मुशर्रफ के बेमानी बयान के मायने
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारतीय सेना पर नियंत्रण रेखा पर युद्ध-विराम के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी है कि पाक सेना के धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा न लें. यह बयान ऐसे समय में आया है, जब नियंत्रण रेखा पर पाक सेना द्वारा ही लगातार गोलाबारी की जा रही […]
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारतीय सेना पर नियंत्रण रेखा पर युद्ध-विराम के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी है कि पाक सेना के धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा न लें. यह बयान ऐसे समय में आया है, जब नियंत्रण रेखा पर पाक सेना द्वारा ही लगातार गोलाबारी की जा रही है.
अगर यह बयान पाकिस्तान के किसी सरकारी या सैन्य अधिकारी की ओर से आया होता, तो उसे पाकिस्तान की पुरानी आदत मान कर खारिज किया जा सकता था, लेकिन मुशर्रफ के बयान को दोनों देशों के संबंधों के बीच तनाव के माहौल और पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विरुद्ध कई सप्ताह से चल रहे इमरान खान एवं मौलाना ताहिरुल कादरी के आंदोलन से देश में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण है.
नवाज की राजनीतिक पकड़ कमजोर है और सरकार बचाने के लिए उन्हें विपक्षी दलों का सहयोग लेना पड़ा है. इस बीच सरकार पर सेना का प्रभाव बढ़ा है. इस माहौल में तख्तापलट से लेकर सेना द्वारा कठपुतली सरकार बनाने और चुनाव तक के भी कयास लगाये जा रहे हैं. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने दावं चलने लगे हैं. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बिलावल भुट्टो कश्मीर को लड़ कर लेने का दंभ भर रहे हैं, तो नवाज ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया. इमरान खान तो भारत-विरोधी कट्टरपंथियों के हाथों में खेल ही रहे हैं.
तो फिर मुशर्रफ भी कहां पीछे रहनेवाले थे! राष्ट्रद्रोह का मुकदमा ङोल रहे पूर्व तानाशाह का प्रभाव सेना के एक तबके पर है और वे ऐसे अवसर की फिराक में हैं, जिसमें उन्हें या तो पाकिस्तान से निकल जाने का मौका या फिर चुनाव लड़ने की अनुमति मिल जाये. मुशर्रफ जानते हैं कि पीपुल्स पार्टी या नवाज की मुसलिम लीग की चली तो राष्ट्रद्रोह का मुकदमा जारी रहेगा और उन्हें मौत की सजा भी हो सकती है. ऐसे में अपने अस्तित्व की रक्षा की उम्मीद में वे पाक सेना के पक्ष में बेमानी बयानबाजी कर रहे हैं. नियंत्रण रेखा अ?ौर सीमा-विवाद के मसले सुलझाने का जिम्मा दोनों देशों की सरकारों का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता का इरादा बार-बार व्यक्त किया है. अब गेंद पाक सरकार और सेना के पाले में है.