सेल्फी ने झाड़ू को पॉपुलर बना दिया

पहले लोग एक अच्छी तसवीर के लिए दूसरों पर निर्भर रहा करते थे. लेकिन अब वक्त बदल गया है. अब लोग खुद ही अपनी फोटो खींचने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. खुद अपनी तसवीरें खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड और साझा करने का चलन ‘सेल्फी’ नाम से जाना जाने लगा है. आज सेल्फी ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2014 6:35 AM

पहले लोग एक अच्छी तसवीर के लिए दूसरों पर निर्भर रहा करते थे. लेकिन अब वक्त बदल गया है. अब लोग खुद ही अपनी फोटो खींचने में ज्यादा विश्वास रखते हैं.

खुद अपनी तसवीरें खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड और साझा करने का चलन ‘सेल्फी’ नाम से जाना जाने लगा है. आज सेल्फी ने सारे जमाने को क्रेजी बना दिया है. सेल्फी से लोगों को इस कदर प्यार हो गया है कि वो हर समय इसी के दायरे में रहना पसंद करते हैं. सेल्फी की दीवानगी ने इसे ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द इयर’ भी बना दिया है.

फोटोग्राफिक ट्रेंड में अभी सबसे आगे है सेल्फी. बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक, अभिनेता से लेकर नेता तक हर जगह सेल्फी है. और तो और, झाड़ू और सेल्फी आजकल एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं. फेसबुक और ट्विटर पर झाड़ू के साथ सेल्फियों की बाढ़-सी आ गयी है. कल तलक जिस झाड़ू को हेय दृष्टि से देखा जाता था, आज मंत्री से लेकर आम आदमी तक उसे पकड़ कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है. स्वच्छता अभियान का हिस्सा बनने से ज्यादा कोशिश हो रही है, झाड़ू के साथ सेल्फी खींच कर सोशल नेटवर्किग साइटों पर डालने की. झाड़ू लगाते हुए टीवी पर दिख जायें और अखबार में छप जायें तो और भी अच्छा. भाई लोग झाड़ू के साथ सेल्फी लगा कर यह भी पूछ रहे हैं कि कैसा लग रहा हूं?

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि साफ-सफाई में जितना झाड़ू का महत्व है उतना ही पोंछा का भी है. पर इन दिनों हर कोई झाड़ू देता दिख रहा है या दिखना चाहता है. हालांकि खुद इसमें झाड़ू का कोई दोष नहीं है. इसका दोष या क्रेडिट जाता है सेल्फी को. पर इस बात से अनभिज्ञ पोंछा दिनोंदिन झाड़ू की बढ़ती लोकप्रियता से चिढ़ कर एक दिन झल्ला गया और उसने झाड़ू से अपना हिसाब बराबर करने की ठान ली. पोंछा 56 इंच का सीना तान कर झाड़ू से बोला-‘‘मेरे बगैर कोई घर नहीं चमकता, लेकिन तू खुद को सफाई का ब्रैंड अंबेसडर बना फिर रहा है. यह तो मेरे साथ सरासर नाइंसाफी है.’’
झाड़ू को भी गुस्सा आ गया. बोला- ‘‘अबे पोंछे. घर के ओने-कोनों की सारी गंदगी, सारा कूड़ा-करकट तो मैं साफ करता हूं. तू आखिर में पानी के साथ गंठबंधन करके फर्श पर लोटपोट होकर सफाई की महफिल लूटना चाहता है. तेरे इस ‘इंडिया शाइनिंग’ की अब पोल खुल चुकी है. इसलिए अपनी औकात में रह. तू लाख कोशिश कर ले, लेकिन झाड़ू नहीं बन सकता. झाड़ू होने के लिए ‘आम आदमी’ होना पड़ता है जो तेरे वश की बात नहीं. अब तो मैंने राजनीति में भी दखल दे डाली है. मेरे नाम पर वोट मांगे गये हैं और कई लोग जीत भी गये हैं. इसलिए तू खुद पर तरस खा.’’ यह बात पोंछे के दिल को लग गयी. तब से पोंछा आत्ममंथन की मुद्रा में है और ‘अज्ञातवाश’ की तैयारी कर रहा है.
अखिलेश्वर पांडेय
प्रभात खबर, जमशेदपुर
apandey833@gmail.com

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