सालों-साल चले स्वच्छता अभियान

।। उषा चौमर ।। (अध्यक्षा, सुलभ इंटरनेशनल) यह सही बात है कि आजादी के इतने बरस बाद किसी सरकार ने साफ-सफाई के बारे में गंभीरता से सोचा है और देश भर में इसे लेकर बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार करना शुरू किया है. वाल्मीकि समाज इस पहल के लिए सरकार को बधाई देता है. आज वाल्मिकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 8, 2014 6:05 AM

।। उषा चौमर ।।

(अध्यक्षा, सुलभ इंटरनेशनल)

यह सही बात है कि आजादी के इतने बरस बाद किसी सरकार ने साफ-सफाई के बारे में गंभीरता से सोचा है और देश भर में इसे लेकर बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार करना शुरू किया है. वाल्मीकि समाज इस पहल के लिए सरकार को बधाई देता है. आज वाल्मिकी जयंती है और हम इस जयंती को पिछले कुछ वर्षों से धूम-धाम से मनाने लगे हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि पहले इस जयंती में हमारे समाज के लोगों के अलावा कोई अन्य समाज शामिल नहीं होता था, लेकिन आज देश के सभी वर्ग-समाज के लोग हमारे साथ शामिल होते हैं, जिससे समाज में बराबरी का संदेश फैल रहा है. अब उम्मीद है कि यदि केंद्र सरकार ने सफाईकर्मियों की सुख-सुविधाओं का ध्यान भी रखा, तो जल्द ही हम भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हो जायेंगे.

यह विडंबना ही है कि अब भी देश में बहुत से लोग ऐसे हैं, जो साफ-सफाई करनेवालों को हेय की नजर से देखते हैं, जबकि हमारे बिना उनका काम नहीं चलनेवाला. कुछ साल पहले तक तो साफ-सफाई करनेवालों की जिंदगी बिल्कुल ही बेकार मानी जाती थी, अब भी देश के कई हिस्सों में ऐसा माना जाता है. यहां तक कि हमारी अगली पीढ़ी को भी शिद्दत से यही एहसास होता था कि हमें कोई और काम मिल ही नहीं सकता या हमें कोई और काम करने की इजाजत ही नहीं मिल सकती. लेकिन, अब ऐसा नहीं है.

सरकार की कुछ योजनाओं और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन ने हमारे समाज को ऐसे कामों से मुक्त करने का काम किया है. हमारे बच्चे भी अब पढ़-लिख कर कोई अन्य काम करने के बारे में सोचने लगे हैं. सुलभ ने कई ऐसे ट्रेनिंग कार्यक्रमों का आयोजन किया है, जिससे कि स्वच्छता को लेकर समाज में एक नये तरह का बदलाव आया है. हमारी कोशिश भी यही है कि हमें किसी भी तरह से हेय की दृष्टि से न देखा जाये और हमें भी हर वह काम करने की आजादी मिले, जो सभी वर्ग-समाज के लोग करते हैं.

शहरी स्तर पर स्वच्छता को लेकर चलाये जा रहे सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से तो जागरूकता आयी है, लेकिन अब भी गांवों में ऐसी जागरूकता नहीं आ पायी है. इसका कारण है देश के ज्यादातर गांवों में शौचालयों का न होना. साफ-सफाई को लेकर शौचालय का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता. इसलिए सबसे पहले यह जरूरी है कि देश के संपूर्ण गांवों में शौचालयों की व्यवस्था की जाये.

हालांकि यह काम इतना जल्दी संभव तो नहीं है, लेकिन अगर इसे सरकार एक मुहिम की तरह ले, तो मैं समझती हूं कि हम अपने लक्ष्य तक जल्दी ही पहुंच जायेंगे. घर में एक शौचालय का न होना कई तरह की विद्रूपताओं को भी जन्म देता है. जाहिर है उन विद्रूपताओं को हमारे समाज से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है. अगर पूरे देश में शौचालयों की मुकम्मल व्यवस्था हो जाये और सीवरों की कारगर योजना बन जाये, तो मैं समझती हूं कि हर वह व्यक्ति जो अपने सिर पर मैला ढोता है, उसे सच्ची आजादी मिल जायेगी और वह समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर अच्छे से अच्छा काम कर सकता है, देश की तसवीर बदलने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. हालांकि हमारा काम भी एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में है, लेकिन हमारे काम को लेकर समाज में छुआ-छूत और गैर-बराबरी के कारण हमारा मनोबल गिर जाता है.

समाज में अगर कोई अघोषित रूप से बहिष्कृत है, तो वह हमारा समाज ही है. देश के सुदूर इलाकों में गांव के गांव हैं, जो इस अभिशाप को झेल रहे हैं. जिन जगहों का हमें पता होता है, वहां जाकर हम उन्हें जागरूक करने की कोशिश करते हैं. और जिन जगहों का पता नहीं होता, वहां बदस्तूर सर पर मैला ढोने का काम चल रहा है. दरअसल, सबसे बड़ी समस्या यह है कि जागरूकता के अभाव में वे लोग इस काम को अपनी नीयती मान बैठे हैं. इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार की ओर से कोई ऐसी व्यवस्था बनायी जाये, ताकि उन्हें जागरूक बनाया जा सके. मेरे ख्याल में सरकार को सुलभ की तर्ज पर ही कोई जनयोजना चलाने की पहल करनी चाहिए, जिसके तहत हमारे समाज को इस अघोषित बहिष्कार से मुक्ति मिल सके और समाज का बेहतर तरीके से लोकतांत्रिक स्वरूप मजबूत हो सके.

गांधी जयंती के दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो मुहिम छेड़ी थी, उसकी सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब यह नेतागणों का दिखावा मात्र न रहे, बल्कि सालों-साल स्वच्छता अभियान के तहत देश की गंदगी साफ होती रहे. सफाई एक ऐसा काम है, जिसे साल में एक दिन नहीं किया जाता, बल्कि यह रोज का काम है. इसके साथ ही सरकार को एक और पहल करने की जरूरत है, वह है सफाईकर्मियों के प्रति लोगों के नजरिये में बदलाव लाने के लिए प्रचार-प्रसार की. तभी हमारा मनोबल बढ़ेगा और देश में बराबरी का एक सार्थक माहौल तैयार होगा.

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