हांगकांग की पुरदर्द दास्तान
नौजवान आदर्शवादी आंदोलनकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी दोनों ही अपनी सीमाएं जानते हैं. जिनके कंधों पर हांगकांग की खुशहाली का भार है, उन अरबपति उद्यमियों की सोच यथास्थितिवादी ही है, परिवर्तनकामी नहीं. हांगकांग में बड़ी संख्या में युवा आंदोलनकारी बीते पखवाड़े से सड़कों पर उतरे-बिखरे और धरने की मुद्रा में बैठे हैं. इससे चक्का पूरी […]
नौजवान आदर्शवादी आंदोलनकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी दोनों ही अपनी सीमाएं जानते हैं. जिनके कंधों पर हांगकांग की खुशहाली का भार है, उन अरबपति उद्यमियों की सोच यथास्थितिवादी ही है, परिवर्तनकामी नहीं.
हांगकांग में बड़ी संख्या में युवा आंदोलनकारी बीते पखवाड़े से सड़कों पर उतरे-बिखरे और धरने की मुद्रा में बैठे हैं. इससे चक्का पूरी तरह जाम भले ही न हो, लेकिन सरकारी काम-काज ठप है. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठियां और आंसू गैस के गोले बरसाये हैं और आगे भी बर्बर दमन की चेतावनी दी गयी है. हांगकांग के बुजुर्गो का कहना है कि ऐसी सख्ती 1969 के बाद कभी देखने को नहीं मिली थी. अनुमान लगाया जा रहा है कि कारोबार में अब तक करीब 5 खरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि बाकी दुनिया पश्चिम एशिया तथा यूक्रेन या स्कॉटलैंड से नजर हटा कर इधर झांकने को मजबूर हो रही है.
हांगकांग दुनिया की तीसरे नंबर की वित्तीय राजधानी है. यहां की बैंकिंग, बीमा, स्टॉक एक्सचेंज की सेवाएं अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं. चीनी निर्यात का पांचवां हिस्सा यहीं से विदेश भेजा जाता है. पड़ोसी गुआंग दाओ प्रदेश में काम करनेवाली उत्पादन इकाइयां तभी तक लाभप्रद रह सकती हैं, जब तक हांगकांग शांत और स्थिर है.
ऐसा नहीं कि यह संकट अचानक प्रकट हुआ है. मुख्य कार्यकारी अधिकारी के 2017 में होनेवाले चुनाव के लिए उम्मीदवार का चयन नागरिक नहीं वरन् एक प्रतिनिधिमंडल करेगा, यह बात छात्रों को नागवार गुजरी है. वैसे, आबादी के नौजवान तबके को यह पहले से ही महसूस होने लगा था कि बीजिंग की केंद्र सरकार हांगकांग को दिये स्वाधीनता के वचन से मुकर रही है और नागरिकों के बाकी अधिकार भी धीरे-धीरे सिकुड़ते जायेंगे. बहरहाल, हांगकांग की उथल-पुथल को समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना बेहद जरूरी है.
हांगकांग कई मायने में निराला शहर है- एक अनोखी दुनिया. यह द्वीप चीन का हिस्सा है, परंतु इसकी पहचान कुछ-कुछ सिंगापुर सरीखी है. यहां की आबादी का 93 फीसदी भाग चीनी है, परंतु यहां पीढ़ियों से बसे यूरेशियाई या भारतवंशी तथा मलय मूल के लोग अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं. लगभग 15 वर्ष पहले साम्यवादी चीन ने ब्रिटेन से इस उपनिवेश को वापस हासिल कर लिया था और तभी से ‘एक राज्य और दो (राजनीतिक) व्यवस्थाओं’ वाले सिद्धांत के अनुसार इस स्वायत्त शहर-राज्य का राज-काज चलाया जाता रहा है.
सतही नजर डालने पर पता चलता है कि हांगकांग की शिक्षा प्रणाली, न्यायपालिका, नौकरशाही, मीडिया सभी कुछ बर्तानवी नमूने के हैं. यहां दुनिया भर से बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं और उनके लिए हांगकांग साम्यवादी चीन का लगाम कसा प्रांत नहीं, स्वशासित मुक्त प्रदेश ही है. 19वीं सदी में कमजोर चीन ने इसका स्वामित्व ब्रिटेन को सौंप दिया था और तभी से इसका विकास अंगरेजों ने अपनी जरूरत और मिजाज के माफिक एक औपनिवेशिक महानगर के रूप में किया.
