लोकतंत्र के खेल अनोखे

बीते दो-तीन दशकों से हमारे देश के लोकतंत्र के चुने सदस्यों की अलोकतांत्रिक हरकतों का कच्चा-चिट्ठा उजागर हो रहा है. इनमें मुख्य हैं राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और दल-बदल की प्रवृत्ति. हर बार राजनीति को अपराधियों से मुक्त रखने की बातें होती हैं, लेकिन जब सरकार बनती है तो उनमें बाहुबलियों का ही दबदबा होता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2014 4:09 AM

बीते दो-तीन दशकों से हमारे देश के लोकतंत्र के चुने सदस्यों की अलोकतांत्रिक हरकतों का कच्चा-चिट्ठा उजागर हो रहा है. इनमें मुख्य हैं राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और दल-बदल की प्रवृत्ति. हर बार राजनीति को अपराधियों से मुक्त रखने की बातें होती हैं, लेकिन जब सरकार बनती है तो उनमें बाहुबलियों का ही दबदबा होता है.

चाहे वह राज्य सरकार हो या केंद्र की सरकार, हर जगह स्थिति यही है. और जो साफ छवि वाले नेता हैं, उनमें भी कई विभिन्न उद्योग समूहों के पैरोकार बनकर पैसे बनाने में लगे रहते हैं. शायद उन्हें भी यही लगता होगा कि जितना लूट सके लूट लो, क्या पता कल हो न हो! लोकतंत्र में जातिवाद, भाई-भतीजावाद, सांप्रदायिकता, लालफीताशाही, सरकारी सेवा में लापरवाही, निरक्षरता जैसी समस्याएं अब भी मौजूद हैं, फिर भी हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व है!

पायल बजाज, मानगो, जमशेदपुर

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