स्वच्छता अभियान के मायने
इस बार गांधी जयंती पर प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान की घोषणा के साथ ही आजकल अखबारों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया तक में आये दिन स्वच्छता से संबंधित कार्यक्रम सुर्खियों में हैं. बड़े-बड़े मंत्री, नेता, ऑफिसर और साधारण कर्मचारी भी हाथ में झाड़ू लिये फोटो खिंचवा रहे हैं. चमचमाते परिधानों में हाथ में झाड़ू […]
इस बार गांधी जयंती पर प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान की घोषणा के साथ ही आजकल अखबारों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया तक में आये दिन स्वच्छता से संबंधित कार्यक्रम सुर्खियों में हैं. बड़े-बड़े मंत्री, नेता, ऑफिसर और साधारण कर्मचारी भी हाथ में झाड़ू लिये फोटो खिंचवा रहे हैं.
चमचमाते परिधानों में हाथ में झाड़ू लिये झुंड के झुंड के दिखायी पड़ते हैं. यह सब देख कर बड़ा ही अजीब लगता है. हर कार्यालय में झाड़ू की बड़े पैमाने पर खरीद हो रही है. प्रधानमंत्री की इस कवायद से बाजारों में झाड़ू की मांग अचानक बढ़ गयी है. अगले कुछ दिनों में अगर झाड़ू बाजार से गायब हो जाये, या ब्लैक में मिलने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. आखिर झाड़ू का क्रेज इन दिनों लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.
लेकिन इन शालीन लोगों से पूछना चाहता हूं कि जो लोग सफाई कार्य में लगे हैं क्या उनकी स्थिति से वे अवगत हैं? कहीं ऐसा न हो कि सफाई से जुड़े लोगों की रोटी पर आफत आ जाये. जिस स्वच्छता अभियान की बात प्रधानमंत्री जी कर रहे हैं, वह हाथ में झाड़ू लेकर फोटो खिंचवाने वाली बात न होकर व्यवस्था परिवर्तन की बात है. सरकारी दफ्तरों में कार्यप्रणाली में स्वच्छता झलकनी चाहिए. वर्षो पुरानी बेकार फाइलों की गठरी, अप्रासंगिक नियम-कानूनों, कार्यशैली से मुक्ति चाहिए. सैद्धांतिक तौर पर स्वच्छता को जीवन का हिस्सा बनाने की बात की जा रही है. स्वच्छता तन, मन, वचन, विचार, कर्म और वातावरण की है. साफ-सफाई और इससे जुड़े लोगों के प्रति हमारी सार्थक दृष्टिकोण से है. यह हमारे दैनिक जीवन का दर्शन होना चाहिए, न कि कर्यालय के मूल्यवान समय का दुरुपयोग. गांधी जयंती पर बापू को तभी हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
मुकेश कुमार, दुमका