ऑनलाइन कारोबार पर निगरानी जरूरी

भारत में ऑनलाइन खरीद-बिक्री का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, परंतु इस पर निगरानी के लिए विशेष नीतिगत प्रावधान नहीं हैं. उद्योग जगत की प्रतिनिधि संस्था ‘एसोचैम’ के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक केवल त्योहारों के मौजूदा मौसम में ही 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की ऑनलाइन खरीददारी संभावित है. वर्तमान में इस क्षेत्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2014 12:54 AM

भारत में ऑनलाइन खरीद-बिक्री का दायरा तेजी से बढ़ रहा है, परंतु इस पर निगरानी के लिए विशेष नीतिगत प्रावधान नहीं हैं. उद्योग जगत की प्रतिनिधि संस्था ‘एसोचैम’ के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक केवल त्योहारों के मौजूदा मौसम में ही 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की ऑनलाइन खरीददारी संभावित है.

वर्तमान में इस क्षेत्र का सालाना औसत कारोबार 12 हजार करोड़ रुपये का है, जो अगले तीन-चार वर्षो में एक लाख करोड़ तक का हो सकता है. लेकिन, ऑनलाइन रिटेलर ‘फ्लिपकार्ट’ द्वारा पिछले दिन अपने ग्राहकों को कुछ घंटों के लिए दी गयी विशेष छूट के दौरान हुई रिकार्ड खरीददारी के बाद यह मांग की जा रही है कि सरकार परंपरागत खुदरा बाजार के हितों की सुरक्षा के लिए सामानों की ऑनलाइन खरीद-बिक्री पर नजर रखे.

बड़ी संख्या में ग्राहकों ने भी इस विशेष छूट के दौरान कई तरह की शिकायतें की हैं. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने पूरे प्रकरण पर विचार करने का भरोसा देते हुए कहा है कि अगर विशेष नियमों की जरूरत हुई तो सरकार पहलकदमी करेगी. दरअसल, ऑनलाइन शॉपिंग ने ग्राहकों को कई तरह की सहूलियतें उपलब्ध करायी है. इसके जरिये लोग अपने पसंद के सामान उचित कीमत पर घर बैठे मंगा रहे हैं. यहां चयन के लिए परंपरागत बाजार से अधिक विकल्प भी हैं.

ऑनलाइन और टेली शॉपिंग के जरिये आज देश के सुदूर इलाकों, गावों-कस्बों और शहरों में वे चीजें भी मंगायी जा सकती हैं, जो स्थानीय बाजार में उपलब्ध नहीं है. लेकिन, आशंका यह जतायी जा रही है कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा से निपटने के लिए बड़े ऑनलाइन विक्रेता सामानों की थोक खरीददारी कर उन्हें न्यूनतम मुनाफे पर बेच सकते हैं, जिससे छोटे ऑनलाइन रिटेलरों के अलावा परंपरागत खुदरा विक्रेता भी नुकसान में आ जायेंगे. परंपरागत खुदरा व्यापार देश की व्यापारिक गतिविधियों का आधार होने के साथ-साथ रोजगार का भी बड़ा जरिया है. इसलिए इन दोनों क्षेत्रों के हितों का ध्यान रखते हुए सरकार और वाणिज्य जगत से संतुलित एवं ठोस पहल की दरकार है. इस प्रक्रिया में ग्राहकों के हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. हालांकि, अहम सवाल यह है कि मुक्त बाजार के दर्शन पर टिकी आर्थिक उदारवादी राजनीति क्या ऐसा करेगी?

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