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रेलवे का दोहरा मानदंड

पिछले दिनों अखबार में एक हैरान करने वाली खबर दिखी. इसका लब्बोलुआब यह था कि ट्रेन या स्टेशन को गंदा करने पर जुर्माना भरना पड़ सकता है. मुङो तो यह बहुत अजीब लगा. बचपन से ही देखती आ रही हूं कि रेलवे ने भारत में हर जगह कचरा फैलाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ रखा […]

पिछले दिनों अखबार में एक हैरान करने वाली खबर दिखी. इसका लब्बोलुआब यह था कि ट्रेन या स्टेशन को गंदा करने पर जुर्माना भरना पड़ सकता है. मुङो तो यह बहुत अजीब लगा.

बचपन से ही देखती आ रही हूं कि रेलवे ने भारत में हर जगह कचरा फैलाना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझ रखा है. ट्रेन की पटरियों पर हर जगह मानव मल-मूत्र से लेकर हर तरह का कचरा बिखरा रहता है. कई बार ट्रेन के कर्मचारी डस्टबिन का कचरा भी दरवाजे से ही बाहर फेंक देते हैं.

उन्हें बार-बार मना करने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका जवाब होता है कि उन्होंने दूर फेंका है, ऐसे में कोई गंदगी नहीं की. उन्हें यह समझाना बहुत मुश्किल है कि सिर्फ ट्रेन में होने वाली गंदगी ही गंदगी नहीं है. कहीं दूर खेतों मे या रास्तों पर बिखरती हुई गंदगी भी गंदगी ही कहलाती है. ‘राजधानी एक्सप्रेस’ का अटेंडेंट भी जूठी थालियों को ट्रेन का दरवाजा खोल कर शान से बाहर फेंक देता है. मना करने पर वे पूछ देते हैं कि कहीं दूर कचरा गिरने पर आपको क्यों दिक्कत हो रही है. जहां का सिस्टम ही यही है कि कचरा दरवाजे से बाहर फेंकना है, जिसने सारे भारतवर्ष को विशाल कूड़ेदान समझ और बना रखा है.

क्या हमारे समूचे भारतवर्ष को गंदा करने का हक सिर्फ रेलवे को है? अगर उसने गंदा करने पर सजा की व्यवस्था की है तो क्या यह व्यवस्था सबके लिए है या सिर्फ मुसाफिरों के लिए! हमें इसकी सही और पूरी जानकारी चाहिए. यह निश्चित तौर पर एक अच्छा कदम है लेकिन दूसरों को रास्ता बताने से ज्यादा जरूरी है कि पहले आप उस रास्ते पर चलें. आप चलना शुरू तो करें, लोग खुद ही पीछे आयेंगे. वैसे पिछले दिनों बायो-टॉयलेट की सुविधा वाले ट्रेन के डब्बे में सफर किया, बहुत अच्छा महसूस हुआ.

भारती रोहरा, कोलकाता

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