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यह देश का मन बदलने का युद्ध है

नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता का आह्वान कर देश का मन बदलने का जो युद्ध छेड़ा है, यह साधारण काम नहीं है. अपने अहंकार और पद के घमंड को थोड़ा दरकिनार करते हुए अपने आसपास की गंदगी साफ करने का बड़प्पन दिखाना देश को नये आत्मविश्वास से भरने का काम है. काशी की महिमा अनंत है. […]

नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता का आह्वान कर देश का मन बदलने का जो युद्ध छेड़ा है, यह साधारण काम नहीं है. अपने अहंकार और पद के घमंड को थोड़ा दरकिनार करते हुए अपने आसपास की गंदगी साफ करने का बड़प्पन दिखाना देश को नये आत्मविश्वास से भरने का काम है.

काशी की महिमा अनंत है. शुद्ध, बुद्ध, चैतन्य भारत की शिव शक्ति का वहां से प्रादुर्भाव हुआ. एक ओर वहां शिव का साक्षात्कार होता है, तो दूसरी ओर दशाश्वमेध घाट पर 24 घंटे शव अंत्येष्टि हेतु आते हैं. संभवत: यही भारत का ऐसा गंगा तट स्थित शमशान घाट है, जहां चितादहन का क्रम कभी रुकता नहीं है. दुनिया भर के हिंदू यह आकांक्षा रखते हैं कि वे या तो अंतिम श्वास काशी में लें या फिर उनका अंतिम संस्कार काशी में हो. लेकिन, जो काशी मोक्ष का द्वार मानी जाती है, उसे हमने बड़े इत्मीनान और सहजता से गंदगी और कूड़े के ढेरों से भरा शहर बना कर रख दिया है. मंदिरों में गंदगी, घाटों पर कचरा, गलियों में फैली बदबू, सड़कों पर जहां-तहां कूड़ा, गोबर और कीचड़. क्या यह वह काशी मानी जायेगी, जहां काशी विश्वनाथ महादेव हैं, जहां महामना मदनमोहन मालवीय ने अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की है और जहां से भारत के वर्तमान यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुने गये हैं?

यह बात चुभनेवाली है और चुभी भी, कि हम जिन देवताओं को अपने घर का पूजनीय आधार मानते हैं, उनके आस-पास सफाई के प्रति हमें ध्यान नहीं होता. अगर हम गौर करें तो भारत में पहले ऐसा नहीं होता था. भारत कभी समृद्धि, स्वच्छता, शालीनता और सभ्यता का विश्व में उच्चतम स्तर निर्धारित करनेवाला राष्ट्र माना जाता रहा है. गंदगी और सड़न हमारी मानसिक और सामाजिक दरिद्रता एवं लंबे काल तक गुलामी का प्रतिरोध करते रहने के फलस्वरूप आयी सिकुड़न का प्रतीक है. जैसा है उसी में गुजारा कर लेना, जो भी है उसी को ‘चलता है’ कह कर स्वीकार कर लेना, किसी गलत काम या गंदगी के खिलाफ विद्रोह और गुस्सा पैदा न होने देना इसी मानसिकता का द्योतक है. लेकिन, मूल सनातन धर्मी स्वरूप से इतर जो भी पंथ और संप्रदाय भारत में बने, उनमें स्वच्छता के प्रति आग्रह बहुत ही प्रेरक तथा प्रशंसनीय देखा गया है. गुजरात में जन्मे स्वामी नारायण संप्रदाय के आश्रम तथा मंदिर विश्व भर में हिंदू धर्म की यशस्वीता और कीर्ति बढ़ानेवाले हैं. दिल्ली में उनके द्वारा स्थापित अक्षरधाम मंदिर स्वच्छता और सभ्यता का आदर्श माना जाता है. इसी प्रकार गायत्री परिवार, निरंकारी, राधास्वामी, बाबा रामदेव, माता अमृतानंदमयी आदि के द्वारा स्थापित मठ और आश्रम भी स्वच्छता के प्रतीक हैं. गायत्री परिवार ने तो राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता के क्षेत्र में हिंदुओं के तीर्थ तथा अन्य स्थान साफ-सुथरे रखने के लिए आध्यात्मिक युवा अभियान प्रारंभ किया है, जिसकी प्रेरणा इनके प्रमुख डॉ प्रणय पंड्या जी हैं. इसी प्रकार रामकृष्ण मठ तथा आश्रम स्वामी विवेकानंद की परंपरा को मानते हुए स्वच्छता और श्रेष्ठता की मिसाल बने हुए हैं.

वास्तव में जहां-जहां आर्थिक संघर्ष और बदहाली है, वहां-वहां मनुष्य को मनुष्य के स्तर से नीचे गिराते हुए बेचारगी और बेबसी का ऐसा विस्तार है, जो भारत की तमाम श्रेष्ठताओं और ऊंचाइयों को बौना बना देता है. मुंबई, चेन्नई, लखनऊ, दिल्ली और कोलकाता जैसे अनेक बड़े नगरों में बड़ी संख्या में बच्चे फुटपाथ पर पैदा होते हैं और वहीं सिमट कर, सिसक कर उनकी जिंदगी बीतती है.

