पर्यावरण बचेगा, तभी हम सब बचेंग
मूर्ति व पूजन सामग्रियों के विसर्जन से गंभीर जल प्रदूषण का संकट पैदा हो रहा है. भारत में पूरे साल अनेक उत्सव होते रहते हैं. इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित होती हैं. बाद में उन्हें जलाशयों में विसजिर्त किया जाता है. बढ़ती आबादी शहर ही नहीं, ग्रामीण जलाशयों को भी निगल रही है. शहरों […]
मूर्ति व पूजन सामग्रियों के विसर्जन से गंभीर जल प्रदूषण का संकट पैदा हो रहा है. भारत में पूरे साल अनेक उत्सव होते रहते हैं. इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित होती हैं. बाद में उन्हें जलाशयों में विसजिर्त किया जाता है.
बढ़ती आबादी शहर ही नहीं, ग्रामीण जलाशयों को भी निगल रही है. शहरों की हालत भयावह हो चुकी है. आज कल हर कॉलोनी व सेक्टरों में पूजा के विशाल पंडाल बनाने का चलन जोरों पर है. यहां की मूर्तियों का विसजर्न और बुद्धिजीवियों की चुप्पी दुखदायी है. शहरों के तालाब विषाक्त हो रहे हैं.
जलाशयों की सफाई की जिम्मेदारी पूजा समितियों को दी जाये या फिर शुल्क लेकर नगरपालिका व्यवस्था करे. हवा, पानी व मिट्टी का संरक्षण पर ही हमारा अस्तित्व टिका है. पर्यावरण बचेगा, तभी हम बचेंगे. कृत्रिम जल, हवा व मिट्टी से प्राणी का पोषण संभव नहीं है.
महादेव महतो, तालगड़िया, बोकारो