पुलिस की मनमानी कब तक?

ऑटो या सिटी बस में, कभी-कभार ट्रैफिक पुलिस के जवान भी हमारे साथ सफर करते हैं. सभी यात्री अपने गंतव्य तक पहुंच कर किराया चुकता कर चले जाते हैं, लेकिन ट्रैफिक पुलिस और पुलिस के लोगों को यह बात जमती नहीं है. वह किराया नहीं देते हैं और कुछ बोलने या टोकने पर गाली-गलौज करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2014 6:23 AM
ऑटो या सिटी बस में, कभी-कभार ट्रैफिक पुलिस के जवान भी हमारे साथ सफर करते हैं. सभी यात्री अपने गंतव्य तक पहुंच कर किराया चुकता कर चले जाते हैं, लेकिन ट्रैफिक पुलिस और पुलिस के लोगों को यह बात जमती नहीं है.
वह किराया नहीं देते हैं और कुछ बोलने या टोकने पर गाली-गलौज करने लगते हैं. ऑटो चालक को धमकाते भी हैं कि मुझसे तुम पैसे मांगोगे, तुम्हारी औकात क्या है. समझ में नहीं आता कि पांच-सात रुपये के लिए वे अपनी औकात पर क्यों आ जाते हैं. बेचारे ड्राइवर यह सोच कर चुप हो जाते हैं कि इनसे पंगा लेना महंगा पड़ेगा. क्या ड्यूटी सिर्फ पुलिसवाले ही करते हैं? और सब लोग भी तो ड्यूटी करने जाते हैं, पर बकायदा अपना किराया देकर. स्कूली बच्चे भी अपना किराया दे कर ही सफर करते हैं. पुलिस की यह मनमानी आखिर कब तक चलेगी?
मंजू लता सिंह, कोकर, रांची

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