रेलगाड़ी में सफर करते हुए हम पटरियों के दोनों ओर प्लास्टिक की चादरों अथवा मिट्टी और सीमेंट की बोरियों को सी कर बने घरों में लाखों लोगों को रहते हुए देखते हैं. उनका रहना, खाना, सोना और शौच जाना, सब एक ही परिसर में और खुले में होता है. ज्यादातर रेलगाड़ियां अस्वच्छ शौचालय तथा गंदी खिड़कियों और डब्बों वाली होती हैं, जिनमें लाखों लोग रोज सफर करते हैं. गंदगी में रहने से संकोच भी नहीं होता. यहां तक कि देश के केंद्रीय मंत्रलय, प्रादेशिक विधानसभाएं, प्रतिष्ठित कॉलेज और विश्वविद्यालय भी गंदे रहते हैं. माननीय सांसद और विधायक भी पान खाकर दीवारों पर थूकते हैं. सीढ़ियों के कोने पान की पीक से लाल रहते हैं. अच्छे-खासे सफेद कॉलर के अफसरों और माननीयों को दीवार पर थूकने, शंका से निवृत्त होने और कूड़ा फेंकने से रोकने के लिए लोगों को देवी-देवताओं और विभिन्न मजहबों के पवित्र चिह्नें जैसे 786 या काबा शरीफ या जीसस और साईं बाबा के चित्र लगाने पड़ते हैं. तब भी कुछ लोगों को शर्म नहीं आती.

दरअसल, यह कानून या नियम की बात नहीं है. विकृत मानसिकता को रोजमर्रा की जिंदगी का स्वाभाविक हिस्सा मान लेने का नतीजा है. गंदगी हम करते हैं और यह मान कर चलते हैं कि हमारी गंदगी कोई दूसरा साफ करे. देवताओं से मनौतियां हम मांगते हैं और यह मान कर चलते हैं कि भगवान हमारे कचरे को भी साफ कर देंगे. संसद और विधानसभाओं में हम देश के लिए कानून बनाते हैं, लेकिन क्या वहां की सफाई के स्तर के प्रति दिलचस्पी लेते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता का आह्वान कर देश का मन बदलने का जो युद्ध छेड़ा है, यह साधारण काम नहीं है. मन बदलना, स्वभाव को नये सांचे में ढालना, अपने अहंकार और पद के घमंड को थोड़ा दरकिनार करते हुए अपने आसपास की गंदगी साफ करने का बड़प्पन दिखाना देश को नये आत्मविश्वास से भरने का काम है. जहां सफाई होगी, वहां अपने आप आत्मविश्वास बढ़ेगा, मन को अच्छा लगेगा और शरीर भी स्वस्थ रहेगा.

मैंने बरसों पहले ‘पांचजन्य’ में लिखा था कि गंगा और यमुना गंदी करने के लिए अरब और तुर्किस्तान से विदेशी विधर्मी हमलावर नहीं आये, हिंदुओं ने अपने धार्मिक आस्था स्थल स्वयं गंदे किये हैं. अन्य मजहबों और संप्रदायों को माननेवालों के आस्था स्थल भी कम गंदे नहीं हैं. जो लोग अपना मजहब खतरे में मान कर मरने-मारने पर उतर आते हैं, वे उन जगहों को साफ नहीं रखते, जिसे वे अपनी जिंदगी से भी ज्यादा कीमती मानते हैं. इससे बढ़ कर विडंबना और क्या होगी?

वास्तव में, हम अपने निजी स्वार्थो के सामने अपनी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेवारियां कूड़े के साथ ही फेंकने में सिद्धहस्त हो गये हैं. फोटो छपेगी तो सफाई अभियान में दिलचस्पी लेंगे और नहीं छपेगी तो पान, तंबाकू और गुटखे का पैकेट सब के सामने सड़क के बीचोंबीच फेंकेंगे. जिसके पास जितना ज्यादा पैसा और जितना बड़ा पद है, वह उतने ही बड़े अहंकार के साथ लापरवाही से सड़क गंदा करते हुए चलता है. उसे सजा का डर ही नहीं. लेकिन, बदनामी का डर जरूर होता है. अब ऐसे लोगों को सामाजिक तिरस्कार का निशाना बनना पड़े, तो हालात सुधरने लगेंगे. बड़े से बड़ा युद्ध जीतने और पूंजी इकट्ठा करने से बड़ा राष्ट्रीय गौरव एक साफ-सुथरे देश का निर्माण करने से प्राप्त होता है. यह समझ लेंगे तो भारत का डंका दुनिया में बजेगा ही.

तरुण विजय

राज्यसभा सांसद, भाजपा

tarunvijay2@yahoo.com

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