बचपन से ही देखती आ रही हूं कि रेलवे ने भारत में हर जगह कचरा फैलाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ रखा है. ट्रेन की पटरियों पर हर जगह मानव मल-मूत्र से लेकर हर तरह का कचरा बिखरा रहता है. कई बार ट्रेन के कर्मचारी डस्टबिन का कचरा भी दरवाजे से ही बाहर फेंक देते हैं.
क्या हमारे समूचे भारतवर्ष को गंदा करने का हक सिर्फ रेलवे को है? अगर उसने गंदा करने पर सजा की व्यवस्था की है तो क्या यह व्यवस्था सबके लिए है या सिर्फ मुसाफिरों के लिए! हमें इसकी सही और पूरी जानकारी चाहिए. यह निश्चित तौर पर एक अच्छा कदम है लेकिन दूसरों को रास्ता बताने से ज्यादा जरूरी है कि पहले आप उस रास्ते पर चलें. आप चलना शुरू तो करें, लोग खुद ही पीछे आयेंगे. वैसे पिछले दिनों बायो-टॉयलेट की सुविधा वाले ट्रेन के डब्बे में सफर किया, बहुत अच्छा महसूस हुआ.