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कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई

कैलाश सत्यार्थी का संघर्ष-अभियान लगभग 35 वर्ष का है. हिलेरी क्लिंटन ने भी नोबेल के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था. बंधुआ और बाल मजदूरी की प्रथा अपने देश में शताब्दियों से रही है. स्वच्छ भारत के अभियान से कहीं बड़ा है बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान. नोबेल पुरस्कार की राजनीति और उसके तंत्र पर […]

कैलाश सत्यार्थी का संघर्ष-अभियान लगभग 35 वर्ष का है. हिलेरी क्लिंटन ने भी नोबेल के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था. बंधुआ और बाल मजदूरी की प्रथा अपने देश में शताब्दियों से रही है. स्वच्छ भारत के अभियान से कहीं बड़ा है बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान.
नोबेल पुरस्कार की राजनीति और उसके तंत्र पर यह सवाल किया जाता रहा है कि उस पर अमेरिका, यूरोप, संयुक्त राष्ट्र और ईसाइयत का दबदबा है, पर 2014 का शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को देने की घोषणा का पूरे विश्व के लिए, विशेषत: भारतीय उपमहाद्वीप के लिए विशेष अर्थ है. 1979 में मदर टेरेसा (भारत) को शांति का पहला नोबेल पुरस्कार मिला था. 2007 में पर्यावरण के लिए काम करनेवाले राजेंद्र पचौरी को भी संयुक्त राष्ट्र की एक समिति के साथ संयुक्त रूप से शांति का नोबेल मिला था. कैलाश सत्यार्थी यह सम्मान पानेवाले तीसरे भारतीय हैं. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया था. अब तक 95 शांति नोबेल पुरस्कार दिये गये हैं, जिनमें मलाला यूसुफजई 16वीं महिला हैं. शांति का नोबेल पानेवालों की औसत आयु 62 वर्ष है. मलाला सबसे कम उम्र की हैं.

लिंग-भेद, वय-भेद, राष्ट्र-भेद, धर्म-भेद से परे इस वर्ष का यह नोबेल पुरस्कार बच्चों के भविष्य व उनके अधिकारों के लिए है. एक हिंदू और एक मुसलिम को संयुक्त रूप से दिये गये इस पुरस्कार का विशेष महत्व इसलिए है कि भारत-पाक के बीच वैमनस्य घटे. 10 अक्तूबर को जब इस पुरस्कार की घोषणा हुई, भारत-पाक सीमा पर कई दिनों से गोलाबारी हो रही थी. इस घोषणा से भारत-पाक पर शांति स्थापित करने का नैतिक दबाव बढ़ेगा. कट्टरवाद से कहीं भी शांति स्थापित नहीं हो सकती. 17 वर्षीय मलाला यूसुफजई ने भारत-पाक शांति के लिए काम करने की सलाह दी है, यह इच्छा भी प्रकट की है कि दिसंबर में नार्वे के ओस्लो में जब उन्हें और कैलाश सत्यार्थी को यह पुरस्कार दिया जाये, उस समारोह में नवाज शरीफ और नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहें. नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ ने कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को अपने-अपने देश का गौरव कहा है. नरेंद्र मोदी ने मलाला के जीवन को ‘संघर्ष और साहस की दास्तां’ कहा है. नवाज शरीफ मलाला के संघर्ष और प्रतिबद्धता से युवाओं को प्रेरणा लेने की सलाह दे रहे हैं.
मलाला अपने नाम के विपरीत है. पश्तों भाषा में ‘मलाला’ का अर्थ है ‘शोक में डूबा हुआ इनसान.’ उसने अपने नाम के विपरीत शोकाकुल लोगों में साहस, हौसले और उम्मीद बढ़ायी. पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र में उसने यह कहा कि उसमें पहले जो भय, कमजोरी और असहायता थी, वह समाप्त हुई और उसमें शक्ति और साहस का जन्म हुआ. आठवीं कक्षा में पढ़ते समय मलाला यूसुफजई (जन्म 12 जुलाई, 1997) की संघर्ष-कथा आरंभ हुई. ग्यारह वर्ष की उम्र में पेशावर में नेशनल प्रेस के सामने दिये गये उसके मशहूर भाषण का शीर्षक था-‘हाऊ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन?’ 2007 में, जब मलाला की उम्र मात्र 10 वर्ष थी, तालिबान ने उत्तर स्वात घाटी पर कब्जा कर पूरे इलाके में लड़कियों की पढ़ाई पर रोक लगा दी. मलाला छुप कर स्कूल जाती रही. अन्य लड़कियों को पढ़ने के लिए कहती रही. तालिबान ने 9 अक्तूबर, 2012 को स्कूल से लौटते समय मलाला के सिर में गोली मारी. इलाज लंदन में हुआ. अब वह बर्मिघम के एक स्कूल में पढ़ रही है.

