अब पर्व-त्योहार इस आशंका के साथ आते हैं कि कहीं कोई सांप्रदायिक टकराव न हो जाये. पुलिसिया बंदोबस्त के बावजूद कुछ न कुछ अप्रिय जरूर घटित हो जाता है. झारखंड में पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई वाकये सामने आ चुके हैं. अभी ताजा मामला राजधानी रांची के पास स्थित लोधमा इलाके का है. यहां दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के दौरान सांप्रदायिक टकराव हो गया. यह टकराव हुआ बाजा बजाने को लेकर.
छोटी सी बात का बतंगड़ बन गया. मानो कुछ लोग ऐसे फसाद करने के लिए तैयार बैठे हों. रविवार को ही, चाईबासा में भी सांप्रदायिक तनाव की घटना हुई. हिंदुत्ववादी संगठनों और मुसलिम समुदाय के लोग आमने-सामने आ गये. हालात काबू में करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. पुलिस ने बजरंग दल के दो समर्थकों को हिरासत में भी लिया. इसके दो दिन पहले मुफस्सिल थाना क्षेत्र के एक मोहल्ले में गोहत्या की तैयारी का आरोप लगा कर हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया था.
तभी से तनाव बढ़ना शुरू हो गया था. पूरे परिदृश्य पर नजर डालें, तो ऐसा लगता है कि इस राज्य की बहुरंगी संस्कृति और अमन-चैन में योजनाबद्ध ढंग से जहर घोला जा रहा है. इसमें वोट की सियासत की भी बू आ रही है. राज्य में चुनाव नजदीक आ रहे हैं और उससे पहले सांप्रदायिक धु्रवीकरण तेज किया जा रहा है. अभी हरियाणा में भी गाय को मुद्दा बना कर इसी तरह का धु्रवीकरण किया जा रहा है, ताकि वोटों की फसल काटी जा सके. यहां कुछ बातों को गांठ बांध लेना जरूरी है.
अगर विभिन्न संप्रदायों के लोग आपस में मिलजुल कर नहीं रहेंगे, तो कोई भी अमन कायम नहीं रख सकता. आखिर पुलिस कहां-कहां और कितने दिन तैनात रहेगी. जनता को ऐस पाखंडियों से सचेत रहना होगा, जो धर्म का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए करते हैं. जिन्हें साल भर सड़कों पर भूखी-प्यासी भटकती, पॉलीथीन खाती गायें दिखायी नहीं देतीं, लेकिन उनके दिल में चुनाव से पहले गाय के प्रति प्रेम उमड़ आता है. धर्म के ठेकेदारों से भी सावधान रहें. वे लोगों को भड़काते हैं और जब आग लग जाती है, तो कहीं दूर सुरक्षित बैठ कर अपने सियासी आकाओं से अपना पावना वसूल कर रहे होते हैं. बहकावे में न आयें, अपना दिमाग लगायें.