मोदी का कांग्रेस-मुक्त भारत अभियान

।। आकार पटेल ।। वरिष्ठ पत्रकार महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार मोदी के विरुद्ध गांधी परिवार की वर्तमान रणनीति के विरोधी आंतरिक स्वरों को तेज करेगी. अभी तक इस परिवार ने मोदी को ठीक से चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटायी है और उसके पास मोदी जैसा राजनीतिक जज्बा भी नहीं दिखाई पड़ता है. आम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2014 3:31 AM

।। आकार पटेल ।।

वरिष्ठ पत्रकार

महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार मोदी के विरुद्ध गांधी परिवार की वर्तमान रणनीति के विरोधी आंतरिक स्वरों को तेज करेगी. अभी तक इस परिवार ने मोदी को ठीक से चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटायी है और उसके पास मोदी जैसा राजनीतिक जज्बा भी नहीं दिखाई पड़ता है.

आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ बनाने का दावा किया था, जिसका मतलब यह था कि वे इस पार्टी को खत्म किये बिना दम नहीं लेंगे. अब कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर है और मोदी की जोरदार जीत ने उसे लोकसभा में लगभग अप्रासंगिक बना दिया है.

उसके पास सदन की कुल संख्या की 10 फीसदी सीटें भी नहीं हैं. हालांकि कांग्रेस अब भी 11 राज्यों में सत्तारूढ़ है. ये राज्य हैं : अरुणाचल प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और उत्तराखंड. हाल के चुनावों में दिल्ली, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में उसे हार का मुंह देखना पड़ा.

कांग्रेस की सत्ता वाले पांच राज्य उत्तर-पूर्व में हैं, जिनकी जनसंख्या कम है. हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल महत्वपूर्ण राज्य हैं. इनमें से दो राज्यों-हरियाणा और महाराष्ट्र- में अगले कुछ दिनों में चुनाव होनेवाले हैं.

प्रचार के दौरान मोदी महाराष्ट्र में करीब दो दर्जन चुनावी सभाओं को संबोधित करनेवाले हैं, जबकि राहुल गांधी सिर्फ दो सभाओं में भाषण देंगे. टेलीविजन चैनलों द्वारा कराये जानेवाले ओपिनियन पोल से जीतनेवाले के बारे में स्पष्ट तसवीर नहीं उभर रही है, लेकिन इस बात पर लगभग आम राय है कि इन चुनावों में कांग्रेस की हार होगी.

इंडिया टीवी-सीवोटर का अनुमान है कि 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 93 सीटें जीत कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी और 59 सीटों के साथ शिवसेना दूसरे स्थान पर रहेगी. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस 47 सीटें जीत सकती है और कांग्रेस को 40 सीटें मिलने की उम्मीद है.

एबीपी न्यूज और निल्सन के सर्वेक्षण के अनुसार, भाजपा 112, शिवसेना 62, राष्ट्रवादी कांग्रेस 38 और कांग्रेस 45 सीटें जीत सकती है. अंगरेजी अखबार ‘मिंट’ ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ‘ओपिनियन पोल संकेत दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे भाजपा पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी, लेकिन वह साधारण बहुमत के आंकड़े से दूर रह जायेगी.’ जी-टीवी का सर्वेक्षण कह रहा है कि हालांकि भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की संभावना है, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: कांग्रेस और शिवसेना होंगी.

मेरी समझ से यह आकलन सही है, जिसे मैं बाद में स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा. इस चैनल का विश्लेषण है कि ‘भाजपा को 90, कांग्रेस को 72 और शिवसेना को 61 सीटें मिलने की संभावना है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 38 सीटें मिल सकती हैं. इसका एक अर्थ यह हो सकता है कि जब गंठबंधन टूटते हैं, तो मतदाता उसमें से सबसे मजबूत दल को समर्थन करता है, जिसकी राष्ट्रीय उपस्थिति हो.

शिवसेना महाराष्ट्र में भले ही भाजपा से अधिक मजबूत होने का दावा कर रही हो, लेकिन नरेंद्र मोदी का करिश्मा पार्टी को आगे ले जायेगा, क्योंकि उद्धव ठाकरे अभी मोदी के आकर्षण की बराबरी नहीं कर सकते हैं.