नोबेल के लिए पिछले वर्ष भी उसका नाम था. मलाला दुनिया की कुरीतियों से लड़ने की कोई उम्र नहीं मानती. वह, गोली मारनेवाले तालिबानों से भी नफरत नहीं करती हैं. शिक्षा को जन्मसिद्ध अधिकार माननेवाली मलाला को 2011 में पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार और 2013 के अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार सहित अन्य कई पुरस्कार मिले हैं. उसने भारत-पाक को शांति, विकास, शिक्षा और प्रगति के संबंध में एक-दूसरे से संवाद करने को कहा है.

भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या 39 प्रतिशत है, जिनकी कुल आबादी 45 करोड़ है. इनमें से 20 करोड़ बच्चे अभावग्रस्त हैं, शोषित हैं और मजदूरी करते हैं. 1992 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में बाल अधिकारों के आदेश पर हस्ताक्षर किये थे. भारतीय मजदूरों में 11 प्रतिशत बच्चे हैं. प्रधानमंत्री जिस युवा भारत की बातें करते हैं, उनमें ये बच्चे नहीं आते. ये मतदाता नहीं हैं. वयस्क कहलाने की आयु 18 वर्ष है, पर बाल श्रम कानून के अंतर्गत यह उम्र 14 वर्ष है. देश में हर घंटे 10 बच्चे गायब हो रहे हैं. बाल र्दुव्‍यापार (ट्रैफिकिंग) बढ़ रहा है. बाल वेश्यावृत्ति से भारत में 21 लाख करोड़ की वार्षिक कमाई होती है. सरकार ने बाल मजदूरी पर कभी ध्यान नहीं दिया.
कैलाश सत्यार्थी (जन्म 11 जनवरी, 1954) का काम सरकार से बड़ा है. नरेंद्र मोदी ने कैलाश सत्यार्थी के ‘प्रयासों’ को सलाम किया है, जिन्होंने ‘मानव कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया.’ कैलाश सत्यार्थी बच्चों को ‘देश की असली ताकत’ कहते हैं. उनके अनुसार, बच्चों की अस्मिता की रक्षा न करनेवाला देश कभी तरक्की नहीं कर सकता, इंडस्ट्रीज को अपनी ताकत माननेवाला देश कभी विकास नहीं कर सकता. भारत से अब तक किसी प्रकार का सम्मान न पानेवाले कैलाश विदेश से अब तक नौ पुरस्कार-सम्मान प्राप्त कर चुके थे. शांति के नोबेल के लिए वे कई बार नामित हुए थे. हिलेरी क्लिंटन ने भी नोबेल के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था. कैलाश सत्यार्थी का संघर्ष-अभियान लगभग 35 वर्ष का है. बंधुआ और बाल मजदूरी की प्रथा अपने देश में शताब्दियों से रही है. स्वच्छ भारत के अभियान से कहीं बड़ा है बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान. स्वामी अग्निवेश और कैलाश सत्यार्थी ने अस्सी के दशक के आरंभ से यह अभियान शुरू किया था. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ आज बड़ा आंदोलन बन चुका है. 90 हजार बच्चों की जिंदगी कैलाश सत्यार्थी ने संवार दी. अब यह संस्था 15 राज्यों के 200 से अधिक जिलों में कार्यरत है, जिसके स्वयंसेवकों की संख्या 70 हजार है. बाल मजदूरी के खिलाफ लोक-जागरण और जनांदोलन करनेवाले कैलाश सत्यार्थी 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को संबोधित करनेवाले पहले गैरसरकारी व्यक्ति थे. उन्होंने 1993 से 2001 तक देश भर में कई यात्रएं कीं, जिनमें कन्याकुमारी से दिल्ली तक की 15 हजार किलोमीटर की यात्र भी है. अपने एनजीओ के जरिये उन्होंने बालश्रम के खिलाफ लगातार अभियान चलाया. भारत में बाल मजदूरों की संख्या छह करोड़ से अधिक है. बालश्रम के अंतर्गत वे उन सभी कार्यो को रखते हैं, जो बच्चों के मानसिक, शैक्षिक, नैतिक और बौद्धिक विकास में बाधक है.
क्या सचमुच कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई से भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को कुछ सीखने की भी जरूरत है?
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
delhi@prabhatkhabar.in

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