. बहरहाल, यह तो निश्चित है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में हारेगी, जहां से पार्टी को सबसे अधिक धन आता है. यह हार राजनीतिक रूप से ही नहीं, वित्तीय और प्रतिष्ठा के लिहाज से भी बड़ा झटका होगी. और, जब यह होगा तो राजस्थान की मामूली जीत का उत्साह बहुत जल्दी ठंडा पड़ जायेगा.

आकार पटेल

वरिष्ठ पत्रकार

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