हरियाणा की 90 सदस्यों वाली विधानसभा के बारे में एक सर्वेक्षण का दावा है कि भाजपा 33 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होगी. पिछले 10 वर्षो से राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को 16 सीटें मिलेंगी और वह तीसरे स्थान पर रहेगी. कुछ ही महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 10 में से 7 सीटें मिली थीं. इस आधार पर यह संभव है, और ऐसा लग भी रहा है, कि भाजपा को बहुमत भी मिल सकता है.

बहरहाल, सीटों का अंतर जो भी रहे, इन दो राज्यों में हार कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका होगा. इससे न सिर्फ पार्टी का प्रभाव-क्षेत्र सीमित होगा, बल्कि महाराष्ट्र की हार के साथ उससे धन के आमद का बड़ा स्नेत भी छिन जायेगा. कांग्रेस महाराष्ट्र में सिर्फ एक बार ही- 1995 में- चुनाव हारी है.

देश में अगर कोई राज्य ऐसा है, जहां कांग्रेस के पास धन है और बड़ी संख्या में अनुभवी राजनेता हैं, तो वह राज्य महाराष्ट्र है. यदि नरेंद्र मोदी वहां जाकर उन्हें पराजित कर देते हैं, तो यह गांधी परिवार के लिए बड़े शर्म की बात होगी. यह विशेष रूप से राहुल गांधी के लिए और भी शर्मानक होगा, जो ऐसे झटकों के प्रति लापरवाह हैं, जबकि ये झटके पार्टी के लिए बहुत घातक हैं.

हाल के वर्षो में भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र के अपने दो वरिष्ठतम नेताओं को खो दिया है. इन नेताओं ने राज्य में पार्टी को स्थापित किया था. पहले अपने ही भाई के हाथों प्रमोद महाजन की हत्या हुई और फिर महाजन के बहनोई गोपीनाथ मुंडे इस वर्ष एक सड़क हादसे में मारे गये. इन भारी आघातों के बावजूद भाजपा सांगठनिक रूप से जमी रही और राजनीतिक परिस्थितियों का सामना करती रही. शिवसेना के साथ 25 वर्ष पुराना गंठबंधन तोड़ कर अकेले अपने बूते चुनाव लड़ने का निर्णय राज्य में पार्टी के आत्मविश्वास का परिचायक है.

मेरी भविष्यवाणी यह है कि भाजपा से गंठबंधन तोड़ना शिवसेना के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा और यह धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जायेगी. ठाकरे परिवार और भाजपा ने दो दशक से अधिक समय तक यह विचित्र संबंध बनाये रखा था, जो पर्यवेक्षकों के लिए एक पहेली जैसा था. भाजपा लोकसभा के लिए अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती थी, जबकि सेना के हिस्से में विधानसभा की ज्यादा सीटें जाती थीं. औसत के हिसाब से, भाजपा हर 10 सीट में से 4.5 सीटें जीतती थी, पर शिवसेना तीन ही जीत पाती थी.

इससे साफ हो जाता है कि दोनों में मजबूत पार्टी कौन सी है. लेकिन बाल ठाकरे का करिश्मा और प्रमोद महाजन का राज्य के बजाये दिल्ली पर अधिक ध्यान देना वे कारक थे, जिनकी वजह से भाजपा की कीमत पर सेना की ताकत बढ़ती रही. अब यह स्थिति समाप्त हो गयी है. सेना अन्य दलों की तरह एक राजनीतिक दल नहीं है और वह अपना घोषणापत्र जारी करने की भी जहमत नहीं उठाती. मसलों पर इसका रवैया प्रतिक्रियात्मक होता है और इसके नेता पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के भारत आने जैसे बेमानी वाले मुद्दों पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (जिसका मुख्यालय महाराष्ट्र में है) की सहायता के बिना शिवसेना का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा.

महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार मोदी के विरुद्ध गांधी परिवार की वर्तमान रणनीति के विरोधी आंतरिक स्वरों को तेज करेगी. अभी तक इस परिवार ने मोदी को ठीक से चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटायी है और उसके पास मोदी जैसा राजनीतिक जज्बा भी नहीं दिखाई पड़ता है. जब महाराष्ट्र और हरियाणा के परिणाम आयेंगे, प्रधानमंत्री कांग्रेस-मुक्त भारत के अपने अभियान में दो कदम और आगे बढ़ जायेंगे.

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