इस सबके बावजूद इस भरम से तत्काल छुटकारा पाने की दरकार है कि हांगकांग सिंगापुर की तरह संप्रभु नगर राज्य है. मुख्य कार्यकारी अधिकारी-प्रशासक को चीन ही नियुक्त करता है और भले ही विदेश नीति और सुरक्षा को छोड़ अन्य विषयों में नीति निर्धारण के लिए वह हांगकांग की जनता की इच्छानुसार नीति-निर्धारण करने को स्वाधीन है, वास्तव में इस पद पर आसीन कोई भी व्यक्ति बीजिंग के मार्गदर्शक निर्देशों की अवहेलना नहीं कर सकता. पहले भी हांगकांगवासियों तथा मुख्य कार्यकारी के बीच मुठभेड़ें हो चुकी हैं.
ग्रेट ब्रिटेन के उपनिवेश के रूप में जीनेवाले हांगकांग के चीनी तथा अन्य निवासियों को उस जनतंत्र का चस्का लग चुका है, जिसे पश्चिमी दुनिया के देश मानवाधिकारों तथा उदारवादी सोच के साथ जोड़ते हैं. वर्षो से हांगकांग की खुशहाली की नींव मुक्त-व्यापार पर टिकी रही है. यहां आनेवाले पर्यटकों के लिए ‘ड्यूटी फ्री’ सामान खरीदने का लालच काफी बड़ा आकर्षण रहा है. भोले खरीदारों को जाल में फंसानेवाले नकली माल के विक्रेता और नशीले पदार्थो के तस्कर भी यहां बेफिक्र फलते-फूलते रहे हैं. माओ के जीवनकाल में जब तक चीन में विदेशियों का प्रवेश निषिद्ध था, तब तक इस शहर की एक और उपयोगिता साम्यवादी चीन पर चौकस नजर रखनेवाली चौकी के रूप में भी थी. संक्षेप में, हांगकांग सिर्फ सामरिक महत्व का बंदरगाह और हवाई अड्डा ही नहीं, बल्कि अनेक दुनियाओं का संगमस्थल भी है.
अगर चीन ने लगभग महाशक्ति बन जाने के बाद भी इसे बलपूर्वक हथियाया नहीं, तो उसका सबसे बड़ा कारण यह था कि इसका उपयोग वह भी बाहरी दुनिया से संपर्क बनाये रखने और दक्षिणी चीनी सागर तक निरापद पहुंच के लिए कर सकता था. अमेरिका तथा ब्रिटेन की इस इलाके में गतिविधियों की निगरानी के लिए यह बेहतरीन जगह थी.
पेटन साहब आखिरी अंगरेज लाट थे, लेकिन उनके रुखसत होते ही यह बात साफ हो चुकी थी कि हांगकांग में जनतंत्र को बहाल रखने के चीनी वादे खोखले थे. हांगकांग की जनता का मानना था कि चीन सोने का अंडा देनेवाली अपनी इस पालतू मुर्गी को जिबह नहीं कर सकता. इसकी खुशहाली का चीन के विकास के लिए लाभ उठाने की पहली शर्त, उन्हें लगता था, यही है कि इसे धीरे-धीरे दुहा जाये! जब निकटवर्ती गुआंग दाओ प्रांत में ‘स्पेशल इकोनॉमिक जोन’ स्थापित किये गये, तब यह धारणा और भी पुष्ट हुई कि बीजिंग वास्तव में ‘एक राज्य और दो व्यवस्थाओं’ के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है. उनका मानना था कि चीन हांगकांग से जनतंत्र का संक्रमण अन्यत्र रोकने के लिए अबाध आवागमन पर रोक तो लगा सकता है, पर ‘प्रेशर कुकर में सेफ्टी वाल्व’ जैसी उपयोगिता के कारण हांगकांग के अधिकारों को संकुचित नहीं करेगा. हांगकांग के हस्तांतरण से अब तक पर्ल नदी में बहुत पानी बह चुका है और उस गुजरे जमाने की यादों को ताजा कर आज के घटनाक्रम का विश्लेषण नादानी ही समझा जा सकता है.
नौजवान आदर्शवादी आंदोलनकारी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी दोनों ही अपनी सीमाएं जानते हैं. जिनके कंधों पर हांगकांग की खुशहाली का भार है, उन अरबपति उद्यमियों की सोच यथास्थितिवादी ही है, परिवर्तनकामी नहीं. आंदोलनकारियों के बीच मतभेद झड़पों को जन्म देने लगे हैं. यह सिर्फ बीजिंग की साजिश का नतीजा नहीं. हांगकांग उन संगठित अपराधी गिरोहों के लिए भी कुख्यात रहा है, जिनकी सांठगांठ स्थानीय पूंजीपतियों-बड़े व्यापारियों के साथ रही है. संभावना यही अधिक है कि पतीली का यह उबाल जल्द ही शांत हो जायेगा. लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता कि अगला विस्फोट आत्मघातक नहीं होगा- हांगकांग और चीन दोनों के ही लिए.
पुष्पेश पंत
वरिष्ठ स्तंभकार
pushpeshpant@gmail.com