हुदहुद और भविष्य के लिए कुछ सबक
प्राकृतिक आपदाएं जीवन-जगत का निष्ठुर सत्य हैं. हमारे देश की भौगोलिक विविधता के कारण हमें कई प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ता है. इस समय आंध्र प्रदेश के तटीय जिले-विशाखापट्टनम, श्रीकाकुलम और विजयनगरम-तथा उड़ीसा के कुछ इलाके हुदहुद चक्रवात की विभीषिका झेल रहे हैं. प्रारंभिक आकलनों के मुताबिक, चक्रवात से हुई बरबादी खरबों में […]
प्राकृतिक आपदाएं जीवन-जगत का निष्ठुर सत्य हैं. हमारे देश की भौगोलिक विविधता के कारण हमें कई प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ता है. इस समय आंध्र प्रदेश के तटीय जिले-विशाखापट्टनम, श्रीकाकुलम और विजयनगरम-तथा उड़ीसा के कुछ इलाके हुदहुद चक्रवात की विभीषिका झेल रहे हैं.
प्रारंभिक आकलनों के मुताबिक, चक्रवात से हुई बरबादी खरबों में है. विशाखापट्टनम बुरी तरह तबाह हो चुका है. अब तक 17 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. हालांकि इस भीषण तूफान से हजारों लोग काल-कवलित हो सकते थे, लेकिन सेटेलाइट तकनीकों और कंप्यूटरीकृत विश्लेषण पर आधारित ठोस पूर्वानुमानों के कारण चक्रवात के स्तर और समय का पता लगा लिया गया था.
इन जानकारियों के आधार पर केंद्रीय एवं राज्य-स्तरीय आपदा प्रबंधन एजेंसियां और स्थानीय प्रशासन ने समय रहते चार लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था. ऐसी ही त्वरित कारवाई पिछले वर्ष फैलिन चक्रवात के दौरान भी देखने को मिली थी. वह चक्रवात हुदहुद से भी अधिक शक्तिशाली था. तब सिर्फ चार लोग ही मरे थे. इन दोनों चक्रवातों का सामना जिस कुशलता से किया गया है, वह हमारी तकनीकी सक्षमता और विभिन्न संस्थाओं के बीच सामंजस्य को दर्शाता है.
दूसरी ओर, पिछले वर्ष केदारनाथ और इस वर्ष कश्मीर में भयावह बाढ़ से जिस तरह बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति हुई, उससे हमारे आपदा प्रबंधन पर कई प्रश्न खड़े होते हैं. सर्वविदित है कि सरकारी महकमों को दोनों ही जगहों पर बाढ़ का अंदेशा था. कुछ एजेंसियों ने संबद्ध विभागों को पहले ही जानकारियां उपलब्ध करा दी थीं. केदारनाथ में भारी वर्षा, ऊपरी ईलाकों में जल-जमाव तथा भू-स्खलन की चेतावनियों पर गंभीरता से अमल किया जाता, तो हजारों लोगों की जान बचायी जा सकती थी.
कश्मीर में भी संभावित बाढ़ के बारे में पिछले कुछ वर्षो से लगातार आगाह किया जा रहा था, लेकिन सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं. फैलिन के बाद हुदहुद चक्रवात से निपटने में मिली सफलता यह सबक देती है कि हमें अपनी तकनीकी क्षमता और संसाधनों का बेहतर तथा समन्वयपूर्ण उपयोग करना होगा, ताकि जान-माल के नुकसान से बचा जा